हवालात मे चुदाई
उस दीन कुछ अच्छा नही लग रह था. सुबह से ही मन् में भारीपन लग रहा
था. ऐसे ही अलसाई हूई अपने रुम में सोयी पडी थी. काम करने में जीं नहीं
लग रह था. तभी ग्ली में शोर होने लगा. अपने पलंग से उठकर बरामदे की
खिड़की से ग्ली में झाँकने लगी.
बाबु के माकन के सामने भीड़ एक्कठी हो रही थी. क्या हुआ होगा सोचकर
अपनी आंखें उनके गेट पेर गडा दी. भीड़ में फुसफुसाहट हो रही थी. तभी
खिड़की के सामने से एक आदमी गुजरा तो उससे पूछ लीया, "आरे भैया, क्या हो
गया?"
आदमी ने चलते-चलते जवाब दीया, "किसी ने बाबु को चाक़ू मार दीया."
यह सुनकर मैं डर्र गयी. दीन-दहाड़े ग्ली मे हत्या. उफ़! क्या हो गया है इस
दुनीया को. बाबु से हमारे घरवालों की जमती नही थी. अब घरवाले कौन?
एक मेरा मरद और दूसरी में. अभी तीन-चार दीन पहले ही मेरे मरद,
का झगड़ा बाबु से कुछ लें- दें को लेकर हो गया था. लेकीन इससे क्या?
आखीर ग्ली में किसी की हत्या हो तोः बुरा तोः लगता ही है.
मैं मन् ही मन् डर्र रही थी. सोच रही थी की श्याम जल्दी घर आजाये तो
अच्छा है. लेकीन उन्हें तो शाम को ही आना था. दुसरे गांव गए हुये थे. ऐसा
ही बोल कर सुबह जल्दी निकल गए थे.
थोड़ी देर बाद वापस खिड़की खोल कर बाबु के घर की और झाँका तोः देखा
आदमी तोः ज्यादा नही थे बल्की ६-७ पुलिस वाले जरूर खडे थे. अब हत्या हूई
है तोः पोलीस वाले तोः आएंगे ही. तभी देखा ३- ४ पुलिसवाले मेरे घर की
तरफ आ रहे है. मेरा मन् और खराब होने लगा. पोलीस वाले मेरे घर की
तरफ क्यों आ रहे है? मैं झट से खिड़की बंद करके वापस अपने कमरे की तरफ
बढने लगी.
दुसरे पल ही दरवाजा पीटने की आवाज आने लगी. मैं झट से कमरे की जगह
अपने घर के मैं दरवाजे की तरफ बढ गयी और गेट खोल दीया. पुलिस वाले
धद्धादते हुये घर में घुस गए.
मैंने हडब्डाकर उनसे पूछा, "आरे ये क्या कर रहे हो?"
एक पोलीस वाला कड़कती आवाज में पूछा, "श्याम कीधर है?"
मैंने वापस पूछा, "क्या काम है मेरे मरद से?"
तभी दूसरा पोलीस वाला दहडा, "साली, हमसे पूछती है क्या काम है?
कीधर छुपा कर रखा है अपने मरद को?"
मैं सहमकर बोली, "वो तोः घर पर नही है. दुसरे गांव गए हुये है. शाम
को आएंगे?"
तभी उसने कठोरता से पूछा, "साली, घर में छुपा कर रखा है और बोलती
है की नहीं है. बता कीधर छुपाया है."
"साहेब मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ. वो तोः सुबह से ही गए हुये है. लेकीन
बात क्या है?"
तभी तीसरे पोलीस वाले ने कहा, "तेरा मरद शाम है ना?"
जवाब में मैंने अपना सीर हाँ में हिला दीया.
"साले ने बाबु का ख़ून कीया है."
मेरे ऊपर मनो पहाड़ गीर गया. लेकीन सँभालते हुये बोली, "कैसे साहेब? वो तो
सुबह से ही यहाँ नही है."
"कैसे नही है. बहार कई लोगों ने उसे अभी थोड़ी देर पहले ही उसे भागते हुये
देखा है. वो कोई झूठ नहीं बोल रहे हैं."
मेरी तोः आवाज ही बंद हो गयी. तभी एक पोलीस वाला पूरा घर दूंधने के बाद
बोला, "इधर तोः श्याम नही है. लगता है साला भाग गया."
तोः दुसरे पोलीस वाले ने उससे कहा, "जा साहेब को बता कर आ."
मैं चुप-चाप जमीन पेर बैठ गयी और रोने लगी. वीशवाश ही नही हो रहा
था. जरूर कीसी ने अपना बदला निकलने के लीये झूठ-मूठ पोलीस वाले को कह
दीया होगा. श्याम के साथ मेरी शादी को सिर्फ ६ महिने ही हुये थे. इन् ६
महीनो में हमने ख़ूब मज़ा कीया. ३-४ महीने तक तोः वो घर से बहार बहुत ही
कम वक़्त के लीये बहार निकलता था. हम दोनो दीन-रात बिस्तेर पर, kitchen में,
बाथरूम में और यहाँ तक की आंगने में मज़ा लूट ते रहते थे. वक़्त कब का
निकल गया समझ में ही नहीं आया. लेकीन आज..
श्याम २५ साल का एक गबरू जवान था. कसरती बदन और थोडा सांवले रंग का
लेकीन मजबूत मरद था. बिस्तर पर उसका कोई जवाब ही नही था. उसका हथियार
भी उसके बदन जैसा मूसल और लम्बा-मोटा. मेरे बीते भर से बड़ा और मेरी
कलाई से आधा. उसके साथ ब्याह होने के बाद में अपने पुरे जीवन को भूल चुकी
थी.
हाँ. मैं शादी होने के पहले अपने दो-तीन दोस्तो से यारी कर बैठी थी. और
उनके साथ हम्बिस्तर भी. लेकीन श्याम से शादी होने के बाद मैंने कभी भी
उनको याद नहीं कीया. अब जो कुछ भी था तोः वोह श्याम ही था.
श्याम और मेरे पुराने यारों की नज़रों मे मैं गोरी चिठ्ठी हसीं गुदिया थी.
मेरे लंबे-लंबे बाल, मेरे गोरे-गोरे गाल, मेरे मद्मुस्त होठ, मेरे अनार जैसे
कड़क संतरे की साइज़ के मुम्मे, भरी हूई झंघे. ऐसा ही कहते थे वोह सुब.
और मैं अपनी प्रसंसा सुनकर फूला नही समाती थी.
तभी थानेदार की कड़कती हूई आवाज़ ने मुझे जगा दीया, "कहां है उसकी बीबी?"
मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी आंखें मेरे जिस्म पर गीद्ध की आँखों जैसे चिपक
गयी.
तभी मुझे एक पोलीस वाले ने पकड़ कर खड़ा कर दीया और बोला, "येही है उसकी
बीबी."
थानेदार मेरे जिस्म को तौलता हुवा बोला, "कहां है श्याम?"
मैंने सहमते हुये कहा, "मुझे नही मालूम. वोह तोः सुबह से बहार गए हुये
है."
"बता दे वर्ना मुझे और भी तरीके आते है." थानेदार ने गरजती हूई आवाज़
में पूछा.
मैं चुप-चाप खडी रही. बहार भीड़ देख कर थानेदार ने और तोः कुछ नही
बोला लेकीन मैं मेह्शूश कर रही थी उसकी नज़रों को अपने जिस्म में धंसते
हुये. थानेदार अपने आदमियों को कुछ बताने लगा और मुझे घूरते हुये बहार
चला गया.
शाम की ४-५ बज गयी. पोलीस party अपने थाने चली गयी. मैंने चेन की सांस
ली. लेकीन रात को ८-८.३० बजे फीर एक पोलीस वाला आया. मुझसे श्याम के बारे
में पूछने लगा. मैंने ना में जवाब दीया.
"ऐसे कैसे हो सकता है. तू सुबह बोल रही थी ना की वोह शाम को वापस आएगा.
अब तोः रात हो चुकी है," पोलीस वाले ने पूछा.
"उन्होने सुबह ऐसा ही कहा था," मैंने जवाब दीया.
"लगता है तू ऐसे नही मानेगी. अब तेरे से हाथ-लात से बात करनी पडेगी,"
उसने घुड्ते हुये कहा.
मेरी धुक-धुक बढने लगी. मुझे श्याम पर ग़ुस्सा आ रहा था. अब तक नही आया.
ग्ली मैं एक ख़ून हो गया और बीबी घर में अकेली. लेकीन उसका कोई पता ही
नही. तभी फीर सोचा. उससे क्या मालूम की हत्या हो गयी है. अगर मालूम होता
तोः दोपहर में ही नही आजाता. क्या उसने ही हत्या...
"साली को थाने ले चल," पोलीसवाला अपने साथी से कहा. "साहेब ने कहा है अगर
श्याम नही मीलता तो उसकी बीबी को थाने लेकर आना."
मैं तो यह सुनकर रोने लगी.
"चल. चल. ज्यादा नाटक नहीं कर," एक पोलीस वाला मेरी कलाई पकड़े हुये बोला.
और फीर जोर-जबरदस्ती से मुझे पोलीस-वन में बैठा दीया और थाने पहुंच
गए हम लोग.
"क्या हुवा श्याम नही मीला?" थानेदार ने मुझे देखते हुये ही पूछा.
जवाब में ना में सीर हीला दीया पुलिसवाले ने.
"चल साली को लाक-उप में बंद कर. अपने आप ही इसका मरद आएगा इसको
छुड़ाने," थानेदार ने अपनी seat पर बैठे बैठे कहा.
मुझे लाक-उप में दाल दीया जोकी उसकी सात के सामने ही थी. पोलीस स्टेशन उस
थानेदार के अलावा ५ हवालदार थे. कोई थाने में अंदर आ रहा था तोः कोई
बहार जा रहा था. रात के ११ बजने में आ रही थी. इन् २ घंटों में
थानेदार मुझे १०० बार घूर चूका था. मुझे अपनी आंखों से तौल रहा था.
ऐसे मर्दों की आँखें मुझे पता है कैसी होती है. बाज़ार जाते हुये या
मंदीर जाते हुये ऐसी ही नज़रों का सामना में कब से कर रही हूँ. लेकीन तब
और आब में सिर्फ एक फरक था. तब मैं अपनी मर्जी की मालीक होती थी और अब्ब
हवालात में बेबस कैदी की तरह थाने में.
तभी थानेदार ने अपने हवाल्दारों को बुलाया और २-२ की २ team बाना कर एक को
मेरे घर के पास छुपने को कह दीया और दुसरे को बस्स स्टैंड जाने को कह दीया.
साथ ही हिदयात देदी की सुबह तक निगरानी रखनी है. अब बचे एक हवालदार के
कान में कुछ कहा और वोह हवालदार भी बहार चला गया.
थाने में मैं और वोह थानेदार दो ही बचे थे. हवालात में और कोई कैदी
भी नही था. मुझे उसके इरादे अच्छे नही लग रहे थे. वोह अपनी कमीज उतार
कर कोई filmi गाना गाते हुये अपनी seat पर बैठ गया और मुझे घूरने लगा.
अब थानेदार मुझे लगातार घूर रहा था और उसके होंठों में एक कुटील
मुस्कान आ रही थी और जा रही थी.
तभी लास्ट वाला हवालदार एक कागज का पैकेट थानेदार के हाथ में पकडा दीया
और एक ग्लास और पानी की बोत्त्ले उसकी टेबल पर रख दीया. फीर हवालदार
थानेदार का इशारा पाकर थाने से बहार चला गया. थानेदार ने कागज के
पैकेट से एक बोत्त्ले बहार निकली.
"दारु!" मैं मन् में सोचकर कांप उठी. "दारु पीकर थानेदार अकेले
हवालात में और मैं भी थाने में अकेली..."
थानेदार ने आधे गांठे में ४-५ पैग बाना कर दारु पी डाली और उठ खड़ा
हुवा. उसकी चाल में कोई फरक नही था लेकीन आंखों में दारु का नशा और
वासना दोनो झलक रहा था. उसने मैं गेट के पास जाकर गेट को बंद कीया और
कड़ी लगा दी. अब मेरे हवालात की तरफ आ कर उसका ताला खोल कर मैन गेट पर
लगा दीया और चाबी जेब मैं दाल ली. फीर मेरी तरफ बढने लगा. मेरी रूह
कांप रही थी.
"बोल कीधर है तेरा मरद."
मैं चुप चाप रही.
"अबे साली, तेरा मरद है की नही?"
"......"
"लगता है तेरा मरद नही है. अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा."
"......."
मेरे नजदीक आ कर मेरे हाथों को पकड़ लीया और झुमते हुये बोला, "कीसी का
हाथ पकडा नही या हाथ छोड़ कर चला गया."
मैंने अपने हाथ को चुडाते हुये कहा, "साहेब आपने पी ली है. अभी बात नही
करो मुझसे."
"वह... क्या idea दी है तूने. अभी बात में time वास्ते नही करने का... अभी
काम करने का..."
"साहेब छोडो मुझे."
"क्या बोली तुम. चोदो मुझे," बड़ी बेशर्मी से हँसते हुये थानेदार बोला.
"ऐसी गंदी बात करते हुये तुम्हे शरम नही आती..." मैंने वीरोध कीया.
"अच्छा तुझे मालूम है की क्या गंदी है और क्या अच्छी. यानिके तुझे सुब
मालूम लगता है. चोदो... चुदाई... सुब मालूम है तुझे," बड़ी बेशर्मी से
बोलता जा रहा था.
मैंने अपने कान बंद कर लीये और मदद के लीये चिल्लाने लगी. तभी एक
झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गलों पर पड़ा.
"साली. रांड. चील्लाती है. एक तो श्याम का पता नहीं बता रही है और
पूछताछ में चिल्लाती है," कहते हुये थानेदार मेरी साड़ी को खींचने लगा
और बोला, "चिल्ला. जीतना चिल्लाना है चिल्ला. देखता हूँ मैन कौन आता है
इधर."
मैन बेबस चिल्लाना भूलकर अपनी साड़ी को उससे छुडाने मे लग गयी लेकीन उसने
अपने दम पर मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दीया. अब मैन अपने पेतीकोअत और
ब्लौस मे उसके सामने रोते हुये खडी थी. अपने हाथो को अपने सीने से लगा कर
रखा था लेकीन थानेदार ने मेरे एक हाथ को पकड़कर उल्टा मोड़ दीया तोः दरद
के मारे अपने दुसरे हाथ से उसको छुडाने लगी. इस्सका फायदा उठाते हुये उसने
मेरे ब्लौसे के सामने के सारे हूक झटक कर तोड़ दीये. अब मेरा ब्लौसे एक-दो
हूक के सहारे झूल रहा था.
अपने दुसरे हाथ से जब ब्लौस को बचने गयी तोः बेदरद थानेदार ने मेरे
पहले वाले हाथ को और जोर से मोड़ दीया. मैन दर्द से कराह उठी और ब्लौस को
छोड़ अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. इस्सी तरह करते हुये उसने मेरा
ब्लौस और मेरी चोली दोनो को मेरे बदन से जुदा कर दीया. अब मैन अपने दोनो
हाथों से अपने दोनो मुम्मो को छुपाते हुये इधर से उधर दौड़ने लगी. लेकीन
थानेदार हँसता हुवा मेरे पीछे-पीछे भागता हुवा कीसी भी तरह से हाथ
को छुदाता और मेरे मुम्मो को मसल देता. मैन चीख कर दया की बीख माँग
कर अपने को बचाती और भागती. ऐसे में थानेदार को मज़ा आ रहा था और
मैन रोती हूई इधर-उधर भाग रही थी.
थोड़ी देर खेल ऐसे ही चलता रहा. फीर थानेदार ने मुझे छोड़ मेरे जमीन
पर पडे ब्लौस और चोली को उठा कर उन्हें सुन्घ्ता हुवा अपनी डेस्क पर गया और
पैग बनाकर और दारु पीने लगा. फीर कुछ रूक कर मुझसे पूछा, "तू भी
पीयेगी?"
"......"
"आरे पी ले. नशे में बड़ा मज़ा आता है चुदवाने में."
मैन जोर से रो पडी. मेरे आंशु थमने के नाम ही नही ले रहे थे. मैंने
गिद्गीदते हुये कहा, "मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा. क्यो मेरी इज़्ज़त के पीछे
पडे हो?"
"तूने नही बिगडा. तेरे नशीली हुस्न ने बिगाड़ा है मेरा," कहते हुये अपनी पैंट
की चेन पर हाथ रखते हुये बोला, "देख कैसे फाड़- फाडा रहा है लंडवा मेरा.
इसका बिगडा है तेरी जवानी को देख कर. अब इसको ठण्डा कर...."
उसका लंड पैंट के ऊपर से ही ताना हुवा दीख रहा था. मानो पैंट को फाड़ कर
बहार आ जाएगा. अपनी जवानी को अब लूटने के करीब देख कर मेरा धीरज जवाब
देर रहा था. मैन अपने को बचने के लीये जोर से चिल्लाई, "कोई है.... बचाओ
मुझे..."
थानेदार दारु की बोत्त्ले पकड़े हुये मेरे पास आया और फीर जोरदार का थप्पड़
मारा. इस बार उसने दारु की बोत्त्ले उठा कर जोर से बोला, "चुप होती की साली या
मारू इस बोत्ल को तेरे सीर पर."
मैन एक दम से चुप्प्प्प्प्प्प.
फीर उसने मेरे सीर को पकड़ कर बोत्त्ले मेरे मुहं में लगा दी. मैन अपना मुहं
हीला-हीला कर बोत्त्ले से अपने मुहं को हटाने की कोशीश करने लगी लेकीन उसने
जबरदस्ती करके डेड-दो पैग मेरे अंदर उधेल ही दीया. छाती जलने लगी. उबकाई
आने लगी. सीर चकराने लगा. पेट गरम हो उठा. पहली बार दारु पेट में गयी
थी. चिल्ला रही थी लेकीन थानेदार हंस रहा था.
बोत्ल का जो कुछ भी बचा-खुचा था वोह थानेदार ने पी लीया और बोत्ल को
अपनी डेस्क के नीचे लुढ़का दीया. फीर सीधे मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे मुम्मे को
मसलने लगा. दोनो हाथो में मेरे दोनो मुम्मे. आटे की तरह गुन्थ्ने लगा. फोकट
का माल जो मील रहा था. दारु अंदर जाने के बाद ऐसे हमले के लीये मैन तयार
नही थी. और अपने आप को बचा नही पा रही थी. उसने एक मुम्मे को अपने हाथ
में पकड़ दुसरे मुम्मे को अपने होंठों के बीच ले चूसना शुरू कर दीया. मेरे
संतरे उसके लीये चूसने वाले संतरे बन गए.
मैन दारु के झटके खाती हूई अपने हाथ से अपना सीर पकड़े हुये थी. अपना
बचाव भी नही कर पा रही थी. तभी दुसरे हाथ से थानेदार ने मेरे
पेट्तिकोअत के नाडे को झटके से खोल दीया. मैन मानो नींद से जाग उठी. ना जाने
कितनी ताक़त आयी होगी मुझ में जो थानेदार को अपने ऊपर से नीचे गीरा कर
उठकर भागने लगी. लेकीन अफ्शोश. खुला हुआ पेट्तिकोअत मेरी टांगों में फँस
गया और मुहं के बल धदम से जा गीरी. मेरी रही-सही सारी ताकत खतम हो
गयी.
थानेदार ग़ुस्से में ब्ड्ब्डाता हुवा और गाली देता हुवा मेरे बालों को झटके
देते हुये मुझे उठाया, "साली मादरचोद. मेरे को धक्का देती है साली. रंडी.
अब मैन देता हूँ तेरे को मेरे लंड का धक्का.. साली छीनल. मेरे को धक्का
देती है. अब देखता हूँ कैसे बचती है चुदने से.."
उसने मुझे बलों पकड़ कर मेरे चहरे को अपनी और घुमा कर मेरे गलों और मेरे
होंठों को चूमने लगा. मैन २-३ मिनुतेस बाद फीर कसमसाई और छुडाने की
कोशीश करने लगी. लेकीन उसने मुझे अपनी गिरफ्त में रखा और मेरे अनार जैसे
कड़क मुम्मो को अपने मुहं में दबा कर चूसने लगा. अब वोह दांतो से मेरे
प्यारे-प्यारे गोरे-गोरे मुममो को कटने लगा. जैसे काटा वैसे ही मेरी चीख
निकली. लेकीन उसे क्या परवाह थी. थोडी देर में मेरे एक मुम्मे पर जोर से काट
खाया तोः मेरी जोरदार चीख़ निकल गयी.
"चुप. आवाज़ नही. अबके चीखी ना तोः पुरा तेरा काट के अलग कर दूंगा, साली
रांड," कड़क आवाज़ में बोला थानेदार....!!!
सहमकर चुप हो गयी मैन लेकीन सिस्कियां आ रही थी. थानेदार ने मुझे पकड़
कर नीचे सुला दीया और अपनी पैंट खोल दीया. अब वोह भी सिर्फ़ अंडरवियर मैं और
मैन भी अंडरवियर में. उसने नीचे झुकते हुये मेरा अंडरवियर एक झटके में
नीचे खींचा तोः वोह घुटने पर जा कर अटक गया. फीर मेरी टांगो को ऊपर
कर उसे बहार निकाल फेंका. अब थानेदार मेरे पुरे नंगे जिस्म को उपर से
नीचे देखता हुआ अपने हाथ से अपने अंडरवियर में पड़े अपने लंड को दबाने
लगा.
"उफ़. क्यया जवानी है तेरी. एक मरद से नही संभल सकती ऐसी जवानी. कितने
मर्दो को अपनी जवानी का रुस पिलाया है तुने," नशे मैं झूमता हुवा अपने लंड
को दबाता हुवा बोल रहा था थानेदार.
मैन चुप चाप पडी उसको देख रही थी. दारु की वजह से सीर घूम रहा था.
आंखें बार-बार खुल बंद हो रही थी.
उसने अपना अंडरवियर निकला और उसका लंड खुली हवा मैं सांस लेने लगा. उसका
लंड मेरे श्याम या कहूं मेरे पुराने यारों जीतना ही लुम्बा था यानी बीतते से
बड़ा लेकीन मोटा पुरा ग्हधे की तरह था.....!!!
थानेदार घुटनों के बल बैठकर मेरे नंगे सुलगते जिस्म को ऊपर से नीचे
चाटने लगा. उसकी जीभ की हरकत और दारु का नशा मेरी रही सही ना-नुकर को
भी बंद कर दीया. वोह अपनी जीभ से मेरे गालों, गर्दन, मुममो, मेरा पेट, मेरी
चूत और मेरी जांघों को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर चाट रहा था.
लगता था की कई लड़कियों को इसी तरह थाने मैं चोद-चोद कर परफेक्ट खिलाडी
बन चूका है. फीर अपनी जीभ को मेरी चूत के पास ला कर अपने लंड को मेरे
गालों पर रगड़ने लगा.
"मुहं मैं ले इसको," थानेदार गरजा.
"किसको?"
"अबे साली नखरे नही दीखा. ले मुहं मैं मेरे लाव्दे को." और मेरे मुहं मैं
अपने लंड के सुपाङा को फंसा दीया.
मोटा लंड कैसे जाता मेरे मुहं मैं.
"ले साली मुहं मैं. खबरदार अगर तुने इसको दांत गद्य तोः.." थानेदार ने
हिदयात भी देर दी.
मैन नशे मे अपने मुहं को पूरा खोली और उसका लंड मेरे अंदर जा कर फँस
गया. तभी थानेदार लंड को अंदर जाते देख मेरी चूत के दाने को मसलन
शुरू कर दीया और अपनी जीभ से मेरे चूत के lips को चाटना. मेरे जिस्म मैं
हलचल मचल गयी. अगर लंड मुहं मैं नहीं होता तोः यकीनन मेरी सिस्कारी
निकल पड़ती. अब दोनो ६९ पोसिशन मैं एक दुसरे के लंड और चूत को चूस और
चाट रहे थे.
तभी थानेदार उठा और मेरी दोनो टांगो को घुटने से मोड़कर मेरी जांघों को
फैला दीया और अपना मूसल मेरी चूत के दरवाजे पर रख दीया. मुझ मैं
दारु के नशा अपनी पूरी रवानी पर था और लंड अपनी पूरी जवानी पर. उसने
अपना थूक अपने लंड के सुपाङा पर लगाया और एक करारा झटका दीया.
सेर्र्र्र्र्र्र...... अध लंड अंदर.
जोर की चीख़ नीक्ली मेरी. ऐसे मूसल लंड से पहली बार साबका पड़ा था मेरी
चूत का. लेकीन थानेदार को इससे क्यया. उसने मेरे मुम्मे एक हाथ से और एक टांग
को दुसरे हाथ से और फीर एक जोरदार झटका.
सेर्र्र्र्र्र्र...... पूरा लंड अंदर.
मेरी बोलती बंद हो गयी. थानेदार ने अब मेरी दोनो टांगो को पकड़ कर
दादा-दादा धक्के मरने शुरू कर दीये. इन धक्कों के साथ मेरी सिस्कारियां भी
शुरू हो गयी.
"धीरे... धीरे... जोरसे धक्क्का ना मरो... अह्ह्ह... फट जायेगी... मेरी
चूत...प्यार से चोदो... देखो थोडा धीरे... तुम्हारा लंड बड़ा मूसल है...
गधे जैसे लंड से गधे जैसे नही चोदो मुझे... उफ्फ्फ... अह्ह्ह..." मेरे मुहं
से ना जाने कहां से लंड, चूत जैसे words नीक्लने लगे. यह उसकी झन्नाटेदार
चुदाई का ही असर था.
"साली.. कितने मर्दो को खा चुकी.. फीर भी कहती है धीरे. धीरे.. रांड.
खा मेरे धक्के.. आज से तेरी चूत मैं ही चोदुंगा रोज.. मेरा लंड तेरी चूत
का सारा कास-बल नीकाल देगा.. चुदाई क्यया होती है ये तुझे मेरा लंड ही
बतायेगा.. चुदा. चुदा." थानेदार जमकर धक्के मरते हुये मेरी चूत मैं
अपना लंड पेलता रहा.
Full speed. जमकर चुदाई. येही चली १५-२० मिनट तक. मेरी चूत इस बीच अपने
पानी से भरपूर गीली हो चुकी थी. जिससे उसके मूसल लंड को भी आराम से ले
रही थी और मज़ा भी ख़ूब आने लगा.
"है. है. क्यया चोद रहे हो थानेदार.. ख़ूब जबर्दुस्त लंड है तेरा.. ओह्ह.
मेरा पानी निकला.. निकला.. निकलाआया." यह कहकर मेरी चूत अन्पा पानी उसके
लंड पर बरसाने लगी. लेकीन उसके धक्के दारु के नशे मैं और बढते गए.
मेरी चूत का पानी उसके लंड के नशे को और बढ़ा दीया लगता था. लेकीन मेरे
पानी नीक्लने से मेरी जकदन कमजोर हो गयी तोः उसने अपना लंड बहार निकल दीया.
उसका लंड और मोटा लग रहा था. मानो मेरी चूत का सारा पानी उसकी पिचकारी
मैं चला गया हो.उसने खडे हो कर मुझे बैठा दीया और मेरे मुहं मैं अपना
लंड ठूंस दीया. उसके लंड से मेरी चूत की स्मेल आ रही थी. लेकीन मुझे उस
समय उसके जैसा लंड कीसी मिठाई से कम नही लग रहा था. सो मैंने गुप्प से
अपने मुहं मैं लेकर चूसना शुरू कर दीया. ५-७ मिनट मैं उसने अपना लंड
बाहर नीकाल लीया. तोः मुझे लगा वोह अब झड़ने वाला है. लेकीन मैं गलत
साबीत हूई. उसने मुझे doggy स्टाइल मैं कर मेरी चूत मैं अपना लंड पीछे
से दाल दीया और चोदने लगा.
थानेदार ने २५-३० धक्कों के अपना लंड बहार नीकाला और मेरी चूत मैं अपनी
दो अंगुली फंसा कर उसकी सारी मलाई अपनी अंगुली मैं लपेट ली और लंड पर
चीपुद्ने लगा. मैं कुछ सोच पाती उससे पहले उसने अपने लंड को मेरी गांड के
छेद मैं फंसा कर एक जोर दार झटका मारा. मेरी चीख़ निकल पडी.
यह चीख़ अब तक की मेरी सबसे जोरदार थी. मेरी आँखों से आंसू थमने को
नाम ही नही ले रहे थे. मैं चीखती हूई उससे गलियन देने लगी,
"आरे साले गांडू.....
फाड़ दी मेरी गांड.......!!!
आरे क्यो मारी. नीकाल मेरी गांड से. लंड को नीकाल मादरचोद...........
बहन की गांड मैं दे ऐसे मूसल लंड को॥
अपनी माँ की गांड मैं दे अपने लंड को.. नीकाल गांडू.. मर जाऊंगी मैं..
नीकाल अपने लाव्डे को.. फट गैईई.............."
लेकीन थानेदार ने मेरे बालों को कास-कास कर पकड़ते हुये मेरी गांड मारनी चालू
रखी. मेरी गांड मैं भयंकर दर्द हो रहा था. उसने स्पीड कम की फीर बढ़ायी
फीर कम कर दी. इस तरह मुझे कुछ आराम मीला. हल्का-हल्का दर्द हो रहा था.
लेकीन हल्का-हल्का मज़ा भी आ रहा था. उसने स्पीड बढ़ायी तोः मज़ा भी बढ
गया. फीर उसने अपने लंड को बहार नीकला और उसी पोसिशन मैं मेरी चूत मैं
फीर से दाल दीया.
गांड मैं दरद तोः नही था. साथ ही अब चूत मैं लंड के जाते ही पुरे
बदन मैं चुदाई का नशा छाने लगा. तभी थानेदार ने अपने धक्को की फुल्ल
स्पीड करते हुये अपनी पिचकारी छोड़नी चालू कर दी. उसका फव्वारा धुच से मेरी
चूत के अंदर जा रहा था जिससे मेरी चूत भी झड़ने लगी. दोनो निढाल हो कर
हवालात की जमीन पर लेट गए.
मैं बुद्बुदाई, "वाकई मैं तुम्हारा लंड कमाल का है. आज तक कीसी ने भी
मुझे ऐसा नही चोदा."
थानेदार ने लेटे लेटे ही जवाब दीया, "अब मौका मिलने पर इससे जोरदार चोदुंगा
तुझे. आज तो हवालात था लेकीन कभी बिस्तर पर मुझसे चुदोगी ना बड़ा ही
मज़ा आएगा तुझे."
"मैं इंतज़ार करूंगी," मैंने उसके होंठों को चूमते हुये कहा.
थानेदार मेरे दोनो मुममो को चूमता हुवा उठा. मेरे ब्लौस और चोली को मेरे
पास फेंका और अपने कपडे पहनने लगा. मैं कह्राती हूई उठी. अब दारु का
नशा कम हो चूका था. लेकीन चुदाई की मस्ती छायी हूई थी. उठी तोः कदम
लाद्खादा रहे थे. गांड पहली बार कीसी ने मारी थी वोह भी मूसल लंड से.
चलने के लीये दोनो टांगो को थोडा चौड़ा करना पड़ रहा था जीसे देखकर
थानेदार हंसने लगा. मेरे कपडे पहनते ही उसने पोलीस स्टेशन का गेट खोल
दीया. मुझे हवालात मैं ही नींद आ गयी.
सुबह श्याम की आवाज सुनकर मेरी आंखें खुली. श्याम ने मुझे उठे हुये देख
कर कहा, "डरो नही. अब कुछ तकलीफ नही होगी. वोह रंगीला ने जान्भुझ्कर
मेरा नाम लीया था. लेकीन असली कातील खुद रंगीला ही था. पोलीस ने उसको पकड़
लीया है. अब घर चलो."
थानेदार मुझे देखकर मुस्करा रहा था. मैं मन् ही मन् सोच रही थी की
हाँ अब तकलीफ नही होगी पर कीसे. थानेदार के मूसल लंड को या मेरी रसीली
चूत को........!!!!!
Thursday, August 19, 2010
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