मेरी डायरी के कुछ पन्ने
हर इंसान की जिन्दगी ख़ास होती है और हर किसी के जीने का अंदाज अलग -अलग होता है, इसलिए हर किसी को अपनी जीवनी जरूर लिखनी चाहिए
दूसरा उससे कुछ पाता ही है , चाहे जीवन की राह हो या आनंद और मनोरंजन
इसलिए मै अपनी जिन्दगी के कुछ खास हिस्से आप लोगो के साथ बाँट रहा हूँ
मेरा नाम राजन है और मै लखीमपुर जिला (उ.प्र.) में रहता हूँ
(१)
सबसे पहले आपको आज से १२-१३ साल पहले लिये चलता हूँ , उस समय मै दसवीं का एक्जाम देने वाला था
घर में केवल मै और मेरी माँ (कमला) रहती थी जिसकी उम्र उस समय ३९-४० साल थी
पापा का देहांत तक़रीबन १० वर्ष पहले हो चूका था ( वो कालेज में लेक्चरार थे )
चूँकि मेरी माँ भी ग्रेजुएट थी इसलिए पापा के कालेज में ही पापा की जगह माँ को लेखा विभाग में नौकरी लग गयी
हम पांच भाई- बहन है
बड़ी बहन 'विभा' जो उस समय २४ साल की थी, जीजाजी के साथ दिल्ली में रहती थी
जीजाजी एक मल्टीनेशनल कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत थे
उनकी एक बेटी भी है जो ६ साल की थी
भैया उस समय २२ साल के थे और भाभी के साथ भोपाल में रहते थे
भैया से छोटी शोभा दीदी है जो उस समय २० साल की थी और जीजाजी के साथ कानपुर में रहती है
उनका कोई बच्चा नहीं था
छोटे जीजाजी, शोभा दीदी से तक़रीबन १० साल बड़े है, लेकिन माँ-बाप के इकलोते है और परिवार बहुत समृद्ध है
सबसे छोटी आभा दीदी उस समय १७ साल की थी और १२वी की टेस्ट देने वाली थी
चूँकि भाभी को बच्चा हने वाला था इसलिए आभा दीदी भैया-भाभी के साथ भोपाल में रह रही थी
मै पढने में काफी तेज था और दसवीं में काफी अच्छे नम्बरों से पास होने की उम्मीद कर रहा था, वही पड़ोस में एक मोहल्ले की रिश्ते की बुआ पिछले २ साल से दसवी में फेल हो रही थी
तभी उसकी माँ, मेरी माँ के पास आकर बोली -बहु , जरा राजन को कहो ना क़ि वो श्यामली (बुआ का नाम ) को शाम को एक घंटा पढ़ा दे, पास कर जाएगी तो इस साल इसकी शादी कर देंगे
चूँकि परीक्षा में केवल तीन -चार महीने रह गए थे इसलिए मै बहुत आनाकानी के बाद शाम को बुआ के पास जाने लगा
दो - तीन दिन में ही मुझे पता चल गया क़ि वो दिमाग से पैदल है और दुसरे उसे बाते बनाने में बहुत मजा आता था
वो हमेशा कैजुअल ड्रेस में रहती जैसे नाइटी
गणित के सवाल में बुआ सामने से इतना झुक जाती क़ि आधे से अधिक मम्मे की गोलाइयों के दर्शन हो जाते
इतने में ही मेरा हलक सूखने लगता और पेट में गैस के गोले उठने लगते
उस समय घर में कोई नहीं होता था -उनका भाई यानि मेरे चाचाजी दूकान पर रहते और रात के दस बजे ही लौटते, उनकी भाभी प्रिगनेंट थी और मैके गयी थी और माँ शाम को मंदिर चली जाती
बुआ धीरे- धीरे मुझे सिड्यूस कर रही थी
एक दिन जब मै बुआ के घर गया तो कमरे में घुसते ही सन्न रह गया
बुआ घाघरा और एक ढीली ढली टी- शर्ट पहने कुर्सी पर बैठी थी, बल्कि यूँ कहिये की वो अधलेटी थी
सर पर चुन्नी बाँध रखा था, पैर बिस्तर पर मोड़ कर अधलेटी थी
घाघरा जांघो को घुटनों तक ऊपर से तो ढका हुआ था पर नीचे से बिस्तर के सामने से पूरी नंगी दुधिया जांघे चमक रही थी ,बस जांघो के जोड़ के पास क्रीम कलर की मुड़ी पैंटी मदमस्त गदराई जवानी को ढके हुए थी, जिसे देखकर मेरा दिमाग सनसना रहा था
तभी मेरे मुह से निकल गया - क्या हुआ बुआ ? बुआ ने अपनी आँखे खोली और पैरो को नीचे करते हुए कमजोर आवाज में बोली - आ गए तुम ! देख न , मेरा पूरा शरीर दर्द कर रहा है और सर में भी बहुत तेज दर्द है
शो ख़त्म होने से निराश मै बोला - आज पढाई तो होगी नहीं , मै चलता हूँ
बुआ : थोड़ी देर बैठ न , माँ कीर्तन में गयी हुई है २ घंटे से पहले नहीं आएगी , मै अकेली बोर हो जायूँगी
तू थोडा मेरी हेल्प कर और मेरे सर में बाम मल दे , वहाँ खिड़की पर बाम रखा है
मै बाम लेकर बुआ के माथे पर धीरे-धीरे बाम मलने लगा , फिर बुआ ने दोनों कनपट्टी के पास हौले -हौले दबाने को कहा
मै कुर्सी के पीछे आकर दोनों अंगुठे से हलके-हलके कनपट्टी को दबाने लगा , इस क्रम में मेरी हथेली और उंगलियाँ बुआ के गालो को छु रही थी और कुर्सी के पीछे से गदराई चूचियो के नज़ारे मेरे अन्दर एक बिलकुल अनजान एवं नवीन उत्तेजना का संचार कर रहे थे और रोमांच से मेरा हाथ काँप रहे थे
तभी बुआ ने कहा- राजन एक काम करेगा
मैंने पूछा- क्या बुआ ?
बुआ बोली - मेरे पुरे शारीर में दर्द हो रहा है , तू पैर और पीठ दबा देगा और इससे पहले मै कुछ जबाब देता वो पेट के बल जाकर बिस्तर पर लेट गयी
मै धड़कते दिल से जाकर अपना हाथ बुआ के पैरो पर घुटनों और टखनो के बीच मांसल हिस्से पर रखा
वहां हाथ रखते ही शारीर झनझना उठा , लगा जैसे बिजली के नंगे तारो को छु लिया , मैंने अपनी जिन्दगी में ऐसा चिकना , मुलाएम और गुदाज चीज को नहीं छुआ था
अब मै बुआ के पैरो को नीचे से जांघो तक दबाने लगा
अनुभवहीन होते हुए भी मानवीय प्रकृति मेरा मार्गदर्शन कर रही थी और मेरी कोशिश ये थी कि घाघरे को क्रमशः शरकाकर चुतरों के ऊपर कर दिया जाय
घाघरा धीरे-धीरे ऊपर शरक रहा था और मेरा हाथ जांघो कि गहराई नाप रहा था, तभी पैंटी कि झलक मिली और मेरी सांस भारी होने लगी
चूँकि बुआ थोडा भी बिरोध नहीं कर रही थी इसलिए मेरा साहस बढ़ रहा था
अब मैंने घाघरा रूपी दीवार को ख़त्म करने का निर्णय लिया और जांघो से पीठ कि तरफ बढ़ना शुरू किया
जैसे ही मेरा हाथ चुतरों पर पंहुचा मैंने उसे हलके से दबाया तो बुआ के मुंह से हल्की सिसकी निकल पड़ी
हाथ पीठ तक ले जाकर घाघरे को कमर के ऊपर कर दिया और फिर सीधा वापस जांघो पर आकर दबाना - सहलाना शुरू कर दिया
अब मै केवल जांघो के जोड़ो को और चुतरों को दबा रहा था , बीच - बीच में चुतरों कि दरारों में भी उँगलियाँ चला देता
तभी बुआ पलट गयी , अब वो पीठ के बल लेटी थी , आँखे बंद थी और गहरी साँसे ले रही थी
मैंने एक बार बुआ के चेहरे कि तरफ देखा और फिर अपना ध्यान अस्त-व्यस्त पैंटी से ढकी हुई पुए जैसी फूली हुई बुर कि तरफ केन्द्रित कर दिया
मैंने पैंटी के ऊपर से अपनी हथेली से बुआ के बुर को सहलाया, बुआ सिसकी ..
पूरी पैंटी भींगी हुई थी , पहले तो मै पूछना चाहा कि बुआ आपने थोडा मूत दिया है क्या ? फिर खुद ही मैंने प्रेम के अन्तरंग क्षणों में कुछ बोलना ठीक नहीं समझा
मै अहिस्ते -अहिस्ते सहलाता रहा , बुआ हौले -हौले सिसकती रही
तभी मैंने जोर से बुर को पूरी हथेली में भरकर दबाया और बुर के ऊपर से पैंटी को बगल में खिसकाकर अपनी एक ऊँगली बुर में घुसा दिया
बुआ चींखकर आधी उठ के बैठ गयी और मेरा दाहिना हाथ , जिसकी ऊँगली बुर के अन्दर थी , अपने बाएं हाथ से पकड़ लिया
वो मेरा हाथ हटा भी नहीं रही थी , उसकी आँखे नशीली , मुह खुला हुआ और होंट सूखे थे
कुछ देर तक वो मुझे ऐसे ही देखती रही और अचानक मेरे गले में बाहें डालकर मेरे होटों पर अपने होंट रखकर मुझे चूमने लगी
फिर मुझे अपने ऊपर गिरा कर खुद लेट गयी
उसकी दोनों टांगों के बीच मेरा कमर था जिसके ऊपर उसने अपनी टांगो को उठाकर मेरे पैरो के इर्द-गिर्द लपेट रखा था
ऐसे में मेरा लंड जो पहले ही वासना में फुफकार रहा था , अपनी पहली सखी 'बुआ की बुर' को इतना नजदीक पाकर मचलने लगा और कपड़ो के अन्दर से ही उसे अपनी कठोरता का एहसास दिलाने हेतु हल्की-हल्की थपकी देने लगा
बुआ की बांहों का घेरा मेरी पीठ पर कस रहा था और नरम चुंचियां मेरे सीने से रगड़ खा रही थी
हम दोनों एक - दुसरे के होंटों को चूसने लगे
मैंने अपने दोनों हाथो से उसकी दोनों चुंचियो को भींच रहा था और बीच - बीच में निप्पल को चुटकी से मसल देता , वो कसमसा रही थी
अब बुआ ने मुझे अपने ऊपर से गिराकर बगल में लिटा लिया और अपनाहाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को कपड़ो के ऊपर से सहलाने लगी और फुसफुसाई - राजन जल्दी कर ले नहीं तो माँ आ जायेगी
मैंने भी उनकी पैंटी को खीचकर पैरो से बाहर निकाल दिया
अब बुआ बिलकुल नंगी थी और मैं बुआ के चिकनी बुर को अपनी हथेली से सहला रहा था , फिर बुआ ने मेरा पाजामा ढीला कर मेरे लंड को बाहर निकाल लिया
लंड बाहर आते ही बुआ बिलकुल चौंक गयी और कूदकर बिस्तर से उतरकर खड़ी हो गयी और अपने मुह को हथेली से ढकती हुई बोली - हाय राम इतना बड़ा !! तुम आदमी हो ? तुम तो जानवर लगते हो
मैंने घबराते हुआ पूछा -क्या हुआ बुआ ? बुआ बोली इतना बड़ा लंड कहीं आदमी का होता है
मौका हाथ से निकलते देख मैंने समझाते हुए कहा - बुआ सबका इतना बड़ा ही होता है , आपने कौन सा किसी का देखा है
बुआ बोली - नहीं मैंने कई लोगो का देखा है खिड़की से बाहर सड़क पर पेशाब करते हुए , बाप रे तुम्हारा कितना मोटा और बड़ा है मेरी तो फट ही जायेगी
(मै मन ही मन सोचने लगा कहीं सचमुच कुछ गड़बड़, कोई बिमारी तो नहीं है , बचपन में जब आम के बगीचे में अपने दोस्तों के साथ जाता था तो सुसु करते समय उनका नूनी देखा करता था , उन सब से उस समय भी मेरा दूना था और सब मुझे गधा कहकर चिढाते थे , उसके बाद बड़े होने पर किसी के साथ तुलना करने का मौक़ा ही नहीं मिला, न ही अपना खुद कभी नापा ) फिर मैंने बुआ से प्रत्यक्ष बोला - कुछ नहीं होगा बुआ , सरसों तेल लगा के करूँगा देखना तुम्हे पता भी नहीं चलेगा
बुआ थोडा शांत होते हुए बोली -अब इस अबस्था में सरसों तेल लाने किचेन में कौन जाएगा , वहां ड्रेसिंग टेबल पर नारियल तेल है वही लगा लो
फिर मैंने नारियल तेल लगा कर लंड को चिकना कर लिया
बुआ टाँगे फैला कर लेट गयी और अपने प्रथम मर्दन का आँखे मूंदकर इन्तजार करने लगी
मैंने लंड को बुर के छेद पर टिकाकर जोर लगाने लगा लेकिन हर बार असफल हो जाता
अब इसे मेरा अनारीपन कहिये या नारियल तेल की चिकनाई का कमाल या कुवांरी चूत के कपोतो का कड़कपन , मै चूत के अन्दर घुस ही नहीं पा रहा था
जिस सुरंग को पैंटी के अन्दर भी उँगलियों ने एक झटके में ही ढूंढ़ निकाला था उसी सहचरी सुरंग में मेरा लंड उसे देखकर भी नहीं घुस पा रहा था
कुवांरी चूत चोदने में कितना जोर लगता है पहली बार महसूस कर रहा था
फिर बुआ ने अपने हाथो से लंड को पकरकर एक जगह रखा और मुझे पेलने के लिए कहा
मैंने पूरा जोर लगाया ,लंड का सुपाड़ा चूत के कपोतो को चीरता हुआ अन्दर घुसा , बुआ चींखी .., पहले मैंने बुआ के मुह पर हाथ रखा और पेलना रोक लिया और बोला - चीखकर लोगो को इक्कठा करेगी क्या
फिर मैंने धीरे -धीरे एक चौथाई लंड बुर में घुसा दिया और उतने हिस्से को आगे पीछे करके चोदने लगा
बुआ सिसकने लगी .... फिर मैंने एक जोर का झटका मारा ... मेरा आधा लंड बुर की गहराई नापने लगा
बुआ फिर चीखकर दोहरी हो गयी और मुझे धक्का देकर गिरा दिया
चूत खून से सन गया था और खून की कुछ बुँदे मेरे लंड पर भी चमक रही थी
बुआ रोने लगी -हे भगवान् ! साले ने फाड़ दिया मेरी बुर को .. जानवर कहीं का
मैंने प्यार से पुचकारना चाहा वो मेरी तरफ गुस्से से देखी और एक कपड़ा लेकर अपनी बुर पर रखकर दबाने लगी
फिर उठकर फटाफट कपडे पहनकर बाथरूम में भाग गयी
मैंने भी अपने कपडे पहने और अपनी जल्दबाजी को कोसता हुआ अपने घर चला आया
घर पर रात में मुझे लंड में काफी जलन महसूस हुआ , अगले दिन नहाते समय देखा की मेरा लंड कई जगह से छिल गया है और सुपाडे के ऊपर की चमड़ी भी ज्योइंट से कट गया है
दो दिन लगे उसे ठीक होने में
तीसरे दिन जब मै बुआ के घर शाम को गया तो उसकी माँ घर पर ही थी और उसने बताया की श्यामली बुआ के पाँव में तीन दिन से मोच है
बुआ कमरे में अभी भी मुझसे ठीक से बात नहीं कर रही थी
तीन - चार दिन तक ऐसा ही चलता रहा
फिर मुझे गुस्सा आ गया की शुरुआत तो उस ने ही किया था और नाराज मुझपर हो रही है इसलिए मैने उनके यहाँ जाना छोड़ दिया
एक हफ्ते बाद बुआ मेरे घर आई वो सलवार सूट पहने थी , मै ऊपरवाले कमरे में पढ़ रहा था और माँ कालेज गयी थी
मै टेबल से उठकर खिड़की पे चला गया और वहाँ से नीचे देखने लगा
बुआ मेरे नजदीक आयी और मेरे से सटकर खिड़की से बाहर देखते हुए बोली - राजन नाराज हो ? सौरी
उनके बालो की खुशबु मुझे मदहोश कर रही थी और उनकी बातो से पता नहीं क्या हुआ की मेरी सारी नाराजगी बह निकली और मैंने बुआ के पीछे आकर उनके गर्दन पर किस किया
फिर मैंने उन्हें पीछे से जकड लिया और दोनों हथेलिओ में उनकी दोनों चुचिओं को कपड़ो के ऊपर से पकड़ कर दबाने लगा और इधर मेरा लंड कड़क होकर उनके गांड के दरारों के बीच सलवार के ऊपर ही फिसलने लगा
फिर मैंने सूट के अन्दर हाथ डालकर ब्रा को ऊपर खिसका कर नंगी चुंचियो का मर्दन करने लगा
फिर एक हाथ सलवार-पैंटी के अन्दर घुसाकर बुर को मुट्ठी में भरकर भींचा और एक उंगली बुर के दरारों में चलाने लगा और होटों से उनके गालो को चूमने - चूसने लगा
बुआ की साँसे काफी गहरी चल रही थी और मेरे उंगलियो के ताल पर सिसक रही थी
अचानक वो पलटी और सामने से मुझे बांहों में भरकर मेरे होंटों को चूमने लगी
मैंने भी दोनों हाथ उनके चूतरों पर ले जाकर उसे जोर -जोर से दबाने लगा और अपनी उँगलियों से गांड के छेद को छेड़ने लगा , वो उत्तेजना में थरथरा रही थी
फिर मैंने बुआ को गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और सलवार एवं पैंटी को उतारकर गीली चूत को निहारने लगा
वो बोली इसे क्या देख रहा है मुझे बहुत शर्म आ रही है और तू अपना भी तो खोल
मैंने अपना लोअर उतारकर अपने खड़े लंड को बुआ के हाथ में पकड़ा दिया
वो बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी और बोली देख ये तो मेरी मुट्ठी में भी नहीं आ रहा है और मेरी चूत अभी बहुत छोटी है , तू ऐसा कर ऊँगली पेल कर ही काम चला ले और मै भी हाथ से सहलाकर तेरा पानी निकाल देती हूँ
मैंने देखा बुआ अभी भी डर रही थी लेकिन मै भी चोदने की जिद पर अड़ा रहा और उनके हाथो से लंड को लेकर चूत के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया और चूत से बहते रस से लंड को सनकर चूत के मुहाने पर टिका दिया
अब मैंने लंड को धीरे धीरे चूत में सरकाना शुरू कर दिया
बुआ ने साँसे खीचकर आँखे बंद कर ली थी और बेडशीट को मुट्ठियों से भींच रखा था
थोड़े लंड के घुसते ही पीड़ा के कारण चेहरा लाल और ठण्ड के महीने में पसीने से तर-बतर हो गया
वो इसबार चीख तो नहीं रही थी लेकिन दर्द से हौले- हौले कडाहने लगी - आँ..आँ ....छोड़ दे ..बबुआ आ.आ आ और उसके आँख से आंसू गिरने लगे , फिर मैं उतने लंड से ही बुआ को चोदने लगा
उसने मुझे जकड लिया और लगभग दो मिनट बाद ही उनका शारीर अकड़ने लगा और वो मध्यम आवाज में चिल्लाई - आआह्ह्ह्ह.. मै गईईईईईईइ.. और तभी मैंने अपने लंड पर हल्का गरम फुहार महसूस किया जिससे मेरे अन्दर जैसे कुछ फूटने लगा और मेरे शारीर से कुछ निचुड़ कर लंड के मध्यम से निकलने लगा
ये था मेरा प्रथम वीर्यदान बुआ के चूत में
इसके बाद हमलोगों को चुदाई का मौका ही नहीं मिला
परीक्षा काफी नजदीक आ गया था और मेरा घर पर दिन में सिर्फ मै रहता था इसलिए मेरा एक दोस्त कंबाइंड स्टडी के लिए मेरे पास आ जाता था
हाँ एक दिन अपने दोस्त के साथ अपने लिंगो की तुलना कर ही ली
उसका तो मेरा आधा ही था , हमने इंच टेप से नापा ...मेरा ८.५ इंच लम्बा और परिधि (गोलाई ) ९.४ इंच था जबकि उसका ५.२५ इंच लम्बा और ५.५ इंच गोलाई था
वो कहने लगा - यार तेरा बहुत बड़ा है, तू किसी कुवांरी लड़की को कर ही नहीं पायेगा
अब मै उसे क्या बताता की एक कमसिन कुवांरी लड़की को तो चोद ही चूका हूँ और आगे मौके नहीं मिलने से परेशान हूँ
बुआ के घर पर उसकी माँ जनवरी की ठण्ड की वजह से अपने घुटने के दर्द के कारण बाहर नहीं निकलती थी और मेरे वहाँ जाने पर वो भी हुक्का लेकर वहीँ दरवाजे पर बैठ जाती
इसलिए हमें मौका नहीं मिल रहा था , हाँ चालाकी से मौका देखकर उनके घर पर हमलोग एक दुसरे को सहला और दबा जरुर लेते थे
बुआ दरवाजे की तरफ पीठ करके कुर्सी पर बैठ जाती और मै सामने
वो सामने से बटन खोलकर चुंचियां बाहर निकाल देती और जैसे ही कोई आनेवाला होता तो मेरे इशारे पर फटाफट चुन्चियों को अन्दर कर लेती , मै बहाने से टेबल के नीचे कई बार झुकता और बुआ नीचे से नाइटी उठाकर और टाँगे फैलाकर अपने गुलाबी चूत के दर्शन कराती
मैं नीचे पैर के अंगूठे से बुआ के बुर के फांको को छेड़ते रहता और वो मस्ती में अपने होंटों को काटती रहती
मैंने टेबल के नीचे अँधेरे में देखने के लिए एक पेन-टॉर्च खरीद लिया था
बस इतना ही कुछ हो पता
इसी बीच हमने परीक्षा दिया और इधर बुआ की शादी ठीक हो गयी
ठीक उसी दिन मेरे ममेरे भाई की भी शादी थी
माँ मुझे उधर मामा के यहाँ जाने को कही क्योंकि गर्मियों की छुट्टी से पहले उन्हें कालेज का हिसाब - किताब क्लियर करना था लेकिन मैं बुआ को आखरी बार ठीक से देखना चाहता था
बुझे मन से मै मामा के यहाँ चला गया
पहले तो मामी ने माँ के नहीं आने काफी शिकायत की लेकिन मैंने जब उन्हें बताया की माँ गर्मियों की छुट्टी में आ जायेगी तो मान गयी
अगले दिन शादी थी , घर में काफी लोग आये हुए थे
रात को सारे मर्दों को सोने का इंतजाम दलान में था वो भी नीचे दरी पर , मुझे सारी रात नींद नहीं आयी
अगले दिन हम बारात के साथ छपरा( बिहार ) पहुंचे
चूँकि मेरे मामा को और कोई लड़का नहीं था केवल दो लड़कियां थी इसलिए दुल्हे का इकलौता भाई होने के कारण मेरा भी खूब आव - भगत हो रहा था
शादी की रशमो के दौरान दुल्हे की माँ - बहन – मौसी- बुआ को खुलेआम गालियाँ दी जा रही थी वो भी लाउडस्पीकर से , ये सब सुन के मै हैरान था और छिनाल एवं चुदाई जैसे शब्दों को सुनकर गनगना भी रहा था
तभी ख्याल आया की दुल्हे की बुआ तो मेरी माँ है और गालियों में उसे भी छिनाल , चुदक्कर आदि उपसंहारों से नवाजा जा रहा है .. माँ का गठीला बदन याद आया और उनके चुदने की कल्पना मात्र से ही शारीर में अजीब सा रोमांच भर आया
शादी के बाद हमलोग अगले दिन दोपहर तक वापस आ गए
दिन भर रश्मों - रिवाजो के बाद जब रात को सोने की बारी आयी तो मै परेशान हो गया , तीन रातों से मै ठीक से सोया नहीं था
मैंने मामी को बताया कि मै दालान में नहीं सोना चाहता
वहां बस तीन कमरे थे , एक दूल्हा- दुल्हन के लिए रिजर्ब था , एक में दहेज़ का सामन और फल-मिठाइयों का टोकरा ठुंसा पड़ा था और एक कमरे में संभ्रांत महिलायों का इंतजाम था
फिर मामी ने कहा - ठीक है , राजन तुम दुसरे कमरे में सो जाओ , घर में कम से कम एक मर्द तो रहेगा और तुम्हारे कमरे में रहते चोरों से सामन भी सुरक्षित रहेगा , यहाँ चोरों का बहुत हल्ला है
फिर मैंने बेड से सामन उतारकर इधर- उधर सेट किया , पलंग बहुत बड़ा था
फिर मैंने बिस्तर झाड़कर , कछुआ छाप जलाकर बिस्तर पर लेट गया
चूँकि कमरे में सामन लाने - ले जाने के लिए रुक-रूककर आवाजाही थी इसलिए दरवाजा सिर्फ भिड़ा दिया था , सोचा था जब सब शांत हो जाएगा तब दरवाजा बंद कर लूँगा
लेकिन लेटते ही जाने कब मुझे नींद आ गयी
हाँ , अर्ध-निद्रा में मुझे चूड़ियों की खनक और महिलायों के बोलने की आवाज आ रही थी लेकिन मेरी चेतना नहीं थी
एकाएक कुत्तों के भूंकने से मेरी नींद हलकी खुली तो मुझे चोरों का ख़याल आया , मेरा अर्धचेतन मन तुरंत सक्रिय हुआ और दरवाजे का ख़याल आया
मैंने पेन-टॉर्च निकालकर दरवाजे पर फोकस किया , दरवाजा अन्दर से बंद था
मुझे अच्छी तरह से याद था की मैंने दरवाजा बंद नहीं किया था फिर ये दरवाजा बंद हुआ तो हुआ कैसे ? फिर मै उठकर बैठ गया और बेड पर निगाह केन्द्रित किया तो मुझे कोई सोया जान पड़ा , वो कोई स्त्री थी
वो चित लेटी थी फिर मैंने टॉर्च जलाकर चेहरा देखा , वो मेरी बड़ी ममेरी बहन रागनी थी
शायद बिस्तर पर जगह देखकर और मुझे बच्चा समझकर मामी ने उसे भेज दिया था
उनका दायाँ पैर ( मेरी तरफ वाला ) मुड़ा हुआ था और साडी घुटनों तक उठी हुई थी , दूसरा पैर बिलकुल सीधा था जो जांघो तक नंगी थी
मैंने तुरंत टॉर्च बंद कर दिया और लेट गया
लेकिन चिकनी जांघो के झलक मात्र से नींद मेरी आँखों से कोसो दूर जा चुकी थी , मुझे बुआ याद आ रही थी
फिर मै अपनी ममेरी बहन रागनी के बारे में सोचना शुरू किया
वो २२ साल की थी और ६ साल पहले उनकी शादी हुई थी
२ साल पहले उनका २ साल का एकमात्र लड़का बिमारी की वजह से मर गया था
जीजाजी तक़रीबन एक साल से गल्फ में नौकरी करने चले गए थे
मैंने अपनी घडी देखा उससमय रात का १:१० बजा था
थोड़ी देर बाद मै उठकर पेशाब करने बाहर निकला , आँगन में कई सारी औरते अस्त-व्यस्त हालत में सो रही थी
चांदनी रात की चांदनी में ढेर सारी नंगी चिकनी जांघे और पिंडलियाँ देखकर मेरा लंड फनफना उठा ,पर उतने सारे औरतो के बीच नंगी अधेड़ जवानियों को देखने के लिए टॉर्च जलाने की हिम्मत नहीं पड़ी
कमरे में आकर दरवाजा आहिस्ते से बंद किया एवं बाहर वाली खिड़की के पल्लो को सटा दिया और रागिनी दीदी के पैर के पास खड़ा हो गया
फिर मैंने टॉर्च के शीशे के ऊपर हाथ रखकर जलाया ताकि रौशनी कम हो और चारो तरफ न फैले और उसका फोकस दीदी के पैर के बीच कर दिया
उनका बायाँ पैर जो बिलकुल सीधा था तक़रीबन जाँघों तक बिलकुल नंगी था और दायाँ पैर जो मुड़ा हुआ था वहाँ से साडी के नीचे एक गैप बन रहा था
मैंने टॉर्च उस गैप में बिलकुल साडी के नीचे कर दिया और बिस्तर के साइड में जमीन पर घुटनों के बल बैठकर अन्दर झाकने लगा
आह .... क्या नजारा था ... दीदी ने तो पैंटी भी नहीं पहना था ,जांघो के जोड़ के पास नीचे चुतर का थोडा उभार था जो उनके चूतरों के भी सौलिड होने की चुगली कर रहा था और उसके ऊपर बुर की हलकी दरारें दिख रही थी ,बस पेटीकोट का आखरी हिस्सा ऊपर से लटककर बुर के खुले दर्शन में व्यवधान डाल रहा था
मुझे डर भी लग रहा था आखिर रिश्तेदारी वाली बात थी पर दीदी की बुर देखने का यह सुनहला मौका हाथ से जाने भी नहीं देना चाहता था
फिर मैंने साडी को पेटीकोट समेत थोडा ऊपर करने की कोशिश की लेकिन जैसे ही मैंने थोडा खींचा वैसे ही दीदी थोडा कुनमुनाई
डर से कलेजा मेरे मुह में आ गया , मैंने फट से टॉर्च बंद कर दिया और हाथ बाहर खींच लिया और वहीँ बैठकर अपनी भारी चल रही साँसों को व्यवस्थित करने लगा
थोड़ी देर बाद उठकर बिस्तर पर अपने जगह पर जाकर लेट गया और सोंचने लगा कि अब क्या करूँ ?
तभी मुझे एक उपाय सुझा , मैंने अपना बायाँ पैर मोड़कर दीदी के मुड़े दायें पैर से सटा दिया
सहारा पाते ही उनका पैर मेरे पैर पर लदने लगा
फिर मैंने धीरे-धीरे अपने सटे पैर को वहां से हटाने लगा जिससे उनका पैर मुड़े -मुड़े ही बिस्तर कि तरफ झुकने लगा , फिर मैंने धीरे से अपना पैर वहां से हटा लिया
अब दीदी का एक पैर सीधा , दूसरा मुड़ा हुआ बिस्तर से सटा था और घुटने पर फंसा हुआ पेटीकोट अब कमर तक खिसक गया था
मैंने अनुमान लगाया दीदी अब पूरी नंगी है और मुझे उनकी बुर देखने में कोई परेशानी नहीं होगी
फिर मै उठकर बैठ गया और फिर टॉर्च जलाया ... हे भगवान् ! क्या सीन था ... हलकी झांटो से भरी बुर बिलकुल नंगी थी और बुर के पपोटे थोड़े खुले हुए थे
वैसे बुआ की कमसिन बुर और दीदी की खेली खायी बुर में बाहर से ज्यादा अंतर नहीं दिखाई देता था पर हलकी झांटो से भरी दीदी की सलोनी बुर बड़ी प्यारी लग रही थी
काफी देर तक मै वैसे ही बुर को निहारता रहा और पगलाता रहा
अब मुझे कंट्रोल करना मुश्किल होता जा रहा था , जी कर रहा था अभी दीदी के ऊपर चढ़ जाऊं और पेल दूँ
फिर हाथ बढाकर डरते डरते एक ऊँगली से बुर को छुआ ... जब कुछ नहीं हुआ तो हिम्मत करके ऊँगली को बुर की दरारों में फिराया
बुर मुझे काफी गरम लगी और ऊँगली में चिपचिपाहट का एहसास हुआ
टॉर्च से देखा तो बुर की दरारों से पानी निकल रहा था और रिसकर चूतरों की तरफ जा रहा था
हे भगवान् ! तो क्या दीदी जगी हुई है और मेरे क्रियाकलापों से उत्तेजित हो उठी है ,तभी तो चूत से पानी रिस रहा था
मैंने तुरंत टॉर्च को दीदी के चेहरे की तरफ जलाया
बंद आँखों में ही पलकों की हलकी मूवमेंट मैंने महसूस किया जैसे तेज रौशनी से जबरदस्ती आँखों को बंद कर रही हो
फिर ज़रा नीचे देखा , उनके ब्लाउज का ऊपर वाला हुक खुला था और गदराई बड़ी बड़ी चुंचियां आधी बाहर छलकी हुई थी और मस्त अंदाज में ऊपर नीचे हो रही थी
मैं कन्फर्म नहीं हो पाया की वो जगी या नहीं
मैंने टॉर्च बंद किया और सोंचने लगा की क्या करूँ क्योंकि अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था
फिर मै अपने स्थान पर लेट गया और दीदी की तरफ करवट लेकर अपना एक हाथ दीदी के पेट पर रख दिया जैसे मैं नींद में होऊं
सहलाने की बड़ी इच्छा थी पर मै वैसे ही लेटा रहा, बस अपना पैंट नीचे कर लंड बाहर निकालकर उनके जांघो से थोडा दूर हटकर मुठीयाने लगा
करीब दस मिनट बाद दीदी मेरे तरफ करवट बदली
मैंने फटाफट अपना हाथ लंड हटा लिया नहीं
करवट बदलने के साथ ही उन्होंने एक अपना पैर मेरे पैर के ऊपर रख दिया ....आह ... अब दीदी की नंगी बुर मेरे खड़े नंगे लंड से स्पर्श कर रही थी और उनका मुंह मेरे मुंह से बस इंच भर फासले पर था और उनकी गरम साँसे मेरे चेहरे पर पड़ रही थी ,साथ ही उन्होंने एक हाथ मेरी पीठ पर रख दिया था
अब उनकी बड़ी बड़ी चुंचियां अब मेरे सीने से दबी थी जिसका गुद्दाज एहसास अनोखा ही था
मेरा एक हाथ जो पेट पर था वो उनके कमर पर आ गया था ,जिसे मैंने थोडा नीचे खिसककर उनके चूतरों पर जमा दिया
थोड़ी देर तक मै बिना हिले डुले वैसे ही पड़ा रहा
मै सोंच ही रहा था कि अब कुछ आगे बढूँ तभी मैंने महसूस किया कि दीदी अपनी बुर को मेरे खड़े लंड बहुत हल्का -हल्का रगड़ रही है , लंड के सुपाडे पर हल्का दबाब बनता और फिर हट जाता ...फिर दबाब बनता ..और ये मै उनके चूतरों पर रखे हाथ से भी महसूस कर रहा था
अब शक कि कोई गुंजाइश नहीं थी कि दीदी जगी हुई थी और वासना के चरम पर चुदास से भरी हुईथी तभी अपने छोटे भाई के लंड पर अपना चूत रगड़ रही थी
समय बर्बाद करना वेवकुफी थी , मैंने अपना मुंह आगे बढाकर दीदी के होंटो पर रख दिया और उसे चूसने लगा और हाथ को और नीचे ले जाकर उनके नंगे चूतरों को सहलाने लगा और साथ ही चूतरों को अपने लंड पर दबाने लगा
अपने दुसरे हाथ से उनकी चुन्चियों को भी दबा रहा था
तभी दीदी अपने दोनों हाथो से मेरा चेहरा पकड़ कर मेरे पुरे चेहरे को चूमने लगी , वो मेरे गर्दन और छातियों को भी चूम रही थी और एक हाथ से अपनी ब्लाउज खोलकर अपनी नंगी चुंचियां मेरे मुंह में पकड़ा दिया , मै बच्चे कि तरह उसे चुसना शुरू कर दिया
अब वो सिसिया रही थी ... इ.इ.इ.श.श.श ... अब मैं उनके ऊपर चढ़ गया और एक झटके में अपने झनझनाते लंड को दीदी कि पनिआइ बुर में पेल दिया
वो चिंहुकी... आ..आ..आ..ह..हह....ज.ज..र.आ.आ..धी..रे.पेलो..भ. इ.या एक.. साल बाद चुद रही हूँ.......और तुम्हारा बहूत तगड़ा है .....ठी.क... है ..दी..दी तू..जै.से. .क..हे..गी वैसे .. ही चोदुंगा..ये कहते हुए मैंने धीरे धीरे दीदी को चोदना शुरू किया
कब मेरा पूरा लंड दीदी कि बुर में घुस गया पता ही नहीं चला , और जैसे ही मुझे पता चला कि पूरा लंड अन्दर घुस चूका है मैंने जोर जोर से चोदना शुरू किया
नीचे दीदी सिसकने लगी थी .. मा..र.. डा ला आ ..रे...बहनचोद .. इतना जबरदस्त चोदु निकलेगा .... ये तो सोचा ही नहीं ,..था ..मै तो गयी.. ई ...ई ..ई
इधर मैंने भी आठ दस धक्के लगाने के बाद दीदी कि बुर में ही झड़ने लगा
दीदी ने कसकर मुझे अपने बदन से चिपका लिया और झड़ने के काफी देर बाद तक मुझे अपने बांहों में समेटे रही
Friday, August 13, 2010
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