हमारी शादी तो हो गयी हम दोनो इतने थक गाये थे की हमने सोचा की ऐसे माहॉल में पहली चुदाई में मज़ा नहीं आएगा. हम ने दो दिन आराम किया. तीसरे दिन कलपु अपने मैके चली गयी बीन चुदवाये. उन की चाची और दुसरी औरतों को जब पता चला की कल्पना कम्वारी ही वापस आई थी तब उन्हें मेरी मर्दानगी पर शक पड़ा. दाल में कुछ काला है वरना दूल्हा ने दुल्हन को चोदा क्यूं नहीं ? कल्पना को लेकिन मुज़ पर पूरा विश्वास था. शादी से पहले एक दो बार मेने उस की चुचियाँ दबा दी थी और मेरा लंड हाथ में पकड़ा दिया था. उसे पता था की मेरा लंड खड़ा हो सकता था, चोद ने के काबिल था. एक हपते बाद कल्पना वापस आने वाली थी. जिस दिन आए उसी दिन में उसे चोद ने वाला था, सुहाग रात या ना सुहाग रात.
आख़िर वो दिन आ गया. शाम के पाँच बजे उस के भैया मनोज कार से उसे ले आए. कल्पना के साथ उस की मौसी की लड़की, बारह साल की काजल भी थी.
मनोज बोले : कल्पना को कंपनी देने के लिए मौसी ने काजल भेजी है आप को पसंद ना हो तो में वापस ले चलूं.
मुज़े पसंद तो नहीं था लेकिन कहा : ना, ना रहने भी दीजिए. में जब काम पर जऔ तब कल्पना घर में अकेली ही होगी ना ?
पिताजी बिज़नेस के वास्ते बाहर गाँव चले गये थे. घूमने के बहाने नेहा को साथ ले गये थे और छे सात दिन बाद लौटने वाले थे. में घर में अकेला था. चाई नाश्ता कर के मनोज चले गये काजल की परवाह किए बिना तुरंत मेने कल्पना को बाहों मे भर लिया.
उस ने मुज़े आलिनगान देने दिया लेकिन जैसे मेने किस करने के लिए उस का चहेरा पकड़ा वो छटक कर भाग गयी और बोली : अभी नहीं, काजल को सो जाने दो. इतनी जल्द बाज़ी करने से मज़ा मर जाएगा. रात होने में अब कितनी देर है ? चलो में कुछ खाना बना लूं ?
में : खाना बनाने की ज़रूरत नहीं है आज हम होटेल में खाएँगे. लेकिन पहले में तुज़े कुछ दिखा उन, आ जा.
कलपु : क्या दिखाते हो ? उस दिन हमारे घर आए थे और दिखाया था वो ?
उस का मतलब था मेरी शरारत से. शादी से पहले एक बार जब में उस के घर गया था तब मेने उसे मेरा तना हुआ लंड दिखाया था और कहा था की उन के लिए ही मेने इस को संभाल रक्खा था, किसी ओर लड़की को दिया नहीं था.
में उसे शयन खंड में ले गया. मेने ख़ुद कमरा सजाया था. ढेर सारे फूल ले आया था. बड़े पलंग पर मोटी फोम की गद्दी डाल दी थी. रेशमी चादर बिछा दी थी. कमरे में चारों ओर फूल ही फूल लगाए थे. बाथरूम में नाइट ड्रेस और टॉवेल्स रख दिए थे. रात का खाना खा कर हम तीनो घर आए तब दस बज गये थे, में कलपु को चोद ने के लिए अधीर हो रहा था. इतने में काजल बोली : दीदी, मुज़े नींद आ रही है अब ये काजल थी तो बारह साल की लेकिन उस का बदन था सोलह साल की लड़की जैसा. कल्पना ने बताया की एक साल से उस की माहवरी शुरू हो गयी थी. वाकई सीने पर बड़े श्री फल जैसे गोल स्तन थे, चौड़े भारी नितंब थे और भारी भारी जांघें थी. कल्पना ने कहा की कंपनी देना ये तो बहाना था, हक़ीकत में मौसी की इछा थी की काजल हम से कुछ सेक्स के बारे में सीखे. मेने शरारत से कहा : एक सुहाग रात में दो दो कलियाँ चोद ने मिलेगी मुज़े ? कल्पना : धत्त, कैसी बातें करतें हें ? वो तो बेचारी अभी बारह साल की ही है में : बारह हो या तेरह, उस की चुत कैसी है ? लंड ले सके इतनी खिल गयी है या नहीं ? जिस तरह उस के स्तन और नितंब दिखाई दे रहे हें इस से तो लगता है की उस की चुत भी तैयार ही होगी. कल्पना : जनाब, पहले एक से तो निपट लीजिए. दुसरी का बाद में सोचिएगा.
कल्पना ने काजल को दूसरे कमरे में बिस्तर दिया और वो सो गयी हम दोनो हमारे शयन खंड में गये.
अंदर जाते ही कल्पना मेरे पाँव पड़ गयी मेने उसे उठा लिया और बाहों में भिंस डाली. उस ने अपना चहेरा मेरे सीने से लगा दिया. मेरे लंड को तन जाने में देर ना लगी मेने कहा : प्यारी, बाथरूम में नाइट ड्रेस रक्खा है वो पहन ले, जिस से हमे आज जो करना है वो आसानी से कर सकें.
मेरा इशारा चुदाई से था, जान कर वो शरमाई और झट पट बाथरूम में चली गयी थोड़ी देर बाद उस ने बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खोला और अंदर से बोली लाइट बंद कर दीजिए ना.
में समज़ता था. नाइटि पहन कर उसे शरम आ रही थी. मेने कमरे की लाइट बंद कर दी तब वो निकली और दौड़ कर पलंग पैर जा बैठी. मेने बाथरूम में जा कर सब कपड़े उतर दिए स्नान किया और नाइट गवन पहन लिया. परफ़्यूँ लगा कर में बाहर आया. रोशनी के लिए बाथरूम का दरवाज़ा खुला रक्खा.
कल्पना पलंग पैर बैठी थी, सिनेमा में जैसे दिखाते हें वैसे. में उस के सामने जा बैठा. नज़र झुकाए होठों पैर मुस्कान लिए वो उंगलियाँ से नाइटि का कोना मसल रही थी. मेने उस के हाथ पकड़े. हथेलियों पैर मेहन्दी लगाई हुई थी. मेने कहा : अरे वाह, बढ़िया मेहन्दी लगाई है हाथ पर ही है या ओर जगह पैर भी ?
नज़र नीची रखते हुए वो धीरे से बोली : पाँव पर भी लगाई है
दोनो पाँव खुला कर मेने मेहन्दी देखी. वाकई डिज़ाइन अच्छी थी. मेने कहा : बस ? ओर कहीं लगाई है
वो ज़्यादा शरमाई, चहेरा नीचा कर दिया और धीरे से हा बोली. मुज़े पता था उस ने स्तन पैर भी लगाई थी. ठौडी नीचे उंगली रख कर मेने उस का चहेरा उठाया. शर्म से उस ने आँखें मूँद ली. मेने गाल पैर हाथ फ़िरया और कहा : प्यारी, मेरे सामने तो देख. मेरा चहेरा पसंद नहीं है क्या ?
उस ने मेरी दोनो कलाइयों पकड़ ली और मुँह घुमा कर हथेली चूम ली. आगे झुक कर मेने गाल पर हलका सा चुंबन किया. उस के रोएँ खड़े होते में देख सका. मेने मेरा गाल उस के गाल साथ लगा दिया. कंधों पर हाथ रख कर उसे खींच लिया. वो ऐसे बैठी थी की उस के घुटनो सीने से लग गये थे. मेने धीरे से उस के पाँव लंबे किए. उस ने अपने हाथों की चौकड़ी बना कर सीने से लगा दी जिस से स्तन ढक गये थे. मेने हाथ हटाने का प्रयास किया लेकिन नाकामयाब रहा. बाहों मे ले कर मेने उसे आलिनगान दिया. मेरा मुँह उस के गाल चूमाता रहा और होले होले उस के मुँह की ओर जाने लगा. आख़िर मेरे होठों ने उस के होठ छू लिए ज़टके से तुरंत उस ने मुँह हटा लिया. मेने फिर उस के मुँह चूमने का प्रयत्न इया लेकिन हर वक़्त वो अपना सिर घुमा कर मुँह हटा देती रही. आख़िर मेने उस का सिर पकड़ लिया और बलपूर्वक मुँह से मुँह चिपका दिया. वो उन्न्न उन्न करती रही लेकिन मेने उसे छोड़ा नहीं. जब मेने उस के होठ पर ज़बान फिराई और मुँह में ले कर चूसा तब उस को मज़ा आने लगा और मुज़े किस करने दिया. दो मिनिट की लंबी किस जब छुटी तब उस के होठ मेरे थुम्क से गिले हो गये थे.
में आगे सोचूँ इस से पहले उस ने मेरा सिर पकड़ कर मेरे मुँह से मुँह चिपका दिया. किस करने में उस ने पहल की जान कर मेरी उत्तेजना बढ़ाने लगी अब की बार मेने उस के होठ मेरे होठों बीच लिए और अच्छी तरह चुसे. मेरे लंड ने बग़ावत पुकर ली. मेने कहा : ज़रा मुँह खोल.
जैसे उस ने मुँह खोला मेने मेरी जीभ उस के मुँह में डाल दी. जीभ से मेने उस का मुँह टटोला. लंड जसी कड़ी बना कर अंदर बाहर कर मेने उस के मुँह को चोदा. वो जलदी से गरम होने लगी उस ने अपने हाथ मेरे सिर पैर रख दिया. जब मेने जीभ निकाल दी तब उस ने अपनी जीभ मेरे मुँह मे डाली और मेरे मुँह को चोदा. हम दोनो की साँसें तेज़ होती चली.
किस चालू ही थी और मेरे हाथ उस की कमर पैर उतर आए. अपनी ओर खींच कर मेने उसे आलिनगान दिया. इस वक़्त उस के हाथ उपर उठे हुए थे, सीने पर नहीं थे. उस के स्तन मेरे सीने से दब गये मुज़े कुछ शरारत सूझी, में झटके से अलग हुआ और बोला : अरे, अरे मेरे सीने में ये क्या चुभ गया ? देखूं तो ?
इस बहाने मेने मेरे हाथ उस के सीने पैर घुमा लिए और स्तन टटोल लिए उस ने ब्रा पहनी नहीं थी. नाइटि के आर पैर उस की कड़ी नीपल में ढूँढ सका. उंगली से नीपल टटोल कर में बोला : यही है कुछ नोकदर जो मेरे सीने में चुभ गया था. क्या है वो ? मेरी कलाई पकड़ कर उस ने मेरे हाथ स्तन पर से हटाते हुए वो धीरे आवाज़ से बोली : क्यूं सताते हो ? आप जानते तो हो. में : प्यारी, इतने अच्छे तेरे स्तन कब तक छुपाओगी मुझ से ? देखने तो दे. मेने फिर से स्तन पैर हाथ रक्खा. इस वक़्त उस ने विरोध किया नहीं. अपनी बाहें मेरे गले में डाल कर मुझ से लिपट गयी मेने नाइटि के हूक खोलने शुरू किए. नाइटि खुली और मेरी हथेली नंगे स्तन पैर जम गयी उस ने लेकिन गर्दन पर की पकड़ जारी रक्खी जिस से में स्तन नज़रों से देख ना सकूँ. चहेरा घुमा कर में फिर फ़्रेंच किस करने लगा, एक हाथ से स्तन सहालाने लगा. ये करते हुए धीरे से मेने उसे धकेल कर पलंग पैर चित लेटा दिया. मेरा आधा बदन उस पर छा गया , मेरे सीने से स्तन दब गाये मेरे कमर और कुले बिस्तर पैर रहे. मेरा तना हुआ लंड बिस्तर के साथ दब गया.
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Tuesday, September 7, 2010
Monday, August 30, 2010
गीता भाभी ने चोदना सिखाया
मैं पल्लव ३२ साल का हूं और यह कहानी तब की है जब मैं २५ साल का था।
मैं दसवीं के विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाया करता था। मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता था, पति-पत्नी, उनकी 5 लड़कियाँ, एक लड़का और बच्चों के दादा। बड़ी लड़की दसवीं में पढ़ती थी। आदमी दिल्ली में नौकरी करता था।
मुझे ट्यूशन पढ़ाते देख गीता भाभी ने मुझे अपने घर बुलाया और कहा -मेरी बेटी की दसवीं की परीक्षा है, घर की हालत ठीक नहीं है, क्या आप उसको कभी कभार दस-बीस मिनट कभी भी शाम को या रात में थोड़ा पढ़ा देंगे?
मैंने कहा- हाँ ! क्यों नहीं ! कल से ही आ जाउंगा।
दूसरे दिन फ़िर उसने मुझे कहा तो रात को मैं उनके घर चला गया, थोड़ी देर पढ़ाया और चला आया। फ़िए मैं रोज़ जाने लगा। पढ़ाई के समय गीता भाभी हमारे पास ही बैठती थी।
एक रात जब मैं पढ़ा रहा था तो गीता ने अपनी बेटी के सामने ही कहा- आप बहुत थक जाते होंगे, लाईये मैं आपके पैर दबा दूं !
पता नहीं क्यों मैं भी इन्कार ना कर सका और वो मेरे पैर दबाने लगी। मेरे शरीर में कुछ हलचल सी होने लगी। थोड़ी देर में मैं वहाँ से चला आया पर रात भर नींद नहीं आई क्योंकि पहली बार किसी औरत ने मेरे बदन को छुआ था।
अगले दिन से वो रोज़ मेरे पाँव दबाने लगी, पर उसका हाथ धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ने लगा। एक दिन वो जिद करके तेल लगाने लगी। उस समय मैं उसकी बेटी को बायोलोज़ी पढ़ा रहा था। अचानक वो मेरे लण्ड पर तेल लगाने लगी। मेरा लण्ड खड़ा हो गया।जब मैंने उसकी ओर देखा तो वो मुस्कुराने लगी। जब मैंने आने लगा तो उसने कहा कि पेट दर्द की कोई दवाई हो तो देना।
करीब ९ बजे मैं दवाई देने गया तो दरवाज़ा खुला था, गीता के ससुर सोए हुए थे, मेर हाथ पकड़ कर वो मुझे अपने कमरे में ले गई। बच्चे दूसरे कमरे में सोए हुए थे। उसने भीतर से दरवाज़ बन्द किया और तेल लेकर आई और बोली- उस समय ठीक से लगा नहीं पाई थी। वो तेल लगाने लगी पर कुछ देर बाद तेल के बहाने वो मेरे लण्ड को सहलाने लगी। मेरा लण्ड तो पूरा खड़ा हो गया। मेरी सहनशक्ति समाप्त हो गई। मैंने उसे बाहों में कस कर जकड़ लिया और धीरे धीरे उसे बिछावन पर ले गया।
बिछवन पर जाते ही उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मैं भी कुछ नहीं बोला। वो साली मेरा लण्ड खाने को बेताब थी ही। उसने सहलाते सहलाते मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। लण्ड चूसते हुए वो अपनी कमर भी ऊपर नीचे कर रही थी। मैं तो जैसे ज़न्नत में था। मेरे मुंह से ओह! भाभी और जोर से ! ओह गीता ओह ! मेरी रानी और तेज़ ! जैसे शब्द निकल रहे थे। उसकी कमर ऊपर नीचे होती देख मैंने पूछा- भाभी ! यह क्या कर रही हो, तो उसने झट मेरा हाथ पकड़ कर अपनी बुर पर रख दिया। उससे पानी निकल रहा था।
अब उसने मेरी उंगली अपनी बुर में जोर से ठेल दी। उंगली घुसते ही उसने ज़ोर से ओह! कहा और बोला- देवरजी एक और घुसा दो और तेजी से अन्दर बाहर करो और मेरी बुर को चोदो।
मैंने पूछा- क्या इसे ही चुदाई कहते हैं?
तब उसने कहा- देवर जी ! तुम पढ़ाई में तो काफ़ी तेज़ हो पर चुदाई में निरे बुद्धू हो। यह तो तुम उंगली से चोद रहे हो, पर जब तुम अपना यह मोटा हथियार मेरी बुर में घुसाओगे तब होगी असली चुदाई। अप्र वो सब बाद में। अभी तो तुम 69 की अवस्था में होअक्र उंगली ही अन्दर बाहर करो।
मैं वैसा ही करने लगा। वो सेक्स के जोश में गंदी गंदी बातें कहने लगी। मैं पेल रहा था और वो कहती जा रही थी- जोर से और जोर से मेरे राज़ा ! मेरे पति ने तो कभी ऐसे प्यार ही नहीं किया, साला सिर्फ़ लण्ड पर तेल मालिश करवाता है। जब लण्ड खड़ा होता तो मेरे गर्म ना होते हुए भी लण्ड मेरी बुर में घुसा देता है और अपना धात जल्दी ही गिरा कर सो जाता है। इस भौंसड़ी बुर ने भी छः कैलेण्डर निकाल दिए पर इसकी आग शान्त नहीं हुई। पर राज़ा तुम नादान हो, जैसा मैं कहती हूँ वैसा करो, तुम चुदाई सीख जाओगे। मैं तुम्हारा लण्ड चूस कर इस पर तेल लगा कर घोड़े जैसा बना दूंगी, फ़िर उस घुड़लण्ड से रोज़ चुदवाउंगी।
इतना कह कर गीता ने फ़िर मेरा लण्ड चूसना शुरू कर दिया। मैं भी अपनी उत्तेज़ना में उसकी बुर में अपनी तीन उंगली तेजी से घुसा निकाल रहा था, पर छः बच्चों के जन्म ने उस्की बुर का भौन्सड़ा बना दिया था। अतः उंगली कहाँ जाती, पता ही नहीं चलता। वो वाह रे मेरे राज़ा ! तेजी से करो, जैसे शब्द कह कर शान्त पड़ गई, वो झड़ गई।
इतने में मैंने कहा- भाभी ! मेरे भीतर से कुछ निकलने वाला है !
इतना सुन कर उसने मेरे लण्ड को मुंह से निकाला और हाथ से मेरे लण्ड को आगे पीछे करने लगी। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। कुछ ही देर में मेरे लण्ड से फ़व्वारा निकला और उसकी साड़ी पर गिरा। उसने हंसते हुए कहा कि देवरजी सारी साड़ी खराब कर दी ना ! अब नई साड़ी ला कर देना। पर कोई बात नहीं, अब तो मेरी साड़ी रोज़ खराब होनी है, क्योंकि जब तक तेरे भैया नहीं आ जाते, मैं तो तुमसे रोज़ चुदवाउंगी, तुझे चुदाई में होशियार कर दूंगी। पर उनके आने के बाद भी मुझे छोड़ना नहीं, उनका लण्ड तो पुराना हो गया है पर तेरा तो जवान है। मैं समय निकाल कर तुमसे जरूर चुदवाउंगी। इतना कह कर वो बाहर गई, पानी लाई और मेरा लण्ड साफ़ किया और फ़िर से उसे चूसने लगी। तो मैंने कहा- अभी जाने दो, कल आउंगा।
उसने कहा- ठीक है ! कल तुम्हें असली चुदाई सिखाउंगी और मज़ा दूंगी।
मैं दसवीं के विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाया करता था। मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता था, पति-पत्नी, उनकी 5 लड़कियाँ, एक लड़का और बच्चों के दादा। बड़ी लड़की दसवीं में पढ़ती थी। आदमी दिल्ली में नौकरी करता था।
मुझे ट्यूशन पढ़ाते देख गीता भाभी ने मुझे अपने घर बुलाया और कहा -मेरी बेटी की दसवीं की परीक्षा है, घर की हालत ठीक नहीं है, क्या आप उसको कभी कभार दस-बीस मिनट कभी भी शाम को या रात में थोड़ा पढ़ा देंगे?
मैंने कहा- हाँ ! क्यों नहीं ! कल से ही आ जाउंगा।
दूसरे दिन फ़िर उसने मुझे कहा तो रात को मैं उनके घर चला गया, थोड़ी देर पढ़ाया और चला आया। फ़िए मैं रोज़ जाने लगा। पढ़ाई के समय गीता भाभी हमारे पास ही बैठती थी।
एक रात जब मैं पढ़ा रहा था तो गीता ने अपनी बेटी के सामने ही कहा- आप बहुत थक जाते होंगे, लाईये मैं आपके पैर दबा दूं !
पता नहीं क्यों मैं भी इन्कार ना कर सका और वो मेरे पैर दबाने लगी। मेरे शरीर में कुछ हलचल सी होने लगी। थोड़ी देर में मैं वहाँ से चला आया पर रात भर नींद नहीं आई क्योंकि पहली बार किसी औरत ने मेरे बदन को छुआ था।
अगले दिन से वो रोज़ मेरे पाँव दबाने लगी, पर उसका हाथ धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ने लगा। एक दिन वो जिद करके तेल लगाने लगी। उस समय मैं उसकी बेटी को बायोलोज़ी पढ़ा रहा था। अचानक वो मेरे लण्ड पर तेल लगाने लगी। मेरा लण्ड खड़ा हो गया।जब मैंने उसकी ओर देखा तो वो मुस्कुराने लगी। जब मैंने आने लगा तो उसने कहा कि पेट दर्द की कोई दवाई हो तो देना।
करीब ९ बजे मैं दवाई देने गया तो दरवाज़ा खुला था, गीता के ससुर सोए हुए थे, मेर हाथ पकड़ कर वो मुझे अपने कमरे में ले गई। बच्चे दूसरे कमरे में सोए हुए थे। उसने भीतर से दरवाज़ बन्द किया और तेल लेकर आई और बोली- उस समय ठीक से लगा नहीं पाई थी। वो तेल लगाने लगी पर कुछ देर बाद तेल के बहाने वो मेरे लण्ड को सहलाने लगी। मेरा लण्ड तो पूरा खड़ा हो गया। मेरी सहनशक्ति समाप्त हो गई। मैंने उसे बाहों में कस कर जकड़ लिया और धीरे धीरे उसे बिछावन पर ले गया।
बिछवन पर जाते ही उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मैं भी कुछ नहीं बोला। वो साली मेरा लण्ड खाने को बेताब थी ही। उसने सहलाते सहलाते मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। लण्ड चूसते हुए वो अपनी कमर भी ऊपर नीचे कर रही थी। मैं तो जैसे ज़न्नत में था। मेरे मुंह से ओह! भाभी और जोर से ! ओह गीता ओह ! मेरी रानी और तेज़ ! जैसे शब्द निकल रहे थे। उसकी कमर ऊपर नीचे होती देख मैंने पूछा- भाभी ! यह क्या कर रही हो, तो उसने झट मेरा हाथ पकड़ कर अपनी बुर पर रख दिया। उससे पानी निकल रहा था।
अब उसने मेरी उंगली अपनी बुर में जोर से ठेल दी। उंगली घुसते ही उसने ज़ोर से ओह! कहा और बोला- देवरजी एक और घुसा दो और तेजी से अन्दर बाहर करो और मेरी बुर को चोदो।
मैंने पूछा- क्या इसे ही चुदाई कहते हैं?
तब उसने कहा- देवर जी ! तुम पढ़ाई में तो काफ़ी तेज़ हो पर चुदाई में निरे बुद्धू हो। यह तो तुम उंगली से चोद रहे हो, पर जब तुम अपना यह मोटा हथियार मेरी बुर में घुसाओगे तब होगी असली चुदाई। अप्र वो सब बाद में। अभी तो तुम 69 की अवस्था में होअक्र उंगली ही अन्दर बाहर करो।
मैं वैसा ही करने लगा। वो सेक्स के जोश में गंदी गंदी बातें कहने लगी। मैं पेल रहा था और वो कहती जा रही थी- जोर से और जोर से मेरे राज़ा ! मेरे पति ने तो कभी ऐसे प्यार ही नहीं किया, साला सिर्फ़ लण्ड पर तेल मालिश करवाता है। जब लण्ड खड़ा होता तो मेरे गर्म ना होते हुए भी लण्ड मेरी बुर में घुसा देता है और अपना धात जल्दी ही गिरा कर सो जाता है। इस भौंसड़ी बुर ने भी छः कैलेण्डर निकाल दिए पर इसकी आग शान्त नहीं हुई। पर राज़ा तुम नादान हो, जैसा मैं कहती हूँ वैसा करो, तुम चुदाई सीख जाओगे। मैं तुम्हारा लण्ड चूस कर इस पर तेल लगा कर घोड़े जैसा बना दूंगी, फ़िर उस घुड़लण्ड से रोज़ चुदवाउंगी।
इतना कह कर गीता ने फ़िर मेरा लण्ड चूसना शुरू कर दिया। मैं भी अपनी उत्तेज़ना में उसकी बुर में अपनी तीन उंगली तेजी से घुसा निकाल रहा था, पर छः बच्चों के जन्म ने उस्की बुर का भौन्सड़ा बना दिया था। अतः उंगली कहाँ जाती, पता ही नहीं चलता। वो वाह रे मेरे राज़ा ! तेजी से करो, जैसे शब्द कह कर शान्त पड़ गई, वो झड़ गई।
इतने में मैंने कहा- भाभी ! मेरे भीतर से कुछ निकलने वाला है !
इतना सुन कर उसने मेरे लण्ड को मुंह से निकाला और हाथ से मेरे लण्ड को आगे पीछे करने लगी। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। कुछ ही देर में मेरे लण्ड से फ़व्वारा निकला और उसकी साड़ी पर गिरा। उसने हंसते हुए कहा कि देवरजी सारी साड़ी खराब कर दी ना ! अब नई साड़ी ला कर देना। पर कोई बात नहीं, अब तो मेरी साड़ी रोज़ खराब होनी है, क्योंकि जब तक तेरे भैया नहीं आ जाते, मैं तो तुमसे रोज़ चुदवाउंगी, तुझे चुदाई में होशियार कर दूंगी। पर उनके आने के बाद भी मुझे छोड़ना नहीं, उनका लण्ड तो पुराना हो गया है पर तेरा तो जवान है। मैं समय निकाल कर तुमसे जरूर चुदवाउंगी। इतना कह कर वो बाहर गई, पानी लाई और मेरा लण्ड साफ़ किया और फ़िर से उसे चूसने लगी। तो मैंने कहा- अभी जाने दो, कल आउंगा।
उसने कहा- ठीक है ! कल तुम्हें असली चुदाई सिखाउंगी और मज़ा दूंगी।
Thursday, August 26, 2010
Wednesday, August 25, 2010
मराठी प्रणय कथा
मित्रांनो, मी दहावीत शिकत असतानाची ही गोष्ट. आमच्या गल्लीमध्ये माझ्या घराच्या पुढे चार घरे सोडून शोभाताई रहायची. तिचे शिक्षण पूर्ण झाले होते. व ती घरीच असायची. तिची आई कामाला जायची. व तिचे बाबा कामानिमित्त बाहेरगावी असायचे. तिचा भाऊ इंजिनीअरिंग करीत होता व तो होस्टेलवर रहायचा. दिवसभर शोभाताई घरी एकटीच असायची. तिचे व माझ्या आईचे खुप जमायचे. ती सतत आमच्या घरी यायची. माझ्या आईला ती कामात मदत करायची. आईला ती काकू म्हणायची. माझा लहान भाऊ खुप वात्रट होता. म्हणून आईने तिला त्यांच्या घरी माझा अभ्यास घेण्याची विनंती केली. ती पण हो म्हणाली.
मग मी रोज तिच्याकडे जाऊ लागलो. ती खुपच छान अभ्यास घ्यायची. ती शिकवताना कधी रागवायची नाही. खुप समजुन सांगायची. मला लगेच समजायचे. मग मी दहावीची परीक्षा दिली.सर्व पेपर खुपच छान गेले. मी रोज शोभाताईकड़े जायचो. संध्याकाळी मात्र मी मित्रांकडे जायचो. आम्ही सर्व जमलो की पोरींची टवाळी करू लागलो होतो. पोरिंविशयी मला खुप आकर्षण वाटु लागले होते. पण साला एक पोरगी पटेल तर शप्पत. एखाद्या मुलीचे मोठे गोळे बघितले की आमचा बाबुराव खाडकन जागा व्हायचा. मग मात्र त्याला शांत करता करता नाकि नऊ यायचे.
शोभाताई दिसायला खुप सुन्दर होती. ती साधारणपणे २० वर्षाची असावी. गोरी गोरीपाण सुन्दर नयन, नाक थोड़े छोटेसे होते पण तिचे ओठ नाजुक व गुलाबी होते. ती उंच होती पण थोडीशी जाड होती.केस काळेभोर व तिच्या नितंबाना स्पर्श करीत होते. वक्ष मोठे व उभारदार होते.ती घरात नेहमी परकर व पोलका घालायची. तिचे नितम्ब खुपच सुन्दर व कड़क होते. तिची त्वचा खुपच मुलायम होती. ती खुपच मादक व खळखळउन हसायची. तिचे बोलने खुपच गोंड होते. मला ती खुप आवडायची.मात्र माझ्या मनात कधीही तिच्या बद्दल वाईट विचार आले नव्हते.
एक दिवस मी असाच कोपऱ्यावर उभा राहून टवाळकी करीत होतो आणि तेवढ्यात शोभाताई तिथे दुकानात काहीतरी घेण्यासाठी आली होती. माझे अचानक तिच्याकडे लक्ष गेले. मी खुप घाबरलो. पुरता भेदरून गेलो होतो मी. मला काहीच सुचेना. म्हटले, बोम्बला, आपली काही खैर नाही आता. मी शोभाताई जवळ गेलो ती नाक फेंदारून रागाने माझ्याकडे पाहत निघून गेली. मी मग थोडासा धीर एकवटून तिच्या मागे गेलो. ती माझ्याच घरात घुसली.गोट्या कपाळात जाने म्हणजे काय ते मला आत्ता समजले. तसाच मनाचा हिय्या करून घरात घुसलो. तिने माझ्या आई जवळ सामान व पैसे दिले आणि ती जाऊ लागली. मी तिला घराबाहेर जाऊ दिले मग तिच्या मागे गेलो आणि तिच्याशी बोलण्याकरीता तिला थांबवू लागलो, पण ती मला भिक घालायला तयार नव्हती. मी हिरमुसला होउन तिथून निघालो. माझे कशातच लक्ष लागत नव्हते. संध्याकाळी मी परत मित्रांकडे गेलो. पण तिथेही माझे मन रमेना. रम्याने मला विचारले, काय झालय रे तुला. मी त्याला सर्व परिस्थिति सांगितली. तर तो म्हणाला, अरे सोड रे, ती तरी कुठे साजुक आहे. ती नाही का सुरेशदादाला चढवून घेत. काय? मी जवळ जवळ किंचाळलोच. तो म्हणाला खरेच बोलतोय मी , हवे तर संजाला विचार. संजाने पण मान डोलावली. मला खुप राग आला होता. मी तिथून तड़क घरी आलो. शोभाताईबद्दल कुणी असे काही बोलले तर मला ते आवडत नव्हते. शोभाताई रोज आमच्या घरी यायची पण माझ्याशी ती बोलत नव्हती.
मग तो दिवस उजाडला. त्या दिवशी माझा रिझल्ट होता. माझे बाबा घरी नव्हते म्हणून मी व माझी आई शाळेत गेलो. मला ८९% पडले होते. आई खुप खुश झाली. मग आम्ही येताना वाटेत थांबुन पेढे घेतले आणि घराकडे निघालो. रस्त्यात माझा एक मित्र भेटला. मी आईला सांगुन त्याच्याजवळ थांबलो. आईने लवकर घरी येण्यासाठी बजावले. मी हो म्हणालो. थोडा वेळ त्याच्याबरोबर टाइमपास केला आणि घरी आलो. घरी आल्यावर आईने तोंडहातपाय धुवून देवा जवळ पेढा ठेवायला सांगितला. देवाजवळ पेढा ठेवल्यावर आईने एक पेढा मला भरविला व स्वत एक पेढा खाल्ला अन मला म्हणाली जा पहिला जावून शोभाताईला पेढे देऊन ये. मी गप्प झालो व तिथेच घुटमळत राहिलो. आई म्हणाली, अरे जा ना. मी म्हणालो, आई ती माझ्यावर चिडली आहे. ती माझ्याशी बोलत नाही. तर आई पटकन म्हणाली, अरे जा काही नाही होत. तूच काहीतरी वात्रटपना केला असशील. ती मोठी आहे ना तुझ्यापेक्षा. तिनेच तुझा अभ्यास घेतलाना. जा तिला पेढा पण दे आणि तिची माफ़ी पण माग. मला माहित आहे तिचा स्वभाव. ती कधी कुणावर चिडत नाही. आईने असे म्हनल्यावर मला खुप बरे वाटले. मी तड़क तिच्या घरी गेलो. दरवाजा बंद होता, म्हणून मी थोडासा लोटला तर तो उघडला मी मनाचा हिय्या करून आत गेलो. शोभाताई पलंगावर ओणवी होउन कसले तरी पुस्तक वाचत होती. मी हळूच तिला हाक मारली व म्हणालो शोभाताई, मला ८९% पडले. तिने पटकन ते पुस्तक उशीखाली ठेवले आणि माझ्याकडे पाहत उठली आणि मला मीठी मारली. व म्हणाली, ग्रेट मला माहित होते की तुला खुप चांगले मार्क्स मिळणार. असे म्हणून तिने माझी पप्पी घेतली व म्हणाली आधी पेढे दे. मी पुडा तिच्यासमोर धरला. तिने त्यातून एक पेढा काढून मला भरविला. पेढा खाताना मी तिला म्हणालो अग तू पण खा ना. तर ती म्हणाली मी तुला पेढा भरविला आता तू मला भरव. मी तिला पेढा भरवला.पेढा खातखात ती म्हणाली बंटी मला आज खुप आनंद झालाय, तू अगदी माझ्या अपेक्षेप्रमाने मार्क्स मिळविलेस. सांग तुला काय गिफ्ट हवय. मी म्हणालो काही पण तुला आवडेल ते दे. तिचा मूड बघून मी पटकन तिला म्हणालो, शोभाताई सॉरी, मी त्या दिवशी चुकलो, मी परत नाही असे करणार. तिने परत मला जवळ ओढले आणि माझ्या गालाची पप्पी घेत म्हणाली, मला माहित आहे तू असा नाहीस पण कुठल्याही मित्रांच्या नादाने तू काही चुकीचे करावे असे मला नाही वाटत. तिचे उरोज माझ्या हनुवटी आणि ग़ळ्याला स्पर्श करीत होते. तिचा तो उबदार स्पर्श मला मोहुन टाकित होता. मी ही तिला बिलगलो. बंटी, अरे असे छेडून मुली पटत नसतात. मी म्हणालो, माझा तस हेतु नव्हता. ती हसून म्हणाली अरे तुझ्या वयात मुलींबद्दल आकर्षण निर्माण होने हे काही नवीन नाही. मुली पटवन्याचे अनेक मार्ग आहेत. मी तुला शिकवल मुलींना कसे पटवायचे ते. आणि मला विचारले तुला कशा मुली आवडतात? मी म्हणालो की स्वभावाने छान आणि दिसायला सुन्दर. तिने थोडा विचार केला आणि म्हणाली सुन्दर म्हणजे कुनासारखी? मी म्हणालो तुझ्यासारखी खुप सुन्दर नसेल तरी चालेल. तिने परत मला मीठी मारली अणि विचारले मी एवढी सुन्दर आहे का? मी म्हणालो हो प्रश्नच नाही. ती म्हणाली तू माझ्यात काय पाहिले की मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो तुझा गोरा रंग.ती म्हणाली बस गोऱ्या रंगामुळे मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो नाही ग तुझे लांबसड़क काळेभोर रेशमासारखे केस, तुझे टपोरे डोळे, तुझे लाल लाल कान, तुझे गुलाबाच्या पाकळयासारखे ओठ. ती लड़ीवाळपणे मला म्हणाली सांग ना आणखी काय आवडते? तुझा गोंड गळा. ती म्हणाली पुढे बोल ना. आता माझा बाबुराव उठू लागला होता. मी तुझ्या छातीवरचे ते दोन मोठे गोळे म्हणता म्हणता माझे शब्द गिळून म्हणालो शोभाताई तू खुप सुन्दर आहेस. तिने परत माझ्या गालाची पप्पी घेतली. मी घाबरत तिला विचारले शोभाताई मी पण तुझी पप्पी घेऊ का? काही न म्हणता तिने डोळे मिटून घेतले. मग मी धीर एकवटून तिच्या गालाच्या जवळ माझे ओठ नेताना पाहिले तिचे ओठ थरथरत होते. तिच्या सर्वांगावर शहारे आले होते. ते पाहून मी तिच्या ओठांवर माझे ओठ ठेवले. ती काहीच म्हणाली नाही. आता मात्र माझा बांध तुटू लागला. मग मी पहिल्यांदा तिला खुप आवळले आणि तिच्यावर माझ्या मुक्यांचा वर्षाव करू लागलो. ती पण मला प्रतिसाद देत होती. माझे हाथ तिच्या मानेवर गेले होते. मग मी तिच्या तोंडात तोंड घालून तिचा मुका घेत होतो. आम्हाला दोघानाही सर्व जगाचा विसर पडला होता. तिचे मुलायम हाथ एव्हाना माझ्या शर्टमध्ये घुसले होते. ती हळूवारपणे तिचा मुलायम हात माझ्या छातीवर फिरवित होती. मग मी पण मुका घेत घेत माझा एक हात हळूच तिच्या छातीवर आणला आणि तिच्या एका उरोजाला दाबले. ती हळूच सित्कारली. मी तिच्या पोलक्यावरुनच तिचे गोळे कुस्करत होतो. ती खुप गरम झाली होती. तिने माझ्या शर्टची बटने काढ़ायला सुरवात केली.तिचे कान लालबुंद झाले होते. मी हळूच तिच्या कानाचा चावा घेतला. तशी ती पुन्हा सित्कारली. तिने माझा शर्ट काढला. माझ्या प्यांटीतुन माझ्या लवडयाचा उभार स्पष्ट दिसत होता. ती वरुनच माझ्या लवडयाला कूरवाळू लागली. कुरवाळत असताना तिने मला हलकेच ढकलत पलंगाकडे सरकावले. मी पलंगावर पडलो आणि ती माझ्या अंगावर पडली. मी परत तिचा मुका घेतला व तिच्या पोलक्याची बटने काढू लागलो. तिची सर्व बटने मी पटापट काढली व तिचा पोलका बाजूला केला. तिने सफ़ेद ब्रा परिधान केली होती. तिचे ते सुन्दर गोरेपान शरीर बघून मी वेडा झालो. मी तिचे दोन्ही स्तन तसेच कूरवाळू लागलो. मग मी तिला माझ्या जवळ ओढले व तिची ब्रा काढू लागलो पण मला काही जमेना. मग मी तिला ब्रा काढायला सांगितली. ती उठली आणि माझ्याकडे पाहून हसली. मला कळेना ती का हसली, पण लगेच मला उमगले की तिच्या ब्रा चे हुक पुढेच होते. तिने हुक काढताच तिची दोन्ही कबूतरे मोकळी झाली. केवढे मोठे स्तन होते तिचे. त्याच्या अग्रभागी गुलाबी रंगाची तिची कड़क बोंडे त्या गोऱ्या स्तनांचा आकर्षकपणा वाढवित होती. तिच्या स्तनांवर हिरव्या रंगाच्या नसा फुगून स्तनान्मध्ये ताठरपना आला होता. मग मी हळूच तिचा एक स्तन तोंडात घेतला आणि त्याला चोखू लागलो. तशी शोभाताई खुपच वेडीपीशी झाली. मग तिने माझी चेन काढून आत हात घातला. माझा लवडा ती दाबू लागली. माझ्या मस्तकातुन एक जोराची कळ निघाली. आज पहिल्यांदाच कोणीतरी माझ्या लवड्याला हात लावला होता. मला खुप बरे वाटत होते. तिने माझ्या प्यांट चे बटन काढले व माजी प्यांट ती हळूहळू काढू लागली. माझी जींस असल्याने ती खाली सरकवताना माझी अंडरविअरपण थोड़ी खाली सरकली आणि माझा लंड त्यातून थोडा बाहेर आला. शोभाताई ने हे पाहताच माझ्या अंडरविअरमध्ये हात घालून खाली सरकवली व माझा ताठलेला लवडा हातात घेउन त्याच्याशी खेळू लागली. मला असे वाटु लागले की आता माझ्या लवडयातुन काहीतरी बाहेर पडणार मी तिला लगेच थाम्बवले. तिने विचारले काय झाले. मी म्हणालो मला असे वाटतय कि आता माझा चिक बाहेर पडतोय. ती म्हणाली," मग तू आता कर ना." मी म्हणालो," ठीक आहे." मग ती पलंगावर आडवी झाली. मी तिच्या परकराची नाडी खेचली. मी तिचा परकर खाली ओढू लागलो. परकर खाली खेचताना मला तिची बेम्बी दिसली. तिची बेम्बी खुपच सुन्दर होती असे वाटत होते की त्याची पप्पी घ्यावी पण आता मी कंट्रोल करू शकत नव्हतो. तिचा परकर खाली खेचताच तिच्या गोऱ्या गोऱ्या मांड्या वरची तिची निळ्या रंगाची फुलांची चड्डी दिसू लागली. तिचे शरीर म्हणजे संगमरवरच वाटत होते. आता माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. मी पटकन तिची चड्डी खाली ओढली आणि मला तिची पुच्ची दिसू लागली. काय सुन्दर भूरी पुच्ची होती. तिची काळीभोर आणि मुलायम झाटे बघून मला कधी एकदा माझा लंड तिच्या पुच्चित घालतो असे झाले होते.
मी माझी अंडरवेअर पटकन काढून टाकली, आणि मग मी तिच्या अंगावर आडवा झालो. आम्ही दोघेही खुपच गरम झालो होतो. शोभाताईची छाती वरखाली होत होती. तिचे ते हलणारे पुष्ट उरोज पाहून मी चेकाळलो होतो मी माझा ताठलेला लवड़ा हातात धरून तिच्या पुच्चिवर रगडत होतो. श्या, पण काही केल्या मला जमेना. शोभाताईला खुदकन हसू आले व म्हणाली, "जागा सापडत नाही का?" मी रागाने हो म्हणालो. पण खरेच माझी पहिली वेळ असल्याने काही जमत नव्हते. माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. माझी करुण अवस्था पाहून शेवटी शोभाताईनच माझा ताठ्लेला बुल्ला हातात धरून पुच्चिवर ठेवला. आणि हळूच माझ्या कानात म्हणाली, " बंटी, आता हळूच आत घुसव." मला कसला धीर. मी दिला जोरात दनका. तशी ती किंचाळलीच. आई ग़! लवड़ा आत गेल्यावर मी कंबर हलवायला सुरवात करणार तोच माझा बाबाजी परत बाहेर. मी परत लवड़ा तिच्या पुच्चीच्या जवळ नेला आणि शोभाताईला विनंती करू लागलो. तर ती म्हणाली," बंटी, तू पुन्हा धसमूसळ्यासारख करशील. मला त्रास होइल." मी म्हणालो," नाही आता मी हळूच घालीन." मग तिने परत माझा लवड़ा हातात पकडून पुच्चिवर ठेवला. मग मी हळूच आत घातला. आणि तिने तिच्या पायाची घडी माझ्या मांड्यावर टाकली आणि मला म्हणाली," आता हळूहळू कंबर हालव." मग मी तिला झवु लागलो. तिच्या तोंडातून हळूहळू आवाज येत होते आणि चेहऱ्यावर लालिमा चढला होता. दोनच मिनिटात माझा बार उडाला. माझी पहिलीच वेळ असल्याने चांगल्या सात ते आठ चीळकाड्या उडाल्या आणि धापा टाकत तिच्या अंगावर पडलो. पहिल्यांदा मला कळेना की मी मुतलो की वेगळे काही घडले. शोभाताई ने मला पटकन बाजूला ढकलले. व ती उठू लागली. मी तिला उठताना तिच्या पुच्चीच्या जवळ पाहिले तर तिच्या पुच्चीतुन माझा कामरस बाहेर पाझरत होता आणि चादरीवर जवळ जवळ अर्धी वाटी तरी माझा चिक पडला होता. तिने तशीच नागव्याने चादर ओढून घेतली व ती बाथरुमकडे पळाली. तिची गोरी गांड हलताना बघून मी परत वेडा झालो. आयुष्यात मी आज पहिल्यांदा झवलो होतो. माझा लवडा पूर्ण चिकाने भरला होता. मी तसाच पलंगाच्या कोपऱ्यावर तिची वाट पाहत बसलो. तेवढ्यात माझे लक्ष उशीकडे गेले. चादर ओढताना उशी खाली पडली होती. आणि तिचे पुस्तक पण पडले होते. मी सहज चाळन्याकरिता म्हणून उचलले आणि उडालोच. पुस्तकामध्ये सर्व नागडी आणि झवाझवीची चित्रे होती आणि गोष्टी पण सगळ्या त्याच होत्या. त्यातली एक कहानी मी वाचू लागलो. ती बहिन भावाच्या झवाझविची होती.त्यातील चित्रे पाहून माझा बुल्ला परत ताठ झाला. मी समजलो ही पुस्तक वाचून गरम झाली होती. पण शोभाताईकडे हे पुस्तक आले कुठून? असा प्रश्न मला पडला. मनात म्हणालो, जाऊ दे आपल्याला काय करायचे आहे. आज त्यामुळे कमीतकमी झवायला तरी मीळाले. मी माझ्या लवडयाला हातात धरून बसलो होतो तेवढ्यात शोभाताई येत असल्याची चाहुल लागली व मी ते पुस्तक खाली ठेवून परत पलंगाच्या कोपऱ्यावर तिची वाट पाहत बसलो. शोभाताई चादर व तिची पुच्ची धुवून आली. तिने चादरिची घडी करून घरातच वाळत टाकली. आणि माझ्या जवळ येवून लाडेलाडे म्हणाली, जा ना बंटी धुवून ये." मी तिच्या बाथरुममध्ये गेलो लवडा चांगला चोळून धुतला. आणि बाहेर आलो शोभाताईने ब्रा घातली होती आणि ती खाली वाकून चड्डी घालित होती. मी तिच्या गांडीजवळ जावून माझा लवड़ा तिच्या गांडीला टेकवला. आणि तिच्या कम्बरेला धरून तिला जवळ ओढले. ती म्हणाली," आता पुरे ना." मी म्हणालो," नाही मला आणखी एकदा करायचे." मग ती काही ना बोलता माझ्या दांड्यावर बसली. मी मागुन तिच्या मानेचे पटापट मुके घेऊ लागलो. पुस्तक पाहून माझा लवड़ा चांगलाच खवळला होता. तिच्या गांडीमध्ये तो रुतत चालला होता. असे वाटत होते की तिची गांड मारावी, पण मी तो विचार सोडला. दोन्ही हाताने तिची ब्रा वर सरकवून मी तिच्या स्तनांची बोंडे चोळू लागलो. तिचे पुष्ट उरोज माझ्या हातात मावत नव्हते. ती गरम व्हायला लागली होती. मग ती उठली व मला म्हणाली, "बंटी, करणारे लवकर." मी तिला म्हणालो, " शोभाताई, तू माझा लवड़ा चोखशील." ती हादरलीच. मला म्हणाली,"काय?" मी म्हणालो, " शोभाताई, त्या पुस्तकातल्या चित्रासारखा तू पण चोख ना." ती माझ्याकडे विस्मित होउन पहात म्हणाली," तू कधी पाहिलेस ते पुस्तक?" मी म्हणालो," आत्ताच." आणि तिच्या कानाचा हलकेच चावा घेत म्हणालो, "चोखशील ना?" तर ती थोडा विचार करून म्हणाली," जर तू माझी चाटली तरच." मी आनंदाने हो म्हणालो व तिच्या पायाजवळ गेलो आणि तिच्या दोन्ही मान्सलदार मांड्या फाकविल्या. समोर तिची झाटात लपलेली पुच्ची दिसू लागली.मी हलकेच तिची झाटे बाजूला करू लागलो आणि
मग मी रोज तिच्याकडे जाऊ लागलो. ती खुपच छान अभ्यास घ्यायची. ती शिकवताना कधी रागवायची नाही. खुप समजुन सांगायची. मला लगेच समजायचे. मग मी दहावीची परीक्षा दिली.सर्व पेपर खुपच छान गेले. मी रोज शोभाताईकड़े जायचो. संध्याकाळी मात्र मी मित्रांकडे जायचो. आम्ही सर्व जमलो की पोरींची टवाळी करू लागलो होतो. पोरिंविशयी मला खुप आकर्षण वाटु लागले होते. पण साला एक पोरगी पटेल तर शप्पत. एखाद्या मुलीचे मोठे गोळे बघितले की आमचा बाबुराव खाडकन जागा व्हायचा. मग मात्र त्याला शांत करता करता नाकि नऊ यायचे.
शोभाताई दिसायला खुप सुन्दर होती. ती साधारणपणे २० वर्षाची असावी. गोरी गोरीपाण सुन्दर नयन, नाक थोड़े छोटेसे होते पण तिचे ओठ नाजुक व गुलाबी होते. ती उंच होती पण थोडीशी जाड होती.केस काळेभोर व तिच्या नितंबाना स्पर्श करीत होते. वक्ष मोठे व उभारदार होते.ती घरात नेहमी परकर व पोलका घालायची. तिचे नितम्ब खुपच सुन्दर व कड़क होते. तिची त्वचा खुपच मुलायम होती. ती खुपच मादक व खळखळउन हसायची. तिचे बोलने खुपच गोंड होते. मला ती खुप आवडायची.मात्र माझ्या मनात कधीही तिच्या बद्दल वाईट विचार आले नव्हते.
एक दिवस मी असाच कोपऱ्यावर उभा राहून टवाळकी करीत होतो आणि तेवढ्यात शोभाताई तिथे दुकानात काहीतरी घेण्यासाठी आली होती. माझे अचानक तिच्याकडे लक्ष गेले. मी खुप घाबरलो. पुरता भेदरून गेलो होतो मी. मला काहीच सुचेना. म्हटले, बोम्बला, आपली काही खैर नाही आता. मी शोभाताई जवळ गेलो ती नाक फेंदारून रागाने माझ्याकडे पाहत निघून गेली. मी मग थोडासा धीर एकवटून तिच्या मागे गेलो. ती माझ्याच घरात घुसली.गोट्या कपाळात जाने म्हणजे काय ते मला आत्ता समजले. तसाच मनाचा हिय्या करून घरात घुसलो. तिने माझ्या आई जवळ सामान व पैसे दिले आणि ती जाऊ लागली. मी तिला घराबाहेर जाऊ दिले मग तिच्या मागे गेलो आणि तिच्याशी बोलण्याकरीता तिला थांबवू लागलो, पण ती मला भिक घालायला तयार नव्हती. मी हिरमुसला होउन तिथून निघालो. माझे कशातच लक्ष लागत नव्हते. संध्याकाळी मी परत मित्रांकडे गेलो. पण तिथेही माझे मन रमेना. रम्याने मला विचारले, काय झालय रे तुला. मी त्याला सर्व परिस्थिति सांगितली. तर तो म्हणाला, अरे सोड रे, ती तरी कुठे साजुक आहे. ती नाही का सुरेशदादाला चढवून घेत. काय? मी जवळ जवळ किंचाळलोच. तो म्हणाला खरेच बोलतोय मी , हवे तर संजाला विचार. संजाने पण मान डोलावली. मला खुप राग आला होता. मी तिथून तड़क घरी आलो. शोभाताईबद्दल कुणी असे काही बोलले तर मला ते आवडत नव्हते. शोभाताई रोज आमच्या घरी यायची पण माझ्याशी ती बोलत नव्हती.
मग तो दिवस उजाडला. त्या दिवशी माझा रिझल्ट होता. माझे बाबा घरी नव्हते म्हणून मी व माझी आई शाळेत गेलो. मला ८९% पडले होते. आई खुप खुश झाली. मग आम्ही येताना वाटेत थांबुन पेढे घेतले आणि घराकडे निघालो. रस्त्यात माझा एक मित्र भेटला. मी आईला सांगुन त्याच्याजवळ थांबलो. आईने लवकर घरी येण्यासाठी बजावले. मी हो म्हणालो. थोडा वेळ त्याच्याबरोबर टाइमपास केला आणि घरी आलो. घरी आल्यावर आईने तोंडहातपाय धुवून देवा जवळ पेढा ठेवायला सांगितला. देवाजवळ पेढा ठेवल्यावर आईने एक पेढा मला भरविला व स्वत एक पेढा खाल्ला अन मला म्हणाली जा पहिला जावून शोभाताईला पेढे देऊन ये. मी गप्प झालो व तिथेच घुटमळत राहिलो. आई म्हणाली, अरे जा ना. मी म्हणालो, आई ती माझ्यावर चिडली आहे. ती माझ्याशी बोलत नाही. तर आई पटकन म्हणाली, अरे जा काही नाही होत. तूच काहीतरी वात्रटपना केला असशील. ती मोठी आहे ना तुझ्यापेक्षा. तिनेच तुझा अभ्यास घेतलाना. जा तिला पेढा पण दे आणि तिची माफ़ी पण माग. मला माहित आहे तिचा स्वभाव. ती कधी कुणावर चिडत नाही. आईने असे म्हनल्यावर मला खुप बरे वाटले. मी तड़क तिच्या घरी गेलो. दरवाजा बंद होता, म्हणून मी थोडासा लोटला तर तो उघडला मी मनाचा हिय्या करून आत गेलो. शोभाताई पलंगावर ओणवी होउन कसले तरी पुस्तक वाचत होती. मी हळूच तिला हाक मारली व म्हणालो शोभाताई, मला ८९% पडले. तिने पटकन ते पुस्तक उशीखाली ठेवले आणि माझ्याकडे पाहत उठली आणि मला मीठी मारली. व म्हणाली, ग्रेट मला माहित होते की तुला खुप चांगले मार्क्स मिळणार. असे म्हणून तिने माझी पप्पी घेतली व म्हणाली आधी पेढे दे. मी पुडा तिच्यासमोर धरला. तिने त्यातून एक पेढा काढून मला भरविला. पेढा खाताना मी तिला म्हणालो अग तू पण खा ना. तर ती म्हणाली मी तुला पेढा भरविला आता तू मला भरव. मी तिला पेढा भरवला.पेढा खातखात ती म्हणाली बंटी मला आज खुप आनंद झालाय, तू अगदी माझ्या अपेक्षेप्रमाने मार्क्स मिळविलेस. सांग तुला काय गिफ्ट हवय. मी म्हणालो काही पण तुला आवडेल ते दे. तिचा मूड बघून मी पटकन तिला म्हणालो, शोभाताई सॉरी, मी त्या दिवशी चुकलो, मी परत नाही असे करणार. तिने परत मला जवळ ओढले आणि माझ्या गालाची पप्पी घेत म्हणाली, मला माहित आहे तू असा नाहीस पण कुठल्याही मित्रांच्या नादाने तू काही चुकीचे करावे असे मला नाही वाटत. तिचे उरोज माझ्या हनुवटी आणि ग़ळ्याला स्पर्श करीत होते. तिचा तो उबदार स्पर्श मला मोहुन टाकित होता. मी ही तिला बिलगलो. बंटी, अरे असे छेडून मुली पटत नसतात. मी म्हणालो, माझा तस हेतु नव्हता. ती हसून म्हणाली अरे तुझ्या वयात मुलींबद्दल आकर्षण निर्माण होने हे काही नवीन नाही. मुली पटवन्याचे अनेक मार्ग आहेत. मी तुला शिकवल मुलींना कसे पटवायचे ते. आणि मला विचारले तुला कशा मुली आवडतात? मी म्हणालो की स्वभावाने छान आणि दिसायला सुन्दर. तिने थोडा विचार केला आणि म्हणाली सुन्दर म्हणजे कुनासारखी? मी म्हणालो तुझ्यासारखी खुप सुन्दर नसेल तरी चालेल. तिने परत मला मीठी मारली अणि विचारले मी एवढी सुन्दर आहे का? मी म्हणालो हो प्रश्नच नाही. ती म्हणाली तू माझ्यात काय पाहिले की मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो तुझा गोरा रंग.ती म्हणाली बस गोऱ्या रंगामुळे मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो नाही ग तुझे लांबसड़क काळेभोर रेशमासारखे केस, तुझे टपोरे डोळे, तुझे लाल लाल कान, तुझे गुलाबाच्या पाकळयासारखे ओठ. ती लड़ीवाळपणे मला म्हणाली सांग ना आणखी काय आवडते? तुझा गोंड गळा. ती म्हणाली पुढे बोल ना. आता माझा बाबुराव उठू लागला होता. मी तुझ्या छातीवरचे ते दोन मोठे गोळे म्हणता म्हणता माझे शब्द गिळून म्हणालो शोभाताई तू खुप सुन्दर आहेस. तिने परत माझ्या गालाची पप्पी घेतली. मी घाबरत तिला विचारले शोभाताई मी पण तुझी पप्पी घेऊ का? काही न म्हणता तिने डोळे मिटून घेतले. मग मी धीर एकवटून तिच्या गालाच्या जवळ माझे ओठ नेताना पाहिले तिचे ओठ थरथरत होते. तिच्या सर्वांगावर शहारे आले होते. ते पाहून मी तिच्या ओठांवर माझे ओठ ठेवले. ती काहीच म्हणाली नाही. आता मात्र माझा बांध तुटू लागला. मग मी पहिल्यांदा तिला खुप आवळले आणि तिच्यावर माझ्या मुक्यांचा वर्षाव करू लागलो. ती पण मला प्रतिसाद देत होती. माझे हाथ तिच्या मानेवर गेले होते. मग मी तिच्या तोंडात तोंड घालून तिचा मुका घेत होतो. आम्हाला दोघानाही सर्व जगाचा विसर पडला होता. तिचे मुलायम हाथ एव्हाना माझ्या शर्टमध्ये घुसले होते. ती हळूवारपणे तिचा मुलायम हात माझ्या छातीवर फिरवित होती. मग मी पण मुका घेत घेत माझा एक हात हळूच तिच्या छातीवर आणला आणि तिच्या एका उरोजाला दाबले. ती हळूच सित्कारली. मी तिच्या पोलक्यावरुनच तिचे गोळे कुस्करत होतो. ती खुप गरम झाली होती. तिने माझ्या शर्टची बटने काढ़ायला सुरवात केली.तिचे कान लालबुंद झाले होते. मी हळूच तिच्या कानाचा चावा घेतला. तशी ती पुन्हा सित्कारली. तिने माझा शर्ट काढला. माझ्या प्यांटीतुन माझ्या लवडयाचा उभार स्पष्ट दिसत होता. ती वरुनच माझ्या लवडयाला कूरवाळू लागली. कुरवाळत असताना तिने मला हलकेच ढकलत पलंगाकडे सरकावले. मी पलंगावर पडलो आणि ती माझ्या अंगावर पडली. मी परत तिचा मुका घेतला व तिच्या पोलक्याची बटने काढू लागलो. तिची सर्व बटने मी पटापट काढली व तिचा पोलका बाजूला केला. तिने सफ़ेद ब्रा परिधान केली होती. तिचे ते सुन्दर गोरेपान शरीर बघून मी वेडा झालो. मी तिचे दोन्ही स्तन तसेच कूरवाळू लागलो. मग मी तिला माझ्या जवळ ओढले व तिची ब्रा काढू लागलो पण मला काही जमेना. मग मी तिला ब्रा काढायला सांगितली. ती उठली आणि माझ्याकडे पाहून हसली. मला कळेना ती का हसली, पण लगेच मला उमगले की तिच्या ब्रा चे हुक पुढेच होते. तिने हुक काढताच तिची दोन्ही कबूतरे मोकळी झाली. केवढे मोठे स्तन होते तिचे. त्याच्या अग्रभागी गुलाबी रंगाची तिची कड़क बोंडे त्या गोऱ्या स्तनांचा आकर्षकपणा वाढवित होती. तिच्या स्तनांवर हिरव्या रंगाच्या नसा फुगून स्तनान्मध्ये ताठरपना आला होता. मग मी हळूच तिचा एक स्तन तोंडात घेतला आणि त्याला चोखू लागलो. तशी शोभाताई खुपच वेडीपीशी झाली. मग तिने माझी चेन काढून आत हात घातला. माझा लवडा ती दाबू लागली. माझ्या मस्तकातुन एक जोराची कळ निघाली. आज पहिल्यांदाच कोणीतरी माझ्या लवड्याला हात लावला होता. मला खुप बरे वाटत होते. तिने माझ्या प्यांट चे बटन काढले व माजी प्यांट ती हळूहळू काढू लागली. माझी जींस असल्याने ती खाली सरकवताना माझी अंडरविअरपण थोड़ी खाली सरकली आणि माझा लंड त्यातून थोडा बाहेर आला. शोभाताई ने हे पाहताच माझ्या अंडरविअरमध्ये हात घालून खाली सरकवली व माझा ताठलेला लवडा हातात घेउन त्याच्याशी खेळू लागली. मला असे वाटु लागले की आता माझ्या लवडयातुन काहीतरी बाहेर पडणार मी तिला लगेच थाम्बवले. तिने विचारले काय झाले. मी म्हणालो मला असे वाटतय कि आता माझा चिक बाहेर पडतोय. ती म्हणाली," मग तू आता कर ना." मी म्हणालो," ठीक आहे." मग ती पलंगावर आडवी झाली. मी तिच्या परकराची नाडी खेचली. मी तिचा परकर खाली ओढू लागलो. परकर खाली खेचताना मला तिची बेम्बी दिसली. तिची बेम्बी खुपच सुन्दर होती असे वाटत होते की त्याची पप्पी घ्यावी पण आता मी कंट्रोल करू शकत नव्हतो. तिचा परकर खाली खेचताच तिच्या गोऱ्या गोऱ्या मांड्या वरची तिची निळ्या रंगाची फुलांची चड्डी दिसू लागली. तिचे शरीर म्हणजे संगमरवरच वाटत होते. आता माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. मी पटकन तिची चड्डी खाली ओढली आणि मला तिची पुच्ची दिसू लागली. काय सुन्दर भूरी पुच्ची होती. तिची काळीभोर आणि मुलायम झाटे बघून मला कधी एकदा माझा लंड तिच्या पुच्चित घालतो असे झाले होते.
मी माझी अंडरवेअर पटकन काढून टाकली, आणि मग मी तिच्या अंगावर आडवा झालो. आम्ही दोघेही खुपच गरम झालो होतो. शोभाताईची छाती वरखाली होत होती. तिचे ते हलणारे पुष्ट उरोज पाहून मी चेकाळलो होतो मी माझा ताठलेला लवड़ा हातात धरून तिच्या पुच्चिवर रगडत होतो. श्या, पण काही केल्या मला जमेना. शोभाताईला खुदकन हसू आले व म्हणाली, "जागा सापडत नाही का?" मी रागाने हो म्हणालो. पण खरेच माझी पहिली वेळ असल्याने काही जमत नव्हते. माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. माझी करुण अवस्था पाहून शेवटी शोभाताईनच माझा ताठ्लेला बुल्ला हातात धरून पुच्चिवर ठेवला. आणि हळूच माझ्या कानात म्हणाली, " बंटी, आता हळूच आत घुसव." मला कसला धीर. मी दिला जोरात दनका. तशी ती किंचाळलीच. आई ग़! लवड़ा आत गेल्यावर मी कंबर हलवायला सुरवात करणार तोच माझा बाबाजी परत बाहेर. मी परत लवड़ा तिच्या पुच्चीच्या जवळ नेला आणि शोभाताईला विनंती करू लागलो. तर ती म्हणाली," बंटी, तू पुन्हा धसमूसळ्यासारख करशील. मला त्रास होइल." मी म्हणालो," नाही आता मी हळूच घालीन." मग तिने परत माझा लवड़ा हातात पकडून पुच्चिवर ठेवला. मग मी हळूच आत घातला. आणि तिने तिच्या पायाची घडी माझ्या मांड्यावर टाकली आणि मला म्हणाली," आता हळूहळू कंबर हालव." मग मी तिला झवु लागलो. तिच्या तोंडातून हळूहळू आवाज येत होते आणि चेहऱ्यावर लालिमा चढला होता. दोनच मिनिटात माझा बार उडाला. माझी पहिलीच वेळ असल्याने चांगल्या सात ते आठ चीळकाड्या उडाल्या आणि धापा टाकत तिच्या अंगावर पडलो. पहिल्यांदा मला कळेना की मी मुतलो की वेगळे काही घडले. शोभाताई ने मला पटकन बाजूला ढकलले. व ती उठू लागली. मी तिला उठताना तिच्या पुच्चीच्या जवळ पाहिले तर तिच्या पुच्चीतुन माझा कामरस बाहेर पाझरत होता आणि चादरीवर जवळ जवळ अर्धी वाटी तरी माझा चिक पडला होता. तिने तशीच नागव्याने चादर ओढून घेतली व ती बाथरुमकडे पळाली. तिची गोरी गांड हलताना बघून मी परत वेडा झालो. आयुष्यात मी आज पहिल्यांदा झवलो होतो. माझा लवडा पूर्ण चिकाने भरला होता. मी तसाच पलंगाच्या कोपऱ्यावर तिची वाट पाहत बसलो. तेवढ्यात माझे लक्ष उशीकडे गेले. चादर ओढताना उशी खाली पडली होती. आणि तिचे पुस्तक पण पडले होते. मी सहज चाळन्याकरिता म्हणून उचलले आणि उडालोच. पुस्तकामध्ये सर्व नागडी आणि झवाझवीची चित्रे होती आणि गोष्टी पण सगळ्या त्याच होत्या. त्यातली एक कहानी मी वाचू लागलो. ती बहिन भावाच्या झवाझविची होती.त्यातील चित्रे पाहून माझा बुल्ला परत ताठ झाला. मी समजलो ही पुस्तक वाचून गरम झाली होती. पण शोभाताईकडे हे पुस्तक आले कुठून? असा प्रश्न मला पडला. मनात म्हणालो, जाऊ दे आपल्याला काय करायचे आहे. आज त्यामुळे कमीतकमी झवायला तरी मीळाले. मी माझ्या लवडयाला हातात धरून बसलो होतो तेवढ्यात शोभाताई येत असल्याची चाहुल लागली व मी ते पुस्तक खाली ठेवून परत पलंगाच्या कोपऱ्यावर तिची वाट पाहत बसलो. शोभाताई चादर व तिची पुच्ची धुवून आली. तिने चादरिची घडी करून घरातच वाळत टाकली. आणि माझ्या जवळ येवून लाडेलाडे म्हणाली, जा ना बंटी धुवून ये." मी तिच्या बाथरुममध्ये गेलो लवडा चांगला चोळून धुतला. आणि बाहेर आलो शोभाताईने ब्रा घातली होती आणि ती खाली वाकून चड्डी घालित होती. मी तिच्या गांडीजवळ जावून माझा लवड़ा तिच्या गांडीला टेकवला. आणि तिच्या कम्बरेला धरून तिला जवळ ओढले. ती म्हणाली," आता पुरे ना." मी म्हणालो," नाही मला आणखी एकदा करायचे." मग ती काही ना बोलता माझ्या दांड्यावर बसली. मी मागुन तिच्या मानेचे पटापट मुके घेऊ लागलो. पुस्तक पाहून माझा लवड़ा चांगलाच खवळला होता. तिच्या गांडीमध्ये तो रुतत चालला होता. असे वाटत होते की तिची गांड मारावी, पण मी तो विचार सोडला. दोन्ही हाताने तिची ब्रा वर सरकवून मी तिच्या स्तनांची बोंडे चोळू लागलो. तिचे पुष्ट उरोज माझ्या हातात मावत नव्हते. ती गरम व्हायला लागली होती. मग ती उठली व मला म्हणाली, "बंटी, करणारे लवकर." मी तिला म्हणालो, " शोभाताई, तू माझा लवड़ा चोखशील." ती हादरलीच. मला म्हणाली,"काय?" मी म्हणालो, " शोभाताई, त्या पुस्तकातल्या चित्रासारखा तू पण चोख ना." ती माझ्याकडे विस्मित होउन पहात म्हणाली," तू कधी पाहिलेस ते पुस्तक?" मी म्हणालो," आत्ताच." आणि तिच्या कानाचा हलकेच चावा घेत म्हणालो, "चोखशील ना?" तर ती थोडा विचार करून म्हणाली," जर तू माझी चाटली तरच." मी आनंदाने हो म्हणालो व तिच्या पायाजवळ गेलो आणि तिच्या दोन्ही मान्सलदार मांड्या फाकविल्या. समोर तिची झाटात लपलेली पुच्ची दिसू लागली.मी हलकेच तिची झाटे बाजूला करू लागलो आणि
Monday, August 23, 2010
अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
दोस्तों,
ये कहानी मुझको एक दूसरे फोरम से इंग्लिश में प्राप्त हुयी है. यहां मैं इसको हिन्दी में अनुवादित करके प्रस्तुत कर रहा हूं. कहानी लम्बी है अतः रोज कुछ ना कुछ पोस्ट करूंगा. कृपया अपनी राय जरूर दें, ताकी में आगे अपना काम करने को प्रेरित रहूं. धन्यवाद.
वह टी. वी के सामने सो रही थी तो दूसरे लोग भी अलग अलग समय पर अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए थे. शोभा और कुमार इस वक्त गोपाल और दीप्ति के घर पर आये हुये थे. गोपाल कुमार का बङा भाई था. घर में, गोपाल, दीप्ति का एक उन्नीस साल का बेटा अजय भी था. उस वक्त सब लोग एक हत्या की कहानी पर आधारित जो इस फिल्म देख रहे थे. आम मसाला फिल्म की तरह इस फिल्म में भी कुछ कामुक दृश्य थें. एक आवेशपूर्ण और गहन प्यार दृश्य आते ही अजय कमरें को छोड़ कर जा चुका था. गोपाल और दीप्ति दृश्य के आते ही और लड़के के कमरा छोड़ने के कारण जम से गये थे. घर के ऊपर और सब सोने के कमरें थे और और शाम को जब से ये लोग आये थे, कोई भी ऊपर नहीं गया था. नौकर सामान लेकर आया था और गोपाल, कुमार शराब के पैग बना रहे थे. महिलायें भी इस वक्त उनके साथ बैठ कर पी रही थी. हालांकि परिवार को पूरी तरह से माता पिता की रूढ़िवादी चौकस निगाहों के अधीन रखा गया था. बड़ों के आसपास होने पर महिलायें सिंदूर, मंगलसूत्र और साड़ी परंपरागत तरीके से पहनती थी. कुमार के बड़े भाई होने के नाते, शोभा के लिए, गोपाल भी बङे थे और वह अपने सिर को उनकी उपस्थिति में ढक कर रखती थी. लेकिन चूंकि, दोनों कुमार और गोपाल बड़े शहरों में और बड़ी कंपनियों में काम करने वाले है, सो उनके अपने घरों में जीवन शैली जो बड़े पैमाने पर उदार है. शोभा और दीप्ति दोनो हो बङे शहरों से थी अतः उनके विचार काफी उन्मुक्त थे.
दोनों महिलायें हमेशा नये फैशन के कपङे पहन कर ही यात्रा करती थी, खासकर जब घर के माता पिता साथ नहीं होते थे. हालांकि, दोनों की उम्र में दस साल का अंतर है, दीप्ति अपनी वरिष्ठता का उपयोग करते हुए घर में नये फैशन की सहमति बनाती थी. इस प्रकार, बिना आस्तीन के ब्लाउज, पुश ब्रा, खुली पीठ के ब्लाउज और मेकअप का उपयोग होता था. हालांकि, यह स्वतंत्रता केवल छुट्टीयां व्यतीत करते समय के लिये ही दी गई है. सामान्य दिनचर्या में ऐसी चीजों के लिये कोई जगह नहीं थी. वे अक्सर सेक्स जीवन की बातें आपस में बाटती थीं और यहाँ से भी दोनों में काफी समानतायें थीं. दोनों ही पुरुष बहुत प्रयोगवादी नहीं थें और सेक्स एक दिनचर्या ही था. लेकिन अगली पीढ़ी का अजय बहुत अलग था. वह एक और अधिक उदार माहौल में, भारत के बड़े शहरों में बङा हुआ था. अजय वास्तव में, काफी कुछ ही खेलों में भाग लेने के कारण एक चुस्त शरीर के साथ एक दीर्घकाय युवा था. लड़का बड़ा हो गया था और बहुत जल्द ही अब एक पुरुष होने वाला था. ये बात भी शोभा ने इस बार नोट की थी. फिल्म में प्रेम दृश्य आने पर वह कमरा छोड़कर गया था इसी से स्पष्ट था उसें काफी कुछ मालूम था. बचपन में गर्मीयों की छुट्टी अजय शोभा के यहां ही बिताता था. एक छोटे लड़के के रूप में शोभा उसको स्नान भी कराती थी. कई बार कुमार की कामोद्दीपक उपन्यास गायब हो जाते थे वह खोजने पर वह उनको अजय के कमरे में पाती थी. इस बारे में सोच कर ही वह कभी कभी उत्तेजित हो जाती थी पर अजय के एक सामान्य स्वस्थ लड़का होने के कारण वह इस बारे में चुप रही.
अजय के कमरा छोडने के फौरन बाद, गोपाल और दीप्ति भी थकने का बहाना बना कर जा रहे थे. हालांकि, वे दोपहर में भोजन के बाद अच्छी तरह से सो चुके थे. शोभा को कोई संदेह ना था कि ये क्या हो सकता है. दीप्ति से उसकी नजरें एक बार मिली थी. पर दीप्ति बिना कुछ जताये सीढ़ियों पर पति के पीछे चल दी.
कुमार कब कमरा छोड़ कर गये ये उसको ज्ञात नहीं था पर जब वह सो कर उठी तो ऊपर के कमरे से जबर्दस्त आवाजें आ रही थी. शराब का नशा होने के बाद भी वह गोपाल और दीप्ति के कमरें से आती खाट की आवाज से जानती थी के इस वक्त गोपाल अपनी पत्नी को चोदने में व्यस्त हैं. किन्तु उसे पक्का नहीं था कि क्या वे ठीक से कमरे का दरवाज़ा बंद करने में विफल रहे या क्या शोर ही इतना ऊंचा था. लेकिन वह दीप्ति की मादक आहें सुन सकती थी जो इस वक्त गोपाल से चुदने के कारण "हां जी हां जी हां! हां, ऊई माँ, हाय हाय मर गयी" के रूप में निकल रहीं थीं. फिर उसने एक लम्बी आह सुनी. शायद गोपाल चुदाई खत्म करके अपना वीर्य अपनी पत्नी में खाली कर चुका था. फिल्म का असर गोपाल दीप्ति पर काफी अच्छा रहा था. फिल्म के उस प्रेम दृश्य में आदमी उस औरत को जानवरों की तरह चौपाया बना कर चोद रहा था. अपने कॉलेज के दिनों में शोभा ने इस सब के बारें में के बारे में अश्लील साहित्य में पढ़ा था और कुछ अश्लील फिल्मों में देखा भी था लेकिन अपने पति के साथ कभी इस का अनुभव नहीं किया. इस विषय की चर्चा अपने पति से करना उसके लिये बहुत सहज नहीं था. उनके लिए सेक्स शरीर की एक जरूरी गतिविधि थी. शोभा ने अपने आप को चारों ओर से उसके पल्लू से लपेट लिया. इन मादक आवाजों के प्रभाव से उसे एक कंपकंपी महसूस हो रही थी. इस वक्त वह सोच रही थी कि क्या अजय ने अपने माता पिता की आवाजें सुनीं होंगी? और कुमार, वह कहां हैं? शोभा को नींद आ रही थी और उसने ऊपर जाकर सोने का निर्णय लिया. सीढ़ियों से उपर आते ही, अचानक उसने अपने आपको ऊपर के कमरों की बनावट से अपरिचित पाया. वजह, इस घर में गोपाल नव स्थानांतरित हुये थे. जैसे ही वह सीढ़ियों से ऊपर आयी उसने खुद को कई सारे दरवाजों के सामने पाया. दो दरवाजे खुले थे और वे शयन कक्ष नहीं थे. तीन कमरों के दरवाजों को बंद किया था, और उन में से एक उसका और कुमार का था जब तक वो लोग वहां रहने वाले थे. परन्तु कौनसा दरवाजा उसका है?
अगर गलती से उसने गोपाल और दीप्ति क कमरा खोल दिया तो क्या होगा. इस बात कि कल्पना मात्र से ही उसको और नशा चढने लगा. अपनी कामुक कल्पना पर खुद ही मुस्कुरा के झूम सी उठी थी वो. अब जल्दी से जल्दी वो अपने बिस्तर तक पहुंचना चाहती थी. अपनी चूत में उठती लहरों को शान्त करना उसके लिये बहुत जरूरी हो गया था. दरवाजों के सामने खडे होकर शोभा, कुछ देर पहले आती आवाजों से अन्दाजा लगाने की कोशिश कर रही थी किवो कहां से आ रही थी. काफी देर के बाद खुद हो सन्तुष्ट करके उसने एक दरवाजे को हल्के से खोला. अन्दर से कोई आवाज नहीं आई. कमरे में झांक कर देखा तो बिस्तर पर एक ही व्यक्ति लेटा हुआ था. निश्चित हि यह गोपाल और दीप्ति का कमरा नहीं था. अन्दर घुसते हे वो बिस्तर के पास पहुंची और चद्दर उठा कर खुद को दो टांगो के बीच में स्थापित कर लिया. आज रात कुमार के लिये उसके पास काफी प्लान थे. शीघ्र ही शोभा ने उस सोये पडे व्यक्ति के पैजामे के नाडे को खोल लिया. पता नहीं क्युं पर, आज उसे कुमार का पेट काफी छरहरा लगा, परन्तु ये तो अभी अभी शुरु की हुयी जीम क्लास का नतीजा भी हो सकता है. जैसे ही शोभा ने कुमार (?) के पेट को चूमा एक हाथ ने उसका सिर पकड लिया.झाटों के घुंघराले बालों को एक तरफ करते ही उसके रसीले होंठों को थोडा मुरझाया हुआ सा लन्ड मिल गया. अपने होंठों को गोल करके शोभ पूरे मन से उस लन्ड को अन्दर बाहर करके चूसने लग गयी. उसकी आंखें आश्चर्य से तब फैल गयी जब तुरन्त ही लन्ड ने सर उठाना शुरु कर दिया. सामान्य तौर पर उसके पति के लन्ड से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी. फिर चाहें वो उस पर अपने हाथों का प्रयोग करे या कि होंठों का. धीरे धीरे अपना सिर उपर नीचे करते हुये सोये पडे कुमार को पूरा आनन्द देना चाहती थी ताकिं लन्ड अपन पूरा आकार पा सके और फिर वो जी भर कर उस पर उछल उछल कर सवारी कर सके.
शोभा के सिर पर एक हाथ धीरे से मालिश कर रहा था. शोभा को अगला आश्चर्य तब हुआ जब लन्ड से उसका पूरा मुंह से भरा गया और सुपाडा उसके गले के पीछले हिस्से को छूने लगा. इस स्थिति में उसे खुद को पीछे करके बैठना पडा ताकि सांस लेने में परेशानी ना हो. आश्चर्यचकित रूप से जो लन्ड आज तक उसके होंठों में आसानी से समा जाता था. वो आज पूरा मुंह खोल देने पर भी अंदर नहीं जा पा रहा था. शोभा ने हाथ बढा कर कुमार के पेट और छाती को सहलाना शुरु किया. लेकिन जब छाती के एकदम छोटे और कम बाल उसके हाथ में आये तब उसके दिमाग को एक झटका लगा. किन्तु इसी समय उस लेटे हुये व्यक्ति की कमर ने एक ताल में उछलना शुरु कर दिया था. इतना सब कछ, एक साथ उसके लिये काफी असामान्य था. शोभा ने हाथ बढा कर बिस्तर के पास रखी लैम्प तक पहुँचने की कोशिश की. ठीक उसी वक्त एक और हाथ भी लैम्प लिए आगे बढ रहा था. और चूंकि तकिये पर सिर होने के कारण अजय लैम्प के पास था और शोभा लन्ड पर मुंह होने के कारण उस तक आसानी से नहीं पहुंच सकती थी. अतः अजय ने ही पहले लैम्प का स्विच दबाया. अजय के लिये तो ये सब एक सामान्य सेक्सी सपना ही था जिसमे हर रात वो एक जोडी गरम गीले होंठों को अपने लन्ड पर महसूस करता था. लेकिन आज जब वो होंठ उसके लन्ड पर कसे तो उसे कुछ नया ही मजा आया और इसी वजह से उसकी आंखें खुल गयी. इस वक्त अजय के हाथ एक औरत सिर पर थे और अपने धड़ पर भारी गरम स्तन वो आराम से महसूस कर सकता था. उसे पता था कि यह एक सपना नहीं हैं. लाइट चालू करते ही उसने वहां अपनी शोभा चाची को देखा. चाची के कपडे पूरी तरह से अस्त व्यस्त थे.चाची उसकी दोनों टांगों के बीच में बैठी हुई थी. उनकी साड़ी का पल्लू बिस्तर पर बिछा हुआ था. लो कट के ब्लाउज से विशाल स्तनों के बीच की दरार साफ दिख रही थी और चाची का चेहरा उसके लंड के रस से सना हुआ था. अजय और चाची ने सदमे भरी निगाहों से एक दूसरे को देखा. पर किशोर अवस्था कि सैक्स इच्छाओं और वासना से भरे अजय के दिमाग ने जल्दी ही निर्णय ले लिया. आखिरकार उसकी चाची ने खुद ही कमरे में प्रवेश किया था और अब वो उसके लन्ड को मुँह में लेकर चूस रही थी. निश्चित ही चाची ये सब करना चाहती थी.
अजय ने वापस अपना हाथ शोभा चाची के सिर पर रख कर उनके मुंह में लन्ड घुसेडने का प्रयास किया. चाची अब तक अपने होंठों को उसके लन्ड से अलग कर चुकी थीं और सीधे बैठने की कोशिश कर रही थीं. इस जोर जबरदस्ती में अजय का फुंफकार मारता लन्ड शोभा के सिर, बालों और सिन्दूर से रगड खा के रह गया. अपना लक्ष्य चूक जाने से अजय का लन्ड और भी तन गया और उसके मुंह से एक आह सी निकली. "चाची, आप क्यूं रूक गए?". शोभा ने अपनी आँखें बंद किये हुये ही जवाब दिया "बेटा गलती हो गई. मुझे नहीं पता था कि यह तुम्हारा कमरा है". चाची कि हालत इस वक्त रंगे हाथों पकडे गये चोर जैसी थी और वो लगभग गिडगिडा रही थीं. धीरे से उन्होनें अपनी आंखें खोल कर अपने सामने तन कर खडे हुये उस शानदार काले हथौङे को देखा जो इस वक्त उनके गाल, ठोड़ी और होंठों से रगड खा रहा था. मन्त्रमुग्ध सी वो उस मर्दानगी के औजार को देखती ही रह गयीं. क्षण भर के लिये शोभा के दिमाग में दीप्ति का विचार आया. अगर अजय के पिता गोपाल का लन्ड भी अजय के जैसा शान्दार है तो दीप्ति वास्तव में भाग्यशाली औरत है. परन्तु शीघ्र ही अपने मन पर काबू पाते हुये उन्होनें दुबारा संघर्ष की कोशिश की. अजय अब तक उनके कंधों के आसपास अपने पैर कस कर शोभा को उसी स्थिति में जकड चुका था. उन पैरों कि मजबूत पकड़ के बीच में शोभा चाची के दोनो स्तन अजय के शरीर से चिपके हुये थे. शोभा चाची ने नीचे झुककर देखा तो ब्लाउज का लो कट गला, दो भारी स्तनों और उनके बीच की दरार का शानदार दृश्य भतीजे अजय को दिखा रहा था. चाची का मंगलसूत्र इस वक्त उनके गले से लटका हुआ दो बङी बङी गेंदों के बीच में झूल रहा था. चाची ने तुरन्त ही अपनी शादी की इस निशानी को वापिस से ब्लाउज में डाला और वहीं पास पडे साड़ी के पल्लू से खुद को ढकने की कोशिश की. तब तक अजय के हाथ उनके मोटे मोटे उरोजों को थाम चुके थे. दोनों हाथों से उसने चाची के उरोजों को बेदर्दी से मसल दिया. उसकी उंगलियां चाची के निप्पलों को खोज रही थीं. "बेटा, ये तुम क्या कर रहे हो? अपनी चाची के चूचों को हाथ लगाते शरम नहीं आती तुम्हें?" शोभा चाची ने उसे डांटते हुए कहा. "मुझे सिर्फ आप चाहिये. क्या शरम, कैसी शरम. कमरे में तो आप आई हैं. और फिर आपने मुझे कभी नन्गा नहीं देखा क्या? मैंने भी आपको कई बार नन्गा देखा है जब आप नहा कर बाथरूम से निकलती थी. आप ज्यादातर बाथरूम से सिर्फ तौलिया लपेटे ही बाहर आ जाती थी और फिर कपडे मेरे सामने ही पहनती थी" अजय ने चाची को याद दिलाया. "फिर मुझे नहलाते समय भी तो आप मेरे लन्ड को अपने हाथों से धोती थी. "तब तो आप को कोई परेशानी नहीं थी". "वो कुछ और बात थी", अपनी आंखों के आगे नाचते उस शानदार माँसपिन्ड के लिये अपनी वासना को दबाती हुयी सी शोभा चाची बडबडाई. चाची ने धक्का दे कर अजय कि टांगों को अपने कंधे से हटाया और खुद बिस्तर के बगल में खङी हो गईं. चाची की उत्तेजना स्वभाविक थी. भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे होते उनके स्तन, गोरे चेहरे और बिखरे हुए बालों पर लगा हुआ अजय के लंड का चिकना द्रव्य, मांग में भरा हुआ सिंदूर और पारंपरिक भारतीय पहनावा उनके इस रूप को और भी गरिमामय तरीके से उत्तेजक बना रहा था. किन्तु अब भी वो सामाजिक और पारिवारिक नियमों के बंधनों को तोडना नहीं चाहती थी. उनकी आंखों के सामने अपनी पूरी जिन्दगी में देखा सबसे विशालकाय लन्ड हवा में लहरा रहा था.
अजय उठा और चाची के खरबूजे जैसे स्तनों पर हाथ रख दिया. चाची ने उसकी कलाई पकड़ कर उसे रोकने की कोशिश की. किन्तु यहां भी यह सिर्फ दो विपरीत लिंगो का एक और शारीरिक संपर्क ही साबित हुआ. अजय ने अपना दूसरा हाथ चाची की कोमल नाभी के पास फिराते हुए कहा. "चाची, आ जाओ ना". अजय की आवाज में घुली हुई वासना में उन्हें अपने लिये चुदाई का स्वर्ग सुनाई दे रहा था. अपने घुटनों में आई कमजोरी को महसूस कर शोभा ने वहां से जाना ही उचित समझा. वो एक पल के लिये आगे झुकी और अजय के माथे पर चुंबन दिया. शायद चाची उसको शुभरात्रि कहना चहती थी. पर इस सब में उनका पल्लू गिर गया और अजय को अपनी आंखों के ठीक सामने ब्लाउज के अन्दर से निकल पङने को तैयार दो विशाल, गठीले चूंचें ही दिखाई दिये. चाची के पसीने से उठती हुई मादक खूशबू उसे पागल कर रही थी. उसका किसी भी औरत के साथ ये पहला अनुभव था. कांपते हुए हाथों से उसने शोभा चाची के स्तनों को एक साइड से छुआ और शोभा के मुहं से एक सीत्कार सी निकल गयी.
नौजवान अजय ने अपनी चाची के गुब्बारे कि तरह फूले हुये उन स्तनों को दोनो हाथों में थाम रखा था और उसके अंगूठे चाची के निप्पलों को ढूंढ रहे थे. चाची के ब्लाउज के पतले कपड़े के नीचे ब्रा की रेशमी लैस थी. अजय बिना कुछ सही या गलत सोचे पूरी तन्मयता से अपनी ही चाची के शरीर को मसल रहा था. अब तक शोभा चाची भी गरम होने लग गयी थीं. चाची ने दोनों हाथों से अजय के चेहरे को पकड कर अपने उरोजों के पास खींचा. उत्तेजना के मारे बिचारे अजय की हालत खराब हो रही थी. उसके दिल की धडकन एक दम से तेज हो गई थी और गला सुख रहा था. शोभा ने अब खुद ही अपना ब्लाउज खोलना शुरु कर दिया. ब्लाउज के खुलते ही चाची के दोनों स्तन पतली सी रेशमी ब्रा से निकल पडने को बेताब हो उठे. ब्लाउज इस वक्त शोभा चाची की पसीने से भीगी बाहों से चिपक कर रह गया था. किन्तु ये द्रश्य अजय जैसे कामुक लङके को पागल करने के लिये काफी था. अजय ने भी आगे बढते हुये चाची के तने हुये चूचों के ऊपर चुम्बनों की बारिश सी कर दी. चाची ने अजय के सिर को अपने दोनों स्तनों के बीच में दबोच लिया. इस समय चाची अपना एक घुटना बिस्तर पर टेककर और दूसरे पैर फर्श पर रख कर खडी हुई थीं. अजय ब्रा के ऊपर से ही होंठों से चाची के स्तनों पर मालिश कर रहा था. "चाची!" अजय फुसफुसाया. "हाँ बेटा," शोभा ने जवाब देते हुये उसके गालों को प्यार से चूम लिया. आज से पहले भी ना जाने कितनी बार शोभा ये शब्द अजय को बोल चुकी थी उसकी इकलौती चाची के रुप में. पर आज ये सब बिलकुल अलग था. आज की बातों में सिर्फ सेक्स करने को आतुर स्त्री-पुरुष ही तो थे. अजय ने जब अपने खुरदुरे हाथों से चाची की नन्गी पीठ को स्पर्श किया तो शोभा चाची एक दम से चिहुंक पङी. आज से पहले कभी उन्होने अपने बदन पर किसी एथलीट के हाथों को महसूस नहीं किया था. परन्तु अब शोभा खुद भी अपने भतीजे के साथ जवानी का ये खेल बन्द नहीं करना चाहती थी. अपने शरीर पर अजय के गर्म होंठ उनको एक मानसिक शान्ति दे रहे थे.
ये कहानी मुझको एक दूसरे फोरम से इंग्लिश में प्राप्त हुयी है. यहां मैं इसको हिन्दी में अनुवादित करके प्रस्तुत कर रहा हूं. कहानी लम्बी है अतः रोज कुछ ना कुछ पोस्ट करूंगा. कृपया अपनी राय जरूर दें, ताकी में आगे अपना काम करने को प्रेरित रहूं. धन्यवाद.
वह टी. वी के सामने सो रही थी तो दूसरे लोग भी अलग अलग समय पर अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए थे. शोभा और कुमार इस वक्त गोपाल और दीप्ति के घर पर आये हुये थे. गोपाल कुमार का बङा भाई था. घर में, गोपाल, दीप्ति का एक उन्नीस साल का बेटा अजय भी था. उस वक्त सब लोग एक हत्या की कहानी पर आधारित जो इस फिल्म देख रहे थे. आम मसाला फिल्म की तरह इस फिल्म में भी कुछ कामुक दृश्य थें. एक आवेशपूर्ण और गहन प्यार दृश्य आते ही अजय कमरें को छोड़ कर जा चुका था. गोपाल और दीप्ति दृश्य के आते ही और लड़के के कमरा छोड़ने के कारण जम से गये थे. घर के ऊपर और सब सोने के कमरें थे और और शाम को जब से ये लोग आये थे, कोई भी ऊपर नहीं गया था. नौकर सामान लेकर आया था और गोपाल, कुमार शराब के पैग बना रहे थे. महिलायें भी इस वक्त उनके साथ बैठ कर पी रही थी. हालांकि परिवार को पूरी तरह से माता पिता की रूढ़िवादी चौकस निगाहों के अधीन रखा गया था. बड़ों के आसपास होने पर महिलायें सिंदूर, मंगलसूत्र और साड़ी परंपरागत तरीके से पहनती थी. कुमार के बड़े भाई होने के नाते, शोभा के लिए, गोपाल भी बङे थे और वह अपने सिर को उनकी उपस्थिति में ढक कर रखती थी. लेकिन चूंकि, दोनों कुमार और गोपाल बड़े शहरों में और बड़ी कंपनियों में काम करने वाले है, सो उनके अपने घरों में जीवन शैली जो बड़े पैमाने पर उदार है. शोभा और दीप्ति दोनो हो बङे शहरों से थी अतः उनके विचार काफी उन्मुक्त थे.
दोनों महिलायें हमेशा नये फैशन के कपङे पहन कर ही यात्रा करती थी, खासकर जब घर के माता पिता साथ नहीं होते थे. हालांकि, दोनों की उम्र में दस साल का अंतर है, दीप्ति अपनी वरिष्ठता का उपयोग करते हुए घर में नये फैशन की सहमति बनाती थी. इस प्रकार, बिना आस्तीन के ब्लाउज, पुश ब्रा, खुली पीठ के ब्लाउज और मेकअप का उपयोग होता था. हालांकि, यह स्वतंत्रता केवल छुट्टीयां व्यतीत करते समय के लिये ही दी गई है. सामान्य दिनचर्या में ऐसी चीजों के लिये कोई जगह नहीं थी. वे अक्सर सेक्स जीवन की बातें आपस में बाटती थीं और यहाँ से भी दोनों में काफी समानतायें थीं. दोनों ही पुरुष बहुत प्रयोगवादी नहीं थें और सेक्स एक दिनचर्या ही था. लेकिन अगली पीढ़ी का अजय बहुत अलग था. वह एक और अधिक उदार माहौल में, भारत के बड़े शहरों में बङा हुआ था. अजय वास्तव में, काफी कुछ ही खेलों में भाग लेने के कारण एक चुस्त शरीर के साथ एक दीर्घकाय युवा था. लड़का बड़ा हो गया था और बहुत जल्द ही अब एक पुरुष होने वाला था. ये बात भी शोभा ने इस बार नोट की थी. फिल्म में प्रेम दृश्य आने पर वह कमरा छोड़कर गया था इसी से स्पष्ट था उसें काफी कुछ मालूम था. बचपन में गर्मीयों की छुट्टी अजय शोभा के यहां ही बिताता था. एक छोटे लड़के के रूप में शोभा उसको स्नान भी कराती थी. कई बार कुमार की कामोद्दीपक उपन्यास गायब हो जाते थे वह खोजने पर वह उनको अजय के कमरे में पाती थी. इस बारे में सोच कर ही वह कभी कभी उत्तेजित हो जाती थी पर अजय के एक सामान्य स्वस्थ लड़का होने के कारण वह इस बारे में चुप रही.
अजय के कमरा छोडने के फौरन बाद, गोपाल और दीप्ति भी थकने का बहाना बना कर जा रहे थे. हालांकि, वे दोपहर में भोजन के बाद अच्छी तरह से सो चुके थे. शोभा को कोई संदेह ना था कि ये क्या हो सकता है. दीप्ति से उसकी नजरें एक बार मिली थी. पर दीप्ति बिना कुछ जताये सीढ़ियों पर पति के पीछे चल दी.
कुमार कब कमरा छोड़ कर गये ये उसको ज्ञात नहीं था पर जब वह सो कर उठी तो ऊपर के कमरे से जबर्दस्त आवाजें आ रही थी. शराब का नशा होने के बाद भी वह गोपाल और दीप्ति के कमरें से आती खाट की आवाज से जानती थी के इस वक्त गोपाल अपनी पत्नी को चोदने में व्यस्त हैं. किन्तु उसे पक्का नहीं था कि क्या वे ठीक से कमरे का दरवाज़ा बंद करने में विफल रहे या क्या शोर ही इतना ऊंचा था. लेकिन वह दीप्ति की मादक आहें सुन सकती थी जो इस वक्त गोपाल से चुदने के कारण "हां जी हां जी हां! हां, ऊई माँ, हाय हाय मर गयी" के रूप में निकल रहीं थीं. फिर उसने एक लम्बी आह सुनी. शायद गोपाल चुदाई खत्म करके अपना वीर्य अपनी पत्नी में खाली कर चुका था. फिल्म का असर गोपाल दीप्ति पर काफी अच्छा रहा था. फिल्म के उस प्रेम दृश्य में आदमी उस औरत को जानवरों की तरह चौपाया बना कर चोद रहा था. अपने कॉलेज के दिनों में शोभा ने इस सब के बारें में के बारे में अश्लील साहित्य में पढ़ा था और कुछ अश्लील फिल्मों में देखा भी था लेकिन अपने पति के साथ कभी इस का अनुभव नहीं किया. इस विषय की चर्चा अपने पति से करना उसके लिये बहुत सहज नहीं था. उनके लिए सेक्स शरीर की एक जरूरी गतिविधि थी. शोभा ने अपने आप को चारों ओर से उसके पल्लू से लपेट लिया. इन मादक आवाजों के प्रभाव से उसे एक कंपकंपी महसूस हो रही थी. इस वक्त वह सोच रही थी कि क्या अजय ने अपने माता पिता की आवाजें सुनीं होंगी? और कुमार, वह कहां हैं? शोभा को नींद आ रही थी और उसने ऊपर जाकर सोने का निर्णय लिया. सीढ़ियों से उपर आते ही, अचानक उसने अपने आपको ऊपर के कमरों की बनावट से अपरिचित पाया. वजह, इस घर में गोपाल नव स्थानांतरित हुये थे. जैसे ही वह सीढ़ियों से ऊपर आयी उसने खुद को कई सारे दरवाजों के सामने पाया. दो दरवाजे खुले थे और वे शयन कक्ष नहीं थे. तीन कमरों के दरवाजों को बंद किया था, और उन में से एक उसका और कुमार का था जब तक वो लोग वहां रहने वाले थे. परन्तु कौनसा दरवाजा उसका है?
अगर गलती से उसने गोपाल और दीप्ति क कमरा खोल दिया तो क्या होगा. इस बात कि कल्पना मात्र से ही उसको और नशा चढने लगा. अपनी कामुक कल्पना पर खुद ही मुस्कुरा के झूम सी उठी थी वो. अब जल्दी से जल्दी वो अपने बिस्तर तक पहुंचना चाहती थी. अपनी चूत में उठती लहरों को शान्त करना उसके लिये बहुत जरूरी हो गया था. दरवाजों के सामने खडे होकर शोभा, कुछ देर पहले आती आवाजों से अन्दाजा लगाने की कोशिश कर रही थी किवो कहां से आ रही थी. काफी देर के बाद खुद हो सन्तुष्ट करके उसने एक दरवाजे को हल्के से खोला. अन्दर से कोई आवाज नहीं आई. कमरे में झांक कर देखा तो बिस्तर पर एक ही व्यक्ति लेटा हुआ था. निश्चित हि यह गोपाल और दीप्ति का कमरा नहीं था. अन्दर घुसते हे वो बिस्तर के पास पहुंची और चद्दर उठा कर खुद को दो टांगो के बीच में स्थापित कर लिया. आज रात कुमार के लिये उसके पास काफी प्लान थे. शीघ्र ही शोभा ने उस सोये पडे व्यक्ति के पैजामे के नाडे को खोल लिया. पता नहीं क्युं पर, आज उसे कुमार का पेट काफी छरहरा लगा, परन्तु ये तो अभी अभी शुरु की हुयी जीम क्लास का नतीजा भी हो सकता है. जैसे ही शोभा ने कुमार (?) के पेट को चूमा एक हाथ ने उसका सिर पकड लिया.झाटों के घुंघराले बालों को एक तरफ करते ही उसके रसीले होंठों को थोडा मुरझाया हुआ सा लन्ड मिल गया. अपने होंठों को गोल करके शोभ पूरे मन से उस लन्ड को अन्दर बाहर करके चूसने लग गयी. उसकी आंखें आश्चर्य से तब फैल गयी जब तुरन्त ही लन्ड ने सर उठाना शुरु कर दिया. सामान्य तौर पर उसके पति के लन्ड से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी. फिर चाहें वो उस पर अपने हाथों का प्रयोग करे या कि होंठों का. धीरे धीरे अपना सिर उपर नीचे करते हुये सोये पडे कुमार को पूरा आनन्द देना चाहती थी ताकिं लन्ड अपन पूरा आकार पा सके और फिर वो जी भर कर उस पर उछल उछल कर सवारी कर सके.
शोभा के सिर पर एक हाथ धीरे से मालिश कर रहा था. शोभा को अगला आश्चर्य तब हुआ जब लन्ड से उसका पूरा मुंह से भरा गया और सुपाडा उसके गले के पीछले हिस्से को छूने लगा. इस स्थिति में उसे खुद को पीछे करके बैठना पडा ताकि सांस लेने में परेशानी ना हो. आश्चर्यचकित रूप से जो लन्ड आज तक उसके होंठों में आसानी से समा जाता था. वो आज पूरा मुंह खोल देने पर भी अंदर नहीं जा पा रहा था. शोभा ने हाथ बढा कर कुमार के पेट और छाती को सहलाना शुरु किया. लेकिन जब छाती के एकदम छोटे और कम बाल उसके हाथ में आये तब उसके दिमाग को एक झटका लगा. किन्तु इसी समय उस लेटे हुये व्यक्ति की कमर ने एक ताल में उछलना शुरु कर दिया था. इतना सब कछ, एक साथ उसके लिये काफी असामान्य था. शोभा ने हाथ बढा कर बिस्तर के पास रखी लैम्प तक पहुँचने की कोशिश की. ठीक उसी वक्त एक और हाथ भी लैम्प लिए आगे बढ रहा था. और चूंकि तकिये पर सिर होने के कारण अजय लैम्प के पास था और शोभा लन्ड पर मुंह होने के कारण उस तक आसानी से नहीं पहुंच सकती थी. अतः अजय ने ही पहले लैम्प का स्विच दबाया. अजय के लिये तो ये सब एक सामान्य सेक्सी सपना ही था जिसमे हर रात वो एक जोडी गरम गीले होंठों को अपने लन्ड पर महसूस करता था. लेकिन आज जब वो होंठ उसके लन्ड पर कसे तो उसे कुछ नया ही मजा आया और इसी वजह से उसकी आंखें खुल गयी. इस वक्त अजय के हाथ एक औरत सिर पर थे और अपने धड़ पर भारी गरम स्तन वो आराम से महसूस कर सकता था. उसे पता था कि यह एक सपना नहीं हैं. लाइट चालू करते ही उसने वहां अपनी शोभा चाची को देखा. चाची के कपडे पूरी तरह से अस्त व्यस्त थे.चाची उसकी दोनों टांगों के बीच में बैठी हुई थी. उनकी साड़ी का पल्लू बिस्तर पर बिछा हुआ था. लो कट के ब्लाउज से विशाल स्तनों के बीच की दरार साफ दिख रही थी और चाची का चेहरा उसके लंड के रस से सना हुआ था. अजय और चाची ने सदमे भरी निगाहों से एक दूसरे को देखा. पर किशोर अवस्था कि सैक्स इच्छाओं और वासना से भरे अजय के दिमाग ने जल्दी ही निर्णय ले लिया. आखिरकार उसकी चाची ने खुद ही कमरे में प्रवेश किया था और अब वो उसके लन्ड को मुँह में लेकर चूस रही थी. निश्चित ही चाची ये सब करना चाहती थी.
अजय ने वापस अपना हाथ शोभा चाची के सिर पर रख कर उनके मुंह में लन्ड घुसेडने का प्रयास किया. चाची अब तक अपने होंठों को उसके लन्ड से अलग कर चुकी थीं और सीधे बैठने की कोशिश कर रही थीं. इस जोर जबरदस्ती में अजय का फुंफकार मारता लन्ड शोभा के सिर, बालों और सिन्दूर से रगड खा के रह गया. अपना लक्ष्य चूक जाने से अजय का लन्ड और भी तन गया और उसके मुंह से एक आह सी निकली. "चाची, आप क्यूं रूक गए?". शोभा ने अपनी आँखें बंद किये हुये ही जवाब दिया "बेटा गलती हो गई. मुझे नहीं पता था कि यह तुम्हारा कमरा है". चाची कि हालत इस वक्त रंगे हाथों पकडे गये चोर जैसी थी और वो लगभग गिडगिडा रही थीं. धीरे से उन्होनें अपनी आंखें खोल कर अपने सामने तन कर खडे हुये उस शानदार काले हथौङे को देखा जो इस वक्त उनके गाल, ठोड़ी और होंठों से रगड खा रहा था. मन्त्रमुग्ध सी वो उस मर्दानगी के औजार को देखती ही रह गयीं. क्षण भर के लिये शोभा के दिमाग में दीप्ति का विचार आया. अगर अजय के पिता गोपाल का लन्ड भी अजय के जैसा शान्दार है तो दीप्ति वास्तव में भाग्यशाली औरत है. परन्तु शीघ्र ही अपने मन पर काबू पाते हुये उन्होनें दुबारा संघर्ष की कोशिश की. अजय अब तक उनके कंधों के आसपास अपने पैर कस कर शोभा को उसी स्थिति में जकड चुका था. उन पैरों कि मजबूत पकड़ के बीच में शोभा चाची के दोनो स्तन अजय के शरीर से चिपके हुये थे. शोभा चाची ने नीचे झुककर देखा तो ब्लाउज का लो कट गला, दो भारी स्तनों और उनके बीच की दरार का शानदार दृश्य भतीजे अजय को दिखा रहा था. चाची का मंगलसूत्र इस वक्त उनके गले से लटका हुआ दो बङी बङी गेंदों के बीच में झूल रहा था. चाची ने तुरन्त ही अपनी शादी की इस निशानी को वापिस से ब्लाउज में डाला और वहीं पास पडे साड़ी के पल्लू से खुद को ढकने की कोशिश की. तब तक अजय के हाथ उनके मोटे मोटे उरोजों को थाम चुके थे. दोनों हाथों से उसने चाची के उरोजों को बेदर्दी से मसल दिया. उसकी उंगलियां चाची के निप्पलों को खोज रही थीं. "बेटा, ये तुम क्या कर रहे हो? अपनी चाची के चूचों को हाथ लगाते शरम नहीं आती तुम्हें?" शोभा चाची ने उसे डांटते हुए कहा. "मुझे सिर्फ आप चाहिये. क्या शरम, कैसी शरम. कमरे में तो आप आई हैं. और फिर आपने मुझे कभी नन्गा नहीं देखा क्या? मैंने भी आपको कई बार नन्गा देखा है जब आप नहा कर बाथरूम से निकलती थी. आप ज्यादातर बाथरूम से सिर्फ तौलिया लपेटे ही बाहर आ जाती थी और फिर कपडे मेरे सामने ही पहनती थी" अजय ने चाची को याद दिलाया. "फिर मुझे नहलाते समय भी तो आप मेरे लन्ड को अपने हाथों से धोती थी. "तब तो आप को कोई परेशानी नहीं थी". "वो कुछ और बात थी", अपनी आंखों के आगे नाचते उस शानदार माँसपिन्ड के लिये अपनी वासना को दबाती हुयी सी शोभा चाची बडबडाई. चाची ने धक्का दे कर अजय कि टांगों को अपने कंधे से हटाया और खुद बिस्तर के बगल में खङी हो गईं. चाची की उत्तेजना स्वभाविक थी. भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे होते उनके स्तन, गोरे चेहरे और बिखरे हुए बालों पर लगा हुआ अजय के लंड का चिकना द्रव्य, मांग में भरा हुआ सिंदूर और पारंपरिक भारतीय पहनावा उनके इस रूप को और भी गरिमामय तरीके से उत्तेजक बना रहा था. किन्तु अब भी वो सामाजिक और पारिवारिक नियमों के बंधनों को तोडना नहीं चाहती थी. उनकी आंखों के सामने अपनी पूरी जिन्दगी में देखा सबसे विशालकाय लन्ड हवा में लहरा रहा था.
अजय उठा और चाची के खरबूजे जैसे स्तनों पर हाथ रख दिया. चाची ने उसकी कलाई पकड़ कर उसे रोकने की कोशिश की. किन्तु यहां भी यह सिर्फ दो विपरीत लिंगो का एक और शारीरिक संपर्क ही साबित हुआ. अजय ने अपना दूसरा हाथ चाची की कोमल नाभी के पास फिराते हुए कहा. "चाची, आ जाओ ना". अजय की आवाज में घुली हुई वासना में उन्हें अपने लिये चुदाई का स्वर्ग सुनाई दे रहा था. अपने घुटनों में आई कमजोरी को महसूस कर शोभा ने वहां से जाना ही उचित समझा. वो एक पल के लिये आगे झुकी और अजय के माथे पर चुंबन दिया. शायद चाची उसको शुभरात्रि कहना चहती थी. पर इस सब में उनका पल्लू गिर गया और अजय को अपनी आंखों के ठीक सामने ब्लाउज के अन्दर से निकल पङने को तैयार दो विशाल, गठीले चूंचें ही दिखाई दिये. चाची के पसीने से उठती हुई मादक खूशबू उसे पागल कर रही थी. उसका किसी भी औरत के साथ ये पहला अनुभव था. कांपते हुए हाथों से उसने शोभा चाची के स्तनों को एक साइड से छुआ और शोभा के मुहं से एक सीत्कार सी निकल गयी.
नौजवान अजय ने अपनी चाची के गुब्बारे कि तरह फूले हुये उन स्तनों को दोनो हाथों में थाम रखा था और उसके अंगूठे चाची के निप्पलों को ढूंढ रहे थे. चाची के ब्लाउज के पतले कपड़े के नीचे ब्रा की रेशमी लैस थी. अजय बिना कुछ सही या गलत सोचे पूरी तन्मयता से अपनी ही चाची के शरीर को मसल रहा था. अब तक शोभा चाची भी गरम होने लग गयी थीं. चाची ने दोनों हाथों से अजय के चेहरे को पकड कर अपने उरोजों के पास खींचा. उत्तेजना के मारे बिचारे अजय की हालत खराब हो रही थी. उसके दिल की धडकन एक दम से तेज हो गई थी और गला सुख रहा था. शोभा ने अब खुद ही अपना ब्लाउज खोलना शुरु कर दिया. ब्लाउज के खुलते ही चाची के दोनों स्तन पतली सी रेशमी ब्रा से निकल पडने को बेताब हो उठे. ब्लाउज इस वक्त शोभा चाची की पसीने से भीगी बाहों से चिपक कर रह गया था. किन्तु ये द्रश्य अजय जैसे कामुक लङके को पागल करने के लिये काफी था. अजय ने भी आगे बढते हुये चाची के तने हुये चूचों के ऊपर चुम्बनों की बारिश सी कर दी. चाची ने अजय के सिर को अपने दोनों स्तनों के बीच में दबोच लिया. इस समय चाची अपना एक घुटना बिस्तर पर टेककर और दूसरे पैर फर्श पर रख कर खडी हुई थीं. अजय ब्रा के ऊपर से ही होंठों से चाची के स्तनों पर मालिश कर रहा था. "चाची!" अजय फुसफुसाया. "हाँ बेटा," शोभा ने जवाब देते हुये उसके गालों को प्यार से चूम लिया. आज से पहले भी ना जाने कितनी बार शोभा ये शब्द अजय को बोल चुकी थी उसकी इकलौती चाची के रुप में. पर आज ये सब बिलकुल अलग था. आज की बातों में सिर्फ सेक्स करने को आतुर स्त्री-पुरुष ही तो थे. अजय ने जब अपने खुरदुरे हाथों से चाची की नन्गी पीठ को स्पर्श किया तो शोभा चाची एक दम से चिहुंक पङी. आज से पहले कभी उन्होने अपने बदन पर किसी एथलीट के हाथों को महसूस नहीं किया था. परन्तु अब शोभा खुद भी अपने भतीजे के साथ जवानी का ये खेल बन्द नहीं करना चाहती थी. अपने शरीर पर अजय के गर्म होंठ उनको एक मानसिक शान्ति दे रहे थे.
Saturday, August 21, 2010
doosre se chudwai ka aanand - true story,part 1.
यह सच्ची बात है, सिर्फ नाम अलग हैं, करीब ४ वर्ष पहले हमलोगों ने एक बड़ा ही नया अनुभव किया, आज अन्तर्वासना पर इतनी कहानिया पढने के बाद सोचा की मन की बात बता ही दूं , कुछ विवरण और वार्तालाप थोड़े काल्पनिक है इस कहानी को इंटरेस्टिंग बनाने के लिए लेकिन हुआ सब कुछ वैसा ही जो लिखा है, हमारा सेक्सुअल जीवन काफी आनंदमय था और शादी के इतने सालों बाद बहुत ही खुल गए थे और शादी के १४ वर्षों के बाद नए तरीको से सेक्स जिंदगी को आनंदमय बनाने का प्रयास करते जैसे की पत्नी का कभी कभी अंग प्रदर्शन , साथ ब्लू फिल्म्स देखना , जब घर मैं अकेले हों तो नंगा रहना और वैसे ही खाना खाना साथ म॓, देर रात को अँधेरे बालकोनी म॓ पत्नी का लगभग नग्न साथ बैठना इत्यादि. हम सम्भोग के समय बिलकुल खुली बातें करते, तीसरे पुरुष और इस्त्री के बारे में फंतासी करते, एक दुसरे को प्यार भरी गंदी गालिया देते और एक दुसरे के अंगो के लिए गंदी बातें करते. लेकिन कभी भी हमने तीसरे पुरुष या इस्त्री के साथ सेक्स करने के लिए प्रयास नहीं किया, हम ऐसे ही बहुत खुश थे. हम कभी कभी रात को खाने के बाद गाडी में दूर तक चक्कर लगाते और शहर के बहार हाईवे पर जाते, शहर का नाम नहीं बताऊँगा. पत्नी जो की काफी भर पुरे शरीर की है और स्तन जिसके ज्यादा बड़े तो नहीं लेकिन बहुत ही गुदाज और उन्नत है, मेरे कहने पर ब्लौसे से निकाल लेती और उनकी घुंडियों तक उन्हें बाहर कर लेती, हमे एक अजीब प्रकार का आनंद प्राप्त होता यह सोच कर की नजदीक से गुजर्नेवालों की नजर उन स्तनों पर पड़ती है और मेरी पत्नी और मैं दोनों सेक्स की गर्मी महसूस करते और घर आकर बहुत ही रोमांचक चुदाई का मजा लेते. एक दो बार हमने देखा की बाहर सड़क पर चलने वालो की नजर पत्नी के अर्ध्खुले स्तनों पर पड़ी तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गयी. पत्नी के उरोज तो उन्नत थे ही, सबसे ज्यादा सेक्सी थी उसकी जांघे और मोटे नितम्ब, जांघ जैसे की मोटे शिला की तरह बिलकुल चिकनी गोरी और नितम्ब ३९ इंच. उन कूल्हों को देख कर किसी का भी मन ख़राब हो जा सकता है आज भी . एक दिन देखा कि एक चने वाला अपना सामन समेट कर जाने ही वाला था तभी पत्नी ने कहा की हम चना खायेंगे , मैंने गाडी रोकी और उससे मसाला चना लिया जो की काफी स्वादिस्ट था, मैंने पुछा की क्या रोज यहाँ आते हो तो उसने बताया की करीब दो हफ्ते से ठेला यहाँ लगा रहा हूँ उसके पहले कहीं दूसरी जगह लगाता था. चने वाला अंदाज़ 35 एक साल का होगा लेकिन शरीर से हट्टा कट्ठा था और बहुत ही साफ़ सुथरा जैसे की रोज शरीर पर तेल मालिश करता हो कुछ कुछ पहेलवानो जैसा सुडौल शरीर, मैंने नाम पुछा तो बताया सरजू , हम चना लेकर चले आये, रात को जब पत्नी के साथ सम्भोग करते हुए उस चने वाले की याद आयी , पुछा सरजू कैसा लगा, पत्नी ने कहा फालतू की बातें मत करो और हंसने लगी, मैंने कहा कल जब जायेंगे तो उसे भी अपने उरोजों के दर्शन कराना पागल हो जाएगा, पत्नी ने कहा चलती गाडी में बात और है, गाडी रोक कर मैं अपने चूचो को नहीं दिखाऊंगी, कोई गड़बड़ हो गयी तो क्या होगा, मैंने कहा की क्या उसका शरीर तुम्हे मस्त और मजबूत नहीं लगा तो वोह मुझे चूमने और काटने लगी, मैं जानता था की उस दिन की बात याद कर के उसे मजा आ रहा था. हम दो तीन दिन बाद फिर उस तरफ निकले , पत्नी से मैं कहा की तुम्हारी सबसे छोटी और काली वाली जालीदार ब्रा पहनो , पत्नी ने पहेन तो लिया पर चूचो को दिखाने से मना कर दिया कहा गाडी रोके कर ऐसा करना खतरनाक होगा, मैंने कहा चलो तो, जाते हुए देखा की चने वाला ठेला लगाये खड़ा था, लौटते हुए मैंने पत्नी से कहा की अपने चूचे बहार कर ले पहले तो तैयार नहीं हुई पर जोर देने पर मान गयी, कहा की अगर वहां भीड़ होगी तो नहीं खोलेगी, पत्नी अपनी चूचियों को बाहर कर लेती थी लेकिन उसपर साड़ी का पल्लू ढांप कर रखती थी और जब भी मौका दीखता साड़ी का पल्लू हटा अपने उरोजों का प्रदर्शन करती , अगर भीड़ बहुत होती तो फिर से ढक लेती, मैंने दूर से देखा की ठेले पर कोई नहीं है और सिर्फ चने वाला और उसके साथ एक छोटा लड़का खड़ा है , रौशनी भी वहां ज्यादा नहीं थी, पत्नी ने झिझकते हुए अपने स्तनों को ब्रा से निकाल बाहर किया और साड़ी के पल्लू से ढक लिया, मैंने गाडी रोकी और चने वाले को बुलाया नजदीक, और पत्नी को इशारा किया, पत्नी ने थोडा सा पल्लू हटाया और किनारे से उसके गोरे गोरे बाएँ तरफ के उरोजों ने हलकी सी झलक दी शायद चने वाले ने भी देखा ऐसा तीन चार बार हमने किया और धीरे धीरे पत्नी ने अपने उरोजों पर का पल्लू करीब करीब एकदम ही हटाना शुरू कर दिया, अब उसके अर्ध नंगे गोरे और ऊंचे स्तन साफ़ दीखते थे, दिखावा ऐसे करती थी जैसे उसे पता ही नहीं और पल्लू खिसका गया हो, शायद चने वाला कुछ कुछ समझ रहा था. अब जब भी गाड़ी वहां खडी करता चने वाला दौड़ा आता और चने देने के बहाने वहां खड़ा होकर मेरे और पत्नी से इधर उधर की बातें करने लगता, हम भी थोडा निडर हो गए और आनंद लेने लगे . पत्नी की झिझक कम हो रही थी. वोह पहले से ज्यादा उरोजों का प्रदर्शन चने वाले के लिए करने लगी, अब तो लगभग एक तरफ के चुचों को पूरा ही बाहर निकाल कर उसे दिखाने लगी, चने वाले का ठेला उस तरफ ही होता था जिस ओर पत्नी बैठती थी यानि की पत्नी की बायी ओर. चने वाला भी अब समझ गया था . मैं और पत्नी चुदाई का बहुत मज्जा ले रहे थे , सरजू का जिक्र होते ही पत्नी गरम हो जाती थी और मैंने देखा उसकी बूर पानी से भर जाती थी, मुझे दातों से काटने लगती और सिसकारी भी लेती, हालाकिं किसी दुसरे समय बात करता तो मुझपर गुस्सा दिखाती, एक दिन जब गाडी रोकी तो देखा की सरजू चने लेकर आया और उसने पत्नी की ओर का दरवाजा खोल कर चने पत्नी और मेरे हाथ में दिया, पहले वो खिड़की से ही देता था, मैंने कुछ नहीं कहा, वो पत्नी से काफी सटकर खड़ा था, अब वो दो मतलबी भाषा में भी बोलने लगा और पत्नी को सीधा ही संबोद्धित करता , जैसे एक दिन बोल पड़ा मेमसाब मेरा चना आपके लिए स्पेशल तैयार किया है गरमा गरम दिखाऊँ क्या, हम सभी इसका मायने समझ रहे थे पर पत्नी ने अनजान होकर कहा अभी नहीं कल दिखाना अभी भूख नहीं है, दो या तीन दिन बाद हम फिर वहां गए, अब मेरी पत्नी भी इस अनुभव का बहुत मजे से आनंद लेने लगी थी, हम ध्यान रखते थे की उसके ठेले पर जब भीड़ नहीं हो तभी वहां गाडी लगायें, उसदिन पत्नी ने ब्रा नहीं पहनी, और ब्लौसे के ऊपर के तीन बटन खोल लिए, मैंने गाडी रोकी तो सरजू नजदीक आया और पत्नी की ओर का दरवाजा खोला, हमने देखा की उस समय उसने धोती सामने से चौड़ी कर ली थी थी और उसका ब्लू रंग का जांघिया साफ़ दिख रहा था जिसके किनारे से उसने अपने लंड का आगे का हिस्सा निकाल रक्खा था और उसका सुपाडा दीख रहा था, बिलकुल लाल, मेरी पत्नी ने साड़ी का पल्लू खिसकाया तो उसके दोनों स्तन ब्लौस के बहार फूलेसे निकल पड़े, सरजू आँख फाड़ कर देखता रहा, पत्नी धीरे से मुस्कुरा रही थी और पूरे ही स्तनों को प्रदर्शित कर दिया, मुस्कुराते हुए पुछा तुम्हारा गरम चना तैयार है तो क्यों नहीं खिलाते मैं भी देखूं की कितना गरम है, सरजू को अब स्पस्ट इशारा मिल गया था, हम तीनो ही अब बेबाक हो गये थे सरजू मेरी उपस्थिती से बेफिक्र था, मैं भी सेक्स और वासना के पीछे दीवाना हो गया था, सरजू बोला मेमसाब आपके सामने ही है, आप खुद ही देख लीजिये और उसने पत्नी के हाथों को पकड़ लिया और अपने जांघिये के पास लाकर अपने लंड को पकड़ा दिया, पत्नी सन्नाटे में थी, उसने ऐसा सोचा नहीं था की गैर मर्द का लंड भी पकड़ लेगी, उसने हाथ हटा लिया, मैंने हिम्मत देते हुए कहा की चना खाना है तो देखना तो होगा ही कैसा है, घबराओ नहीं, पत्नी का गला सूख गया, उसकी आवाज नहीं निकल रही थी, हम लोग मजाक में ही बहुत आगे बढ़ चुके थे, पत्नी ने कहा घर चलो, फिर आयेंगे, मैंने सरजू से कहा की कल आएंगे और चल पड़े, सरजू थोडा उदास दिखा. कुछ दिन हम नहीं गए लेकिन अन्दर से पत्नी और मैं दोनों ही दुबारा ऐसा हो ऐसा चाहते थे, एक दिन पत्नी से फिर कहा तो बोली ठीक है लेकिन मैं उसका लिंग नहीं पकडूंगी मैंने कहा ठीक है लेकिन अगर वो तुम्हारे बोबे छूना चाहे या दबाये तो मना मत करना, देखूँगी कह कर वो तैयार हो गयी, लौटे हुए हमने देखा सरजू के ठेले के पास कोई नहीं, हम रुक गए, उसे अव्वाज़ दी तो आया, मैंने कहा आज चने नहीं खिलाओगे तो सरजू बोला आप नाराज है साब, हम कैसे अपनी मर्जी से आपको और मेमसाब को चना खाने बोल सकते हैं, आपको चाहिए तो अभी ले कर आता हूँ, मैं इशारा किया और सरजू चने लेन गया तो पत्नी से कहा की क्यों मुझे और उस बेचारे को तडपाती हो, अन्दर से मन पत्नी का भी था, बिना बोले उसने अपने ब्लौसे खोले और स्तनों को बाहर निकाला और पल्लू ढक कर बैठी रही, इसी बीच सरजू आया तो मैंने चने लिए और उससे कहा मेमसाब को तुम्हारे चने अच्छे लगते हैं लेकिन डरती हैं की ज्यादा लेने से नुक्सान होगा, सरजू समझ रहा था, पत्नी का चेहरा लाल हो गया, वो शर्मा रही थी, सरजू बोला आप चिंता न करें साब, हम भी अच्छे लोग हैं आपकी इज्जत मेरी है, मेमसाब का मन नहीं तो उन्हें कुछ ना कहें लेकिन मेरे ठेले पर आते रहिएगा कहकर पत्नी के गालों पर धीरे से हाथ लगाया और लौटने लगा, पत्नी जैसे पिघल गयी, वो तैयार ही थी लेकिन उसे अन्दर की झिझक थी, उसने सरजू को आवाज़ दी ,सुनो, तुम्हारे ये चने ठन्डे हैं, मुझे गरम चने दो, सरजू वापस मुड़ा और आकर दरवाज़ा खोल पत्नी से सट के खड़ा हो गया, पत्नी ने किनारे से साडी खिसकाई और पल्लू खींच अपने दोनों उभार उसे दिखाए, मेरी तरफ सरजू ने देखा तो और मुझे चुप चाप देखता पाकर उसने धीरे से एक हाथ पत्नी के उरोजों पर रख कर हलके से उठाया और दबा दिया, पत्नी ने पल्लू ऊपर कर अपने चूचो को ढक लिया, कुछ शर्म से और इसलिए की किसीको को अनायास दिखे नहीं, मेरा हथियार दवाब से फटने को तैयार था, जैसे की पेंट फाड़ कर बाहर निकल जायेगा, उधर पत्नी का पूरा शरीर थरथरा रहा था, वोह बहुत धीमे आवाज़ में कुछ बडबडा रही थी, सरजू झुका और पल्लू में सर घुसा कर पत्नी के चूचो को चूस लिया, पत्नी ने हलकी सिसकार मारकर उसका मुह अपने चुचों से अलग किया. सरजू ने पत्नी की जन्घो को हलके से दबा दिया और उठ खड़ा हुआ. वो बहुत गरम हो गयी थी, मैंने सरजू से कहा कल आयेंगे और गाडी शुरू करदी, उस रात खूब जमकर चुदाई हुई, पत्नी खुल कर सरजू की बातें कर रही थी और बहुत मजा ले रही थी, मुझे भी गजब का आनंद आ रहा था, हम दो दिन तक नहीं जा सके, पत्नी हर समय उसकी बातें करना चाहती थी मुझे लगा अब उसे अपने पर कण्ट्रोल नहीं है, तीसरे दिन पत्नी शाम को तैयार थी, उसने अन्दर जिप वाली ब्रा और पेंटी पहनी थी, हम सरजू के ठेले पर पहुंचे तो वहां कुछ लोग थे, मैंने सरजू को इशारा किया हम थोड़ी देर में लौटते हुए आते हैं, वापस आने तक हम येही प्लान करते रहे क्या करना है, पत्नी अब सरजू के साथ मस्ती के लिए तो तैयार थी लेकिन एक लिमिट के अन्दर सोचा जो होगा देखा जाएगा, सरजू के शरीर ने पत्नी को आकर्षित किया और जब एक सामाजिक दाएरे के बाहर चोरी चोरी किस्म का सेक्स होता है तो बहुत एक्सैत्मेंट होती है, और यहाँ तो मैं साथ था जिसके कारण पत्नी और ज्यादा उत्तेजित हो रही थी,
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मेरा पहला एहसास
मेरी उम्र १८ साल है, मैं कुंवारी युवती हूँ. मैंने 12th का exam दीया है. मैं अपने बारे में यह बताना जरूरी समझती हूँ की मेरी फमिल्य काफी advance है, और मुझे कीसी प्रकार की बंदीश नहीं लगायी जाती. मैं अपनी मरजी से जीना पसंद करती हूँ. अपने ही ढंग से fashionable कपडे पहन-ना मेरा शौक़ है. और क्योंकी मैं मम्मी पापा की इकलौती बेटी हूँ इसलिए कीसी ने भी मुझे इस तरह के कपडे पहन-ने से नहीं रोका. School आने जाने के लिए मुझे एक ड्राइवर के साथ कार मीली हुई थी. वैसे तो मम्मी मुझे ड्राइव करने से मन करती थी, मगर मैं अक्सर ड्राइवर को घूमने के लिए भेज देती और खुद ही कार लेकर सैर करने निकल जाती थी.
School में पढने वाला एक लड़का मेरा दोस्त था. उसके पास एक अच्छी सी bike थी. मगर वो कभी कभी ही bike लेकर आता था, जब भी वो bike लेकर आता मैं उसके पीछे बैठ कर उसके साथ घूमने जाती. और जब उसके पास bike नहीं होती तो मैं उसके साथ कार में बैठ कर घूमने का अनद उठाती. ड्राइवर को मैंने पैसे देकर मना कर रख्खा था की घर पर मम्मी या पापा को ना बताये की मैं अकेली कार लेकर अपने दोस्त के साथ घूमने जाती हूँ. इस प्रकार उसे दोहरा फायदा होता था, कै ओर तो उसे पैसे भी मील जाते थे और दूसरी ओर उसे अकेले घूमने का मौका भी मील जाया कर्ता था. दो बजे School से छुट्टी के बाद अक्सर मैं अपने दोस्त के साथ निकल जाती थी और करीब ६-७ बजते बजते घर पहुंच जाती थी. एक प्रकार से मेरा घूमना भी हो जाता था और घर वालो को कुछ कहने का मौका भी नहीं मिलता था.
मेरे दोस्त का नाम तो मैं बातन ही भूल गयी. उसका नाम वीनय है. वीनय को मैं मन ही मन प्यार करती थी और वीनय भी मुझसे प्यार कर्ता था, मगर ना तो मैंने कभी उससे प्यार का इजहार कीया और ना ही उसने. उसके साथ प्यार करने में मुझे कोई झीझक महसूस नहीं होती थी. मुझे याद है की प्यार की शुरुआत भी मैंने ही की थी जब हम दोनो bike में बैठ कर घूमने जा रहे थे. मैं पीछे बैठी हुई थी जब मैंने रोमांटिक बात करते हुए उसके गाल पर कीस कर लीया. ऐसा मैंने भावुक हो कर नहीं बल्की उसकी झीझक दूर करने के लिए किया था. वो इससे पहले प्यार की बात करने में भी बहुत झीझाकता था. एक बार उसकी झीझक दूर होने के बाद मुझे लगा की उसकी झिजहक दूर करके मैंने ठीक नहीं कीया. क्योंकी उसके बाद तो उसने मुझसे इतनी शरारत करनी शुरू कर दी की कभी तो मुझे मज़ा आ जाता था और कभी उस पर ग़ुस्सा. मगर कुल मीलाकर मुझे उसकी शरारत बहुत अच्छी लगती थी. उसकी इन्ही सब बातो के कारण मैं उसे पसंद करती थी और एक प्रकार से मैंने अपना तन मन उसके नाम कर दीया था.
एक दीन मैं उसके साथ कार में थी. कार वोही ड्राइव कर रह था. एकाएक एक सुनसान जगह देखकर उसने कार रोक दी और मेरी ओर देखते हुए बोला, “अच्छी जगह है ना ! चारो तरफ अँधेरा और पड पौधे हैं. मेरे ख़्याल से प्यार करने की इससे अच्छी जगह हो ही नहीं सकती.” यह कहते हुए उसने मेरे होंठो को चूमना चाहा तो मैं उससे दूर हटने लगी. उसने मुझे बाहों में कास लीया और मेरे होंठो को ज़ोर से अपने होंठो में दबाकर चूसना शुरू कर दीया. मैं जबरन उसके होंठो की गिरफ्त से आज़ाद हो कर बोली, “छोडो, मुझे सांस लेने में तकलीफ हो रही है.” उसने मुझे छोड़ तो दीया मगर मेरी चूची पर अपना एक हाथ रख दीया. मैं समझ रही थी की आज इसका मन पूरी तरह रोमांटिक हो चुक्का है. मैंने कहा, “मैं तो उस दीन को रो रही हूँ जब मैंने तुम्हारे गाल पर कीस करके अपने लिए मुसीबत पैदा कर ली. ना मैं तुम्हे कीस करती और ना तुम इतना खुलते.” “तुमसे प्यार तो मैं काफी समय से कर्ता था. मगर उस दीन के बाद से मैं यह पूरी तरह जान गया की तुम भी मुझसे प्यार करती हो. वैसे एक बात कहों, तुम हो ही इतनी हसीं की तुम्हे प्यार किय बीना मेरा मन नहीं मान-ता है.”
वो मेरी चूची को दबाने लगा तो मैं बोली, “उम्म्म्म्म क्यों दबा रहे हो इसे? छोडो ना, मुझे कुछ कुछ होता है.” “क्या होता है?” वो और भी ज़ोर से दबाते हुए बोला, मैं क्या बोलती, ये तो मेरे मन की एक फीलींग थी जिसे शब्दो में कह पाना मेरे लिए मुश्कील था. इसे मैं केवल अनुभव कर रही थी. वो मेरी चूची को बदस्तूर मसलते दबाते हुए बोला, “बोलो ना क्या होता है?”
“उम्म्म्म्म उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ मेरी समझ में नहीं आ रह है की मैं इस फीलींग को कैसे व्यक्त करूं. बस समझ लो की कुछ हो रह है.”
वो मेरी चूची को पहले की तरह दबाता और मसलता रहा. फीर मेरे होंठो को कीस करने लगा. मैं उसके होंठो के चुम्बन से कीच कुछ गरमा होने लगी. जो मौका हमे संयोग से मीला था उसका फायदा उठाने के लिए मैं भी व्याकुल हो गयी. तभी उसने मेरे कपडो को उतारने का उपक्रम कीया. होंठ को मुकत कर दीया था. मैं उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराने लगी. ऐसा मैंने उसका हौंसला बढाने के लिए कीया था. ताकी उसे एहसास हो जाये की उसे मेरा support मील रहा है.
मेरी मुस्कराहट को देखकर उसके चहरे पर भी मुस्कराहट दिखाई देने लगी. वो आराम से मेरे कपडे उतारने लगा, पहले उसका हाथ मेरी चूची पर ही था सो वो मेरी चूची को ही नंगा करने लगा. मैं हौले से बोली, “मेरा विचार है की तुम्हे अपनी भावनाओं पर काबू करना चाहिऐ. प्यार की ऐसी दीवानगी अच्छी नहीं होती.”
उसने मेरे कुछ कपडे उतार दीये. फीर मेरी ब्रा खोलते हुए बोला, “तुम्हारी मस्त जवानी को देखकर अगर मैं अपने आप पर काबू पा लूं तो मेरे लीये ये एक अजूबे के समन होगा.”
मैंने मन में सोचा की अभी तुमने मेरी जवानी को देखा ही कहॉ है. जब देख लोगे तो पता नहीं क्या हाल होगा. मगर मैं केवल मुस्कुरायी. वो मेरे मम्मे को नंगा कर चुक्का था. दोनो चूचियों में ऐसा तनाव आ गया था उस वक़्त तक की उसके दोनो निप्प्ले अकड़ कर और ठोस हो गए थे. और सुई की त्तारह तन गए थे. वो एक पल देख कर ही इतना उत्तेजित हो गया था की उसने निप्प्ले समेट पूरी चूची को हथेली में समेटा और कास कास कर दबाने लगा. अब मैं भी उत्तेजित होने लगी थी. उसकी हर्कतो से मेरे अरमान भी मचलने लगे थे. मैंने उसके होंठो को कीस करने के बाद प्यार से कहा, “छोड़ दो ना मुझे. तुम दबा रहे हो तो मुझे गुदगुदी हो रही है. पता नहीं मेरी चूचियों में क्या हो रहा है की दोनो चूचियों में तनाव सा भरता जा रहा है. Please छोड़ दो, मत दबाओ.” वो मुस्कुरा कर बोला, “मेरे बदन के एक खास हिस्से में भी तो तनाव भर गया है. कहो तो उसे निकाल कर दिखाऊँ?”
मैं समझ नहीं पाई की वो किसकी बात कर रहा है. मगर एक एक वो अपनी पैंट उतारने लगा तो मैं समझ गयी और मेरे चहरे पर शर्म की लालओ फैल गयी. वो किसमें तनाव आने की बात कर रहा था उसे अब मैं पूरी तरह समझ गयी थी. मुझे शर्म का एहसास भी हो रहा था और एक प्रकार का रोमांच भी सारे बदन में अनुभव हो रहा था. मैं उसे मना करती रह गयी मगर उसने अपना काम करने से खुद को नहीं रोका, और अपनी पैंट उतार कर ही माना. जैसे ही उसने अपना अंडरवियर भी उतारा तो मैंने जल्दी से निगाह फेर ली.
वो मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए बोला, “छू कर देखो ना. कीतना तनाव आ गया है इसमें. तुम्हारे न्प्प्ले से ज्यादा तन गया है ये.”
मैंने अपना हाथ छुडाने की acting भर की. सच तो ये था की मैं उसे छूने को उतावली हो रही थी. अब तक देखा भी नहीं था. छू कर देखने की बात तो और थी. उसने मेरे हाथ को बढ़ा कर एक मोटी सी चीज़ पर रख दीया. वो उसका लंड है ये मैं समझ चुकी थी. एक पल को तो मैं सन् रह गयी, उसका लुंड पकड़ने के बाद. मेरे दील की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी की खुद मेरे कानो में भी गूंजती लग रही थी. मैं उसके लंड की ज़द की ओर हाथ बढाने लगी तो एह्साह हुआ की लंड लम्बा भी काफी था. मोटा भी इस क़दर की उसे एक हाथ में ले पाना एक प्रकार से नामुमकीन ही था.
वो मुझे गरम होता देख कर मेरे और करीब आ गया और मेरे निप्प्ले को सहलाने लगा. एक एक उसने निप्प्ले को चूमा तो मेरे बदन में ख़ून का दौरा तेज़ हो गया, और मैं उसके लंड के ऊपर तेज़ी से हाथ फिराने लगी. मेरे ऐसा करते हु उसने झट से मेरे निप्प्ले को मुँह में ले लीया और चूसने लगा. अब तो मैं पूरी मस्ती में आ गयी और उसके लंड पर बार बार हाथ फेर कर उसे सहलाने लगी. बहुत अच्चा लग रहा था, मोटे और लंबे गरम लंड पर हाथ फिराने में.
एक एक वो मेरे निप्प्ले को मुँह से निकाल कर बोला, “कैसा लग रहा है मेरे लंड पर हाथ फेरने में?”
मैं उसके सवाल को सुनकर शर्म गई. हाथ हटाना चाहा तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर लंड पर ही दबा दीया और बोला, “तुम हाथ फेरती हो तो बहुत अच्चा लगता है, देखो ना, तुम्हारे द्वारा हाथ फेरने से और कीतना तन गया है.”
मुझसे रहा नहीं गया तो मैं मुस्कुरा कर बोली, “मुझे दिखाई कहां दे रहा है?”
“देखोगी ! ये लो.” कहते हुए वो मेरे बदन से दूर हो गया और अपनी क़मर को उठा कर मेरे चहरे के समीप कीया तो उसका मोटा तगादा लंड मेरी निगाहो के आगे आ गया. लंड का सुपादा ठीक मेरी आंखो के सामने था और उसका आकर्षक रुप मेरे मन को विचलित कर रहा था. उसने थोडा सा और आगे बढ़ाया तो मेरे होंठो के एकदम करीब आ गया. एक बार
तो मेरे मन में आया की मैं उसके लंड को कीस कर लूं मगर झीझक के कारण मैं उसे चूमने को पहल नहीं कर पा रही थी. वो मुस्कुरा कर बोला, “मैं तुम्हारी आंखो में देख रहा हूँ की तुम्हारे मन में जो है उसे तुम दबाने की कोशिश कर रही हो. अपनी भावनाओं को मत दबाओ, जो मन में आ रहा है, उसे पूरा कर लो.”
उसके यह कहने के बाद मैंने उसके लंड को चूमने का मन बनाया मगर एकदम से होंठ आगे ना बढ़ा कर उसे चूमने की पहल ना कर पाई. तभी उसने लंड को थोडा और आगे मेरे होंठो से ही सटा दीया, उसके लंड के देहाकते हुए सुपादे का स्पर्श होंठो का अनुभव करने के बाद मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और लंड के सुपादे को जल्दी से चूम लीया. एक बार चूम लेने के बाद तो मेरे मन की झीझक काफी कम हो गयी और मैं बार बार उसके लंड को दोनो हाथो से पकड़ कर सुपादे को चूमने लगी, एकाएक उसने सिस्कारी लेकर लंड को थोडा सा और आगे बढ़ाया तो मैंने उसे मुँह में लेने के लीये मुँह खोल दीया, और सुप्पदा मुँह में लेकर चूसने लगी.
इतना मोटा सुपादा और लंड था की मुँह में लीये रखने में मुझे परेशानी का अनुभव हो रहा था, मगर फीर भी उसे चूसने की तमन्ना ने मुझे हार मान-ने नहीं दीया और मैं कुछ देर तक उसे मज़े से चुस्ती रही. एक एक उसने कहा, “हाईई तुम इसे मुँह में लेकर चूस रही हो तो मुझे कीतना मज़ा आ रहा है, मैं तो जानता था की तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, मगर थोडा झिझकती हो. अब तो तुम्हारी झीझक समाप्त हो गयी, क्यों है ना?”
मैं हाँ में सीर हीला कर उसकी बात का समर्थन कीया और बदस्तूर लंड को चुस्ती रही. अब मैं पूरी तरह खुल गयी थी और चुदाई का अनंद लेने का इरादा कर चुकी थी. वो मेरे मुँह में धीरे धीरे धक्के लगाने लगा. मैंने अंदाजा लगा लीया की ऐसे ही धक्के वो चुदाई के समय भी लगाएगा.चुदाई के बारे में सोचने पर मेरा ध्यान अपनी चूत की ओर गया, जीसे अभी उसने निवास्त्र नहीं कीया था. जबकी मुझे चूत में भी हलकी हलकी सिहरन महसूस होने लगी थी. मैं कुछ ही देर में थकान का अनुभव करने लगी. लंड को मुँह में लेने में परेशानी का अनुभव होने लगा. मैंने उसे मुँह से निकालने का मन बनाया मगर उसका रोमांच मुझे मुँह से निकालने नहीं दे रहा था. मुँह थक गया तो मैंने उसे अंदर से तो नीकाल लीया मगर पूरी तरह से मुकत नहीं कीया. उसके सुपादे को होंठो के बीच दबाये उस पर जीभ फेरती रही. झीझक ख़त्म हो जाने के कारण मुझे ज़रा भी शर्म नहीं लग रही थी.
तभी वो बोला, “है मेरी जान, अब तो मुकत कर दो, Please नीकाल दो ना.”
वो मिन्नत करने लगा तो मुझे और भी मज़ा आने लगा और मैं प्रयास करके उसे और चूसने का प्रयत्न करने लगी. मगर थकान की अधिकता हो जाने के कारण, मैंने उसे मुँह से नीकाल दीया. उसने एक एक मुझे धक्का दे कर गीरा दीया और मेरी jeans खोलने लगा और बोला,“मुझे भी तो अपनी उस हसीं जवानी के दर्शन कर दो, जीसे देखने के लीये मैं बेताब हूँ.”
मैं समझ गयी की वो मेरी चूत को देखने के लीये बेताब था. और इस एहसास ने की अब वो मेरी चूत को नंगा करके देख लेगा साथ ही शरारत भी करेगा. मैं रोमांच से भर गयी. मगर फीर भी दिखावे के लीये मैं मना करने लगी. वो मेरी jeans को उतार चुकने के बाद मेरी पैंटी को खींचने लगा तो मैं बोली, “छोडो ना ! मुझे शर्म आ रही है.”
“लंड मुँह में लेने में शर्म नहीं आयी और अब मेरा मन बेताब हो गया है तो सिर्फ दिखाने में श रम आ रही है.” वो बोला. उसने खींच कर पैंटी को उतार दीया और मेरी चूत को नंगा कर दीया. मेरे बदन में बिजली सी भर गयी. यह एहसास ही मेरे लीये अनोखा था ई उसने मेरी चूत को नंगा कर दीया था. अब वो चूत के साथ शरारत भी करेगा.वो चूत को छूने की कोशिश करने लगा तो मैं उसे जान्घो के बीच छिपाने लगी. वो बोला, “क्यों छुपा रही हो. हाथ ही तो लगाऊंगा. अभी चूमने का मेरा इरादा नहीं है. हाँ अगर प्यारी लगी तो जरूर चूमुंगा.”
उसकी बात सुनकर मैं मन ही मन रोमांच से भर गयी. मगर मैं बोली, “तुम देख लोगे उसे, मुझे दिखाने में शर्म आ रही है. आंख बंद करके छुओगे तो बोलो.”
“ठीक है ! जैसी तुम्हारी मरजी. मैं आंख बंद कर्ता हूँ, तुम मेरा हाथ
पकड़ कर अपनी चूत पर रख देना.”
मैंने हाँ में सीर हीलाया. उसने अपनी आंख बंद कर ली तो मैं उसका हाथ
पकड़ कर बोली, “चोरी छीपे देख मत लेना, ओक, मैं तुम्हारा हाथ अपनी चूत पर रख रही हूँ.”
मैंने चूत पर उसका हाथ रख दीया. फीर अपना हाथ हटा लीया. उसके हाथ का स्पर्श चूत पर लगते ही मेरे बदन में सनसनाहट होने लगी. गुदगुदी की वजह से चूत में तनाव बढने लगा. उस पर से जब उसने चूत को छेड़ना शुरू कीया तो मेरी हालत और भी खराब हो गयी. वो पूरी चूत पर हाथ फेरने लगा. फीर जैसे ही चूत के अंदर अपनी ऊँगली घुसाने की चेष्टा की तो मेरे मुँह से सिस्कारी निकल गयी. वो चूत में ऊँगली घुसाने के बाद चूत की गहराई नापने लगा. मुझे इतना मज़ा आने लगा की मैंने चाहते हुए भी उसे नहीं रोका. उसने चूत की काफी गहराई में घुसा दी थी.
मैं लगातार सिस्कारी ले रही थी. मेरी कुंवारी और नाज़ुक चूत का कोना कोना जलने लगा. तभी उसने एक हाथ मेरी गांड के नीचे लगाया क़मर को थोडा ऊपर करके चूत को चूमना चाहा. उसने अपनी आंख खोल ली थी और होंठों को भी इस प्रकार खोल लीया था जैसे चूत को होंठो के बीच मैं दबाने का मन हो. मेरी हलकी झांतो वाली चूत को होंठों के बीच दबा कर जब उसने चोसना शुरू कीया तो मैं और भी बुरी तरह छातपाताने लगी. उसने कास कास कर मेरी चूत को चूसा और चंद ही पालो मैं चूत को इतना गरम कर डाला की मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई और होंठो से कामुक सिस्कारी निकलने लगी. इसके साथ ही मैं क़मर को हीला हीला कर अपनी चूत उसके होंठों पर रगड़ने लगी.
उसने समझ लीया की उसके द्वारा चूत चूसे जाने से मैं गरम हो रही हूँ. सो उसने और भी तेज़ी से चूसना शुरू कीया साथ ही चूत के सुराख के अंदर जीभ घुसा कर गुदगुदाने लगा. अब तो मेरी हालत और भी खराब होने लगी. मैं ज़ोर से सिस्कारी ले कर बोली, “वीनय येस् क्या कर रहे हो. इतने ज़ोर से मेरी चूत को मत चूसो और ये तुम छेद के अंदर गुदगुदी……. ऊऊईईई….. मुझसे बर्दस्थ नहीं हो पा रहा है. Please निकालो जीभ अंदर से, मैं पागल हो जाउंगी.”
मैं उसे निकलने को जरूर कह रही थी मगर एक सच यह भी था की मुझे
बहुत मज़ा आ रहा था. चूत की गुद्गुदाहत से मेरा सारा बदन काँप रहा था. उसने तो चूत को छेद छेद कर इतना गरम कर डाला की मैं बर्दस्थ नहीं कर पाई. मेरी चूत का भीतरी हिस्सा रस से गीला हो गया. उसने कुछ देर तक चूत के अंदर तक के हिस्से को गुदगुदाने के बाद चूत को मुकत कर दीया. मैं अब एक पल भी रुकने की हालत मैं नहीं थी. जल्दी से उसके बदन से बदन से लिपट गयी और लंड को पकड़ने का प्रयास कर रही थी की उसे चूत मैं दाल लूंगी की उसने मेरी टांगो के पकड़ कर एकदम ऊंचा उठा दीया और नीचे से अपना मोटा लंड मेरी चूत के खुले हुए छेद मैं घुसाने की कोशिश की. वैसे तो चूत का दरवाज़ा आम तौर पर बंद होता था. मगर उस वक़्त क्योंकी उसने टांगो को ऊपर की ओर उठा दीया था इसलिए छेद पूरी तरह खुल गया था. रस से चूत गीली हो रही थी. जब उसने लंड का सुपादा छेद पर रख्खा तो ये भी एहसास हुआ की छेद से और भी रस निकलने लगा. मैं एक पल को तो सिसिया उठी. जब उसने चूत मैं लंड घुसाने की बजाये हल्का सा रागादा. मैं सिस्कारी लेकर बोली, “घुसाओ जल्दी से………. देर मत करो Please……………..”
उसने लंड को चूत के छेद पर अड़ा दीया. पहली बार मुझे ये एहसास हुआ की मेरी चूत का सुराख उम्मीद से ज्यादा ही छोटा है. क्योंकी लंड का सुपादा अंदर जाने का नाम ही नहीं ले रहा था. मेरी हालत तो ऐसी हो चुकी थी की अगर उसने लंड जल्दी अंदर नहीं कीया तो शायद मैं पागल हो जाऊं. वो अंदर डालने की कोशिश कर रहा था.मैं बोली,“क्या कर रहे हो जल्दी घुसाओ ना अंदर. ऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् ऊऊम्म्म्म्म्म् अब तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है. Please जल्दी से अंदर कर दो.”
वो बार बार लंड को पकड़ कर चूत मैं डालने की कोशिश कर्ता और बार बार लंड दूसरी तरफ फिसल जात. वो भी परेशान हो रहा था और मैं भी. मैं सिसियाने लगी, क्योंकी चूत के भीतरी हिस्से मैं ज़ोरदार गुदगुदी सी हो रही थी. मैं बार बार उसे अंदर करने के लीये कहे जा रही थी. वो प्रयास कर तो रहा था मगर लंड की मोटाई के कारण चूत के अंदर नहीं जा पा रहा था. तभी उसने कहा, “उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ तुम्हारी चूत का सुराख तो इस क़दर छोटा है की लंड अंदर जाने का नाम ही नहीं ले रहा है मैं क्या करूं?”
“तुम तेज़ झटके से घुसाओ अगर फीर भी अंदर नहीं जाता है तो फाड़ दो मेरी चूत को.” मैं जोश मैं आ कर बोल बैठी. मेरी बात सुनकर वो भी बहुत जोश मैं आ गया और उसने ज़ोर का धक्का मारा. एकदम जानलेवा धक्का था, भक्क से चूत के अंदर लंड का सुपादा समां गया, इसके साथ ही मेरे मुँह से चीख भी निकल गयी. चूत की ओर देखा तो पाय की बीच से फट गयी थी और ख़ून निकल रहा था. ख़ून देखने के बाद तो मेरी घबराहट और बढने लगी मगर कीसी तरह मैंने अपने आप पर काबू कीया.
उसके लंड ने चूत का थोडा सा ही सफ़र पूरा कीया था और उसी मैं मेरी हालत खराब होने लगी थी. चूत के एकदम बीचों बीच धंसा हुआ उसका लंड खतरनाक लग रहा था. मैं दर्द से कराह-हटे हुए बोली, “My god ! मेरी चूत तो सचमुच फट गयी उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ दर्द सेहन नहीं हो रहा है. अगर पूरा लंड अंदर घुसाओगे तो लगता है मेरी जान ही नीकल जायेगी.”
“नहीं यार! मैं तुम्हे मरने थोड़े ही दूंगा.” वो बोला और लंड को हिलाने लगा तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे चूत के अंदर बवंडर मचा हुआ हो. जब मैंने कहा की थोड़ी देर रूक जाओ, उसके बाद धक्के मारना तो उसने लंड को जहाँ का तहां रोक दीया और हाथ बढ़ा कर मेरी चूची को पकड़ कर दबाने लगा. चूची मैं कठोरता पूरे शबाब पर आ गयी थी और जब उसने दबाना शुरूकिया तो मैंने चूत की ओर से कुछ रहत महसूस की. कारण मुझे चूचियों का दब्वाया जान अच्चा लग रहा था. मेरा तो यह तक दील कर रहा था की वो मेरे निप्प्ले को मुँह मैं लेकर चूसता. इससे मुझे अनंद भी आता और चूत की ओर से ध्यान भी बाँट-ता. मगर टांग उसके कंधे पर होने से उसका चेहरा मेरे निप्प्ले तक पहुंच पाना एक प्रकार से नामुमकीन ही था.
तभी वो लंड को भी हिलाने लगा. पहले धीरे धीरे उसके बाद तेज़ गति से.
चूची को भी एक हाथ से मसल रहा था. चूत मैं लंड की हलकी हलकी
सरसराहट अच्छी लगने लगी तो मुझे अनंद आने लगा. पहले धीरे और उसके
उसने धक्को की गति तेज़ कर दी. मगर लंड को ज्यादा अंदर करने का प्रयास उसने अभी नहीं कीया था. एक एक वीनय बोला, “तुम्हारी चूत इतनी कम्सिन और tight है की क्या कहूं?”
उसकी बात सुनकर मैं मुस्करा कर रह गयी. मैंने कहा, “मगर फीर भी तो तुमने फाड़ कर लंड घुसा ही दीया.”
“अगर नहीं घुसाता तो मेरे ख़्याल से तुम्हारे साथ मैं भी पागल हो जाता.”
मैं मुस्करा कर रह गयी.वो तेज़ी से लंड को अंदर बहार करने लगा था. अब चूत मैं दर्द अधीक तो नहीं हो रहा था हाँ हल्का हल्का सा दर्द उठ रहा था. मगर उससे मुझे कोई परेशानी नहीं थी. उसके मुकाबले मुझे मज़ा आ रहा था. कुछ देर मैं ही उसने लंड को ठेल कर काफी अंदर कर दीया था. उसके बाद भी जब और ठेल कर अंदर घुसाने लगा तो मैं बोली, “और अंदर कहां करोगे, अब तो सारा का सारा अंदर कर चुके हो. अब बाक़ी क्या रह गया है?”
“एक इंच बाक़ी रह गया है.” कहते ही उसने मुझे कुछ बोलने का मौका दीये
बग़ैर ज़ोर से झटका मार कर लंड को चूत की गहरायी मैं पहुँचा दीया.
मैं चीख कर रह गयी. उसके लंड के ज़ोरदार प्रहार से मैं मस्त हो कर रह गयी थी. ऐसा अनंद आया की लगा उसके लंड को चूत की पूरी गहरायी मैं दाखील करवा ही लूं. उसी मैं मज़ा आएगा. यह सोच कर मैंने कहा, “हाऐईईइ…… और अंदर…….. घुसाआअऊऊऊ. गहरायी मैं पहुँचा दो.”
उसने मेरी जांघों पर हाथ फेरा और लंड को ज़ोर से ठेला तो मेरी चूत से अजीब तरह की आवाज़ नीक्ली और इसके साथ ही मेरी चूत से और भी ख़ून गिरने लगा. मगर मुझे इससे भी कोई परेशानी नहीं हुई थी, बल्की यह देख कर मैं अनंद मैं आ गयी की चूत का सुराख पूरा खुल गया था और लंड सारा का सारा अंदर था. एक पल को तो मैं यह सोच कर ही रोमंचित हो गयी की उसके बम्बू जैसे लंड को मैंने अपनी चूत मैं पूरा डलवा लीया था. उस पर से जब उसने धक्के मारने लगा, तो एहसास हुआ की वाकई जो मज़ा चुदाई मैं है वो कीसी और तरीके से मौज-मस्ती करने से नहीं है.
उसका ८ इंच लंड अब मेरी चूत की गहराई को पहले से काफी अच्छी तरह नाप
रहा था. मैं पूरी तरह मस्त होकर मुँह से सिस्कारी निकालने लगी. पता
नहीं कैसे मेरे मुँह से एकदम गन्दी गन्दी बात निकलने लगी थी. जिसके बारे मैं मैंने पहले कभी सोचा तक नहीं था. फ्ह्ह्हाद्द्द्द्द….. दूऊऊओ मेरीईईइ चूऊओत्त्त्त्त्त्त् कूऊऊऊ आआह्ह्ह्ह्ह्ह् प्प्प्पीईईईल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लूऊऊऊओ और्र्र्र्र्र तेज़ पेलो टुकड़े टुकड़े कर दो मेरी चूऊऊत्त्त्त्त्त्त्त् कीईईईईईईई.
एक एक मैं झड़ने के करीब पहुंच गयी तो मैंने वीनय को और तेज़ गति से ढके मरने को कह दीया,अब लंड मेरी छुट को पार कर मेरी बच्चेदानी से टकराने लगा था, तभी चूत मैं ऐसा संकुचन हुआ की मैंने खुद बखुद उसके लंड को ज़ोर से चूत के बीच मैं कास लीया. पूरी चूत मैं ऐसी गुद्गुदाहत होने लगी की मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई और मेरे मुँह से ज़ोरदार सिस्कारी निकलने लगी. उसने लंड को रोका नहीं और धक्के मारता रहा. मेरी हालत जब कुछ अधीक खराब होने लगी तो मेरी रुलायी चुत नीक्ली.
कुछ देर तक वो मेरी चूत मैं ही लंड डाले मेरे ऊपर पड़ा रहा. मैं आराम से कुछ देर तक सांस लेटी रही. फीर जब मैंने उसकी ओर ध्यान दीया तो पाय की उसका मोटा लंड चूत की गहराई मैं वैसे का वैसा ही खड़ा और अकादा हुआ पड़ा था. मुझे नॉर्मल देखकर उसने कहा, “कहो तो अब मैं फीर से धक्के मारने शुरू करूं.”
“मारो, मैं देखती हूँ की मैं बर्दाश्त कर पाती हूँ या नहीं.”
उसने दुबारा जब धक्के मारने स्टार्ट कीए तो मुझे अग जैसे मेरी चूत मैं कांटे उग आये हो, मैं उसके धक्के झेल नहीं पाई और उसे मना कर दीया. मेरे बहुत कहने पर उसने लंड बहार निकलना स्वीकार कर लीया. जब उसने बहार निकाला तो मैंने रहत की सांस ली. उसने मेरी टांगो को अपने
कंधे से उतार दीया और मुझे दूसरी तरफ घुमाने लगा तो पहले तो मैं
समझ नहीं पाई की वो करना क्या चाहता है. मगर जब उसने मेरी गांड को पकड़ कर ऊपर उठाया और उसमें लंड घुसाने के लीये मुझे आगे की ओर झुकाने लगा तो मैं उसका मतलब समझ कर रोमांच से भर गयी.
मैंने खुद ही अपनी गांड को ऊपर कर लीया और कोशिश करी की गांड का छेद
खुल जाये. उसने लंड को मेरी गांड के छेद पर रख्खा और अंदर करने के लीये हल्का सा दबाव ही दीया था की मैं सिसकी लेकर बोली, “थूक लगा कर घुसाओ.”
उसने मेरी गांड पर थूक चुपड़ दीया और लंड को गांड पर रखकर अंदर डालने लगा. मैं बड़ी मुश्कील से उसे झेल रही थी. दर्द महसूस हो रहा था. कुछ देर मैं ही उसने थोडा सा लंड अंदर करने मैं सफलता प्राप्त कर ली थी. फीर धीरे धीरे धक्के मारने लगा, तो लंड मेरी गांड के अंदर रगड़ खाने लगा
तभी उसने अपेख्शाकरत तेज़ गाती से लंड को अंदर कर दीया, मैं इस हमले के
लीये तैयार नहीं थी, इसलिए आगे की ओर गिरते बची. सात की पुष्ट को सख्ती
से पकड़ लीया था मैंने. अगर नहीं पकद्ती तो जरूर ही गिर जाती. मगर इस
झटके का एक फायदा यह हुआ की लंड आधा के करीब मेरी गांड मैं धंस गया था. मेरे मुँह से दर्द भरी सिस्कारियां निकलने लगी ….. फट गयी मेरी गाआआअन्न्न्न्न्द्द्द्द्द्…… हाआआऐईईईईईइ ऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्…….. उसने अपना लंड जहाँ का तहां रोक कर धीरे धीरे धक्के लगाने स्टार्ट कीए. मुझे अभी अनंद ही आना शुरू हुआ था की तभी वो तेज़ तेज़ झटके मारता हुआ काँपने लगा, लंड का सुपादा मेरी गांड मैं फूल पिचक रहा था, आआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् मेर्र्र्र्रीईईईईई जाआअन्न्न्न्न्न्न्न्न् म्म्म्म्म्म्म्म्म आआआआआअ कहता हुआ वो मेरी गांड मैं ही झाड़ गया. मैंने महसूस कीया की मेरी गांड मैं उसका गाढ़ा और गरम वीर्य टपक रहा था.
उसने मेरी पीठ को कुछ देर तक चूमा और अपने लंड को झटके देता रहा. उसके बाद पूरी तरह शांत हो गया. मैं पूरी तरह गांड मरवाने का अनंद भी नहीं ले पाई थी. एक प्रकार से मुझे अनंद आना शुरू ही हुआ था. उसने लंड नीकाल लीया. मैं कपडे पहनते हुए बोली, “तुम बहुत बदमाश हो. शादी से पहले ही सब कुछ कर डाला.”
“वो मुस्कुराने लगा. बोला, “क्या कर्ता, तुम्हारी कम्सिन जवानी को देख कर दील पर काबू रखना मुश्कील हो रहा था. कयी दीनो से चोदने का मन था, आज अच्च्चा मौका था तो छोड़ने का मन नहीं हुआ. वैसे तुम इमानदारी से बताओ की तुम्हे मज़ा आया या नहीं?”
उसकी बात सुनकर मैं चुप हो गयी और चुपचाप अपने कपडे पहनती रही. मैं मुस्करा भी रही थी. वो मेरे बदन से लिपट कर बोला, “बोलो ना ! मज़ा आया?”
“हाँ” मैंने हौले से कह दीया.
“तो फीर एक काम करो, मेरा मन नहीं भरा है. तुम कार अपने ड्राइवर को दे दो और उसे कह दो की तुम अपनी एक सहेली के घर जा रही हो. रात भर उसके घर मैं ही रहोगी. फीर हम दोनो रात भर मौज मस्ती करेंगे.”
मैं उसकी बात सुनकर मुस्करा कर रह गयी. बोली, “दोनो तरफ का बाजा बजा
चुके हो फीर भी मन नहीं भरा तुम्हारा?”
“नहीं ! बल्की अब तो और ज्यादा मन बेचैन हो गया है. पहले तो मैंने इसका
स्वाद नहीं लीया था, इसीलिये मालूम नहीं था की चूत और गांड चोदने मैं कैसा मज़ा आता है. एक बार चोदने के बाद और चोदने का मन कर रहा है. और मुझे यकीन है की तुम्हारा भी मन कर रहा होगा.”
“नहीं मेरा मन नहीं कर रहा है”
“तुम झूठ बोल रही हो. दील पर हाथ रख कर कहो”
मैंने दील की झूठी क़सम नहीं खाई. सच कह दीया की वाकई मेरा मन नहीं भरा है. मेरी बात सुना-ने के बाद वो और भी जिद्द करने लगा. कहने लगा की Please मान जाओ ना ! बड़ा मज़ा आएगा. सारी रात रंगीन हो जायेगी.”
मैं सोचने लगी. वैसे तो मैं रात को अपनी सहेलियों के पास कयी बार रूक चुकी थी मगर उसके लीये मैं मम्मी को पहले से ही बता देती थी. इस प्रकार आइं मौक़े पर मैंने कभी रात भर बहार रहने का प्रोग्रॅम नहीं बनाया था. सोचते सोचते ही मैंने एक एक प्रोग्रॅम बाना लीया. मगर बोली, “सवाल यह है की हम लोग रात भर रहेंगे कहां? होटल मैं?”
“होटल मैं रहना मुश्कील है. खतरा भी है. क्योंकी तुम अभी कम्सिन हो. मेरे दोस्त अजय का एक बंग्लोव खाली है. मैं उसे फ़ोन कर दूंगा तो वो हमारे पहुँचने से पहले सफाई वगेरह करवा देगा.”
उसकी बात मुझे पसंद तो आ रही थी मगर दील गवारा नहीं कर रहा था. एका एक उसने मेरे हाथ मैं अपना लंड पकडा दीया और बोला, “घर के बारे मैं नहीं, इसके बारे मैं सोचो. यह तुम्हारी चूत और गांड का दीवाना है. और तुम्हारी चूत मारने को उतावला हो रहा है.”
उसके लंड को पकड़ने के बाद मेरा मन फीर उसके लंड की ओर मुड़ने लगा. उसे मैं सहलाने लगी. फीर मैंने हाँ कह दीया. उसके लंड को जैसे ही मैंने हाथ मैं लीया था, उसमें उत्तेजना आने लगी. वो बोला, “देखो फीर खड़ा हो रहा है. अगर मन कर रहा है तो बताओ चलते चलत एक बार और चुदाई का मज़ा ले लीया जाये.”
यह कहते हुए उसने लंड को आगे बढ़ा कर चूत से सटा दीया. उस वक़्त मैंने jeans और पैंटी नहीं पहनी थी. वो चूत पर लंड को रगड़ने लगा. उसके रगड़ने से मेरी चूत पानी छोड़ने लगी, मेर मन मैं चुदाई का विचार आने लगा था. मगर मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाने का प्रयास कीया. उसने मेरी चूत मैं लंड घुसाने के लीये हल्का सा धक्का मारा. मगर लंड एक ओर फिसल गया. मैंने जल्दी से लंड को दोनो हाथो से पकड़ लीया, और बोली, “चूत मैं मत डालो. जब रात रंगीन करने का मन बाना ही लीया है तो फीर इतना बेताब क्यों हो रहे हो. या तो इसे ठण्डा कर लो या फीर मैं कीसी और तरीके से इसे ठण्डा कर देती हूँ.”
“तुम कीसी और तरीके से ठण्डा कर दो. क्योंकी ये खुद तो ठण्डा होने वाला
नहीं है.”
मैं उसके लंड को पकड़ कर दो पल सोचती रही फीर उस पर तेज़ी से हाथ फिराने लगी. वो बोला, “क्या कर रही हो?”
“मैंने एक सहेली से सुना है की लड़के लोग इस तरह झटका देकर मुट्ठ मारते
हैं और झाड़ जाते हैं.”
वो मेरी बात सुनकर मुस्करा कर बोला, “ऐसे चुदाई का मज़ा तो लीया जाता है मगर तब, जब कोई प्रेमीका ना हो. जब तुम मेरे पास हो तो मुझे मुट्ठ मारने की क्या जरूरत है?”
“समझो की मैं नहीं हूँ?”
“ये कैसे समझ लूं. तुम तो मेरी बाहों मैं हो.” कह कर वो मुझे बाहो मैं लेने लगा. मैंने मना कीया तो उसने छोड़ दीया. वो बोला, “कुछ भी करो. अगर चूत मैं नहीं तो गांड मैं…….” कह कर वो मुस्कुराने लगा. मैं शर्म कर बोली, “धात”.
“तो फीर मुँह से चूस कर मुझे झाड़ दो.”
मैं नहीं नहीं करने लगी. आखीर मैं गांड मरना मैंने पसंद कीया. फीर मैं घोड़ी बनकर गांड उसकी तरफ कर घूम गयी. उसने मेरी गांड पर थोडा सा थूक लगाया और अपने लंड पर भी थोडा सा थूक चुप्दा और लंड को गांड के छेद पर टिका कर एक ज़ोरदार धक्का मारा और अपना आधा लंड मेरी गांड मैं घुसा दीया. मेरे मुँह से कराह नीकल गयी आआआआआईईईईईईई मुम्म्म्म्म्म्य्य्य्य्य्य्य्य माआर्र्र्र दियाआआआअ फ़ाआअद्द्द्द्द्द्द् बहुत दर्द कर रहा है.
उसने दो तीन झटको मैं ही अपना लंड मेरी गांड के आकिरी कोने तक पहुँचा दीया, ऐसा लगा जैसे उसका लंड मेरी आन्तादियों को चीर डाल रहा हो. मैंने गांड मैं लंड दल्वाना इसलिए पसंद कीया था, की पिछली बार मैं गांड मरवाने का पूरा अनंद नहीं ले पाई थी और मेरा मन मचलता ही रह गया था, वो झाड़ जो गया था. ऍम मैं इसका भी मज़ा लूंगी ये सोच कर मैं उसका support करने लगी. गांड को पीछे की ओर धकेलने लगी. वो काफी देर तक तेज़ तेज़ धक्के मारता हुआ मुझे आनंदित कर्ता रहा, मैं खुद ही अपनी २ उँगलियाँ चूत मैं दाल कर अंदर बहार करने लगी, एक तो गांड मैं लंड का अंदर बहार होना और दूसरा मेरा उँगलियों से अपनी चूत को कुचलना दो तरफा अनंद से मैं जल्द ही झड़ने लगी और झाड़ते हुए बद्बदाने लगी, ह्ह्ह्हाआऐईईईईई तेरी गाआअन्न्न्न्न्न्न्द्द्द्द्द्द्द्द् आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् लंड कैसे कास कास कर जा रहा है म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म कहता हुआ वो मेरी पीठ पर ही गीर पड़ा और हांफने लगा.
थोड़ी देर ऐसे ही पडे रहने के बाद, हम दोनो ने अपने अपने कपडे पहने और वहाँ से वापस आ गई. ड्राइवर का घर पास मैं ही था. उसके पास जाकर मैंने उसे कार दे कर कहा की हम लोग आज कहीँ पार्टी मैं जा रहे हैं. मैंने उसे समझा दीया की वो घर मैं कह दे की मैं एक सहेली के घर चली गयी हू. आज रात उसके घर पर ही रहूंगी. फीर मैंने उसे ५०० का कै नोट पकडा दीया. रुपये पाकर वो खुश हो गया, बोला, “मैडम जी ! आप बेफिक्र हो जाईये. मैं सब संभल लूँगा. मालकिन को ऐसा सम्झौंगा की वो कुछ नहीं कहेंगी आपको.”
उसके बाद हम दोनो वहाँ से नीकल गई. एक जगह रूक कर वीनय ने टेलीफोन बूथ से अपने दोस्त को फ़ोन कर दीया. उसके बाद उसने मुझे बताया की उसका दोस्त मौजूद था और उसने कह दीया है की वो सारा इंतज़ाम कर देगा.
“सारे इंतज़ाम से तुम्हारा क्या मतलब?”
“मतलब खाने पीने से है.” वीनय ने मुस्करा कर कहा. हम दोनो एक आटो के ज़रीये उसके दोस्त के बंग्लोव मैं पहुंच गई. अच्चा खासा बंग्लोव था, काफी अच्छी तरह सजा हुआ.
वीनय के दोस्त ने हम दोनो का स्वागत कीया. वो भी आकर्षक लड़का था. वो वीनय से तो खुलकर बात करने लगा मगर मुझसे बात करने मैं झीझक रहा था. अन्दर जाने के बाद मैंने कहा की मैं अपने घर फ़ोन करना चाहती हूँ.
उसने सहमति जताई तो मैंने मम्मी को फ़ोन करके कह दीया की मैं आज रात नीमा के घर मैं हूँ और कल सुबह ही आऊंगी. मम्मी कुछ खास विरोध नहीं कर पाई. नीमा का नाम मैंने इसलिए लीया था की उसके घर का फ़ोन नुम्बेर मम्मी के पास नहीं था. वो उससे फ़ोन करके पूछ नहीं सकती थी की मैं उसके पास
हूँ या नहीं. फीर एक एक विचार आया की अगर मेरी मम्मी को मील गयी तो उसमें फ़ोन नुम्बेर है. इसलिए मैंने नीमा को भी इस बारे मैं बता देना ठीक समझा. नीमा को फ़ोन कीया तो वो पहले तो हंसने लगी फीर बोली, “लगता है वीनय के साथ मौज मस्ती करने मैं लगी हुई है. अकेले अकेले मज़े लेगी अपनी सहेली का कुछ ख़्याल नहीं है तुझे.”
वो बड़ी Sexy लडकी थी. मैंने भी हंस कर कहा, “अगर तेरा मन इतना बेताब हो रह है चुदवाने का तो फीर तू भी आजा, वैसे भी यहाँ दो लड़के हैं. एक तो विनय है और दूसरा उसका दोस्त. आजा तो तेरा भी काम बन जाएगा. मैं उसे तेरे लिए मना कर रखती हूँ.”
“वो मान जाएगा?”
“क्यों नहीं मानेगा यार. तेरी जैसे लडकी की चूत को देखकर कोई भी लड़का
चोदने के लिए मन नहीं करेगा. तू है ही ऐसी की, कोई मन करे ये नामुमकिन है.”
“ठीक है तो फिर मैं भी घर में कोई ना कोई बहन बाना कर आ रही
हूँ.”
उसने फ़ोन काट दीया. मैंने उसके बारे मैं वीनय को बताया, तो वो अपने दोस्त को बोला ले यार अजय तेरा भी इंतज़ाम हो गया है. इसकी एक सहेली है नीमा, वो आ रही है.”
अजय के चहरे पर निखार आ गया. बेड रुम मैं आ कर हम तीनो बातें करने लगे. कुछ देर मैं ही अजय से मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी. उसने बताया की वो भी पहले एक लडकी से प्यार कर्ता था मगर बाद मैं उसने धोखा दे दीया तो उसने कीसी और को प्रेमीका बनने के बारे मैं सोंचा ही नहीं.
थोड़ी देर तक बैठे बैठे मुझे बोरियत महसूस होने लगी. वीनय ने मेरी मानो स्तीथी भांप ली. वो अपने दोस्त से बोला, “यार अजय ! ज़रा उस तरफ देखना.” अजय दूसरी ओर देखने लगा तो वीनय ने मुझे बाहो मैं ले लीया और मेरी चूचियों को दबन लगा. होंठो को भी हौले हौले कीस करने लगा. तभी वहाँ नीमा आ गयी. वीनय मुझसे लिप्त हुआ था, उसे देखकर हम दोनो अलग हो गई. मैंने कहा, “हम तेरी ही राह देख रहे थे, वह भे बेचैनी से.”
उसके बाद मैंने उसका परिचय वीनय और अजय से करवाया. मैं देख रही थी की अजय गहरी निगाहों से नीमा की ओर देखे जा रहा था. साफ ज़ाहिर हो रहा था की नीमा उसे बहुत पसंद आ रही है.
एक एक मैं बोली, “यार, तुम दोनो ने एक दुसरे को पसंद कर लीया है तो ओहीर
तुम दोनो दूर दूर क्यों खडे हो. ऎन्जॉय करो यार.” यह कहते हुए मैं नीमा को अजय की ओर धकेल दीया. अजय ने जल्दी ही उसे बाहों मैं ले लीया. वी दोनो झिझ्कें नहीं यह सोच कर मैं भी वीनय से लिपट गयी और उसके होंठो को चूमने लगी. वीनय मेरी चूची दबाने लगा तो अजय ने भी नीमा के मम्मो पर हाथ रख दीया और उसकी चूचियों को सहलाने लगा. मैं नीमा की ओर देखकर मुस्कुराई. नीम भी मुस्कुरा दी फीर अजय के बदन से लिपट कर उसे चूमने लगी. Un दोनो की शर्म खोलने और दोनो को ज्यादा उत्तेजित करने के इरादे से मैं वीनय के कपडे उतारने लगी. कुछ देर मैं मैंने उसके कपडे उतार दीये और लंड को पकड़ कर सहलाने लगी तो वो भी मेरी चूचियों को बेपर्दा करने लगा।
उधर नीमा मेरी देखा देखी, अजय के कपडे उतारने लगी. कुछ ही देर मैं उसने अजय के सारे कपडे उतार दीये. वो तो मुझसे भी एक कदम आगे नीक्ली और उसने झुक कर अजय का लंड दोनो हाथो मैं पकडा और सुपादे को चाटने लगी.
मैंने भी उसकी देखा देखी, वीनय के लंड को मुँह मैं ले लीया और उसे सुपादे को चूसने लगी. एक समय तो हम दोनो सहेलियां मस्ती से लंड मुँह मैं लीये हुए चूस रही थी. मुझे जितना मज़ा आ रहा था उससे कहीँ ज्यादा मज़ा नीम को अजय का लंड चूसने मैं आ रहा था, यह मैंने उसके चहरे को देखकर अंदाजा लगाया था. वो काफी खुश लग रही थी. बडे मज़े से लंड के ऊपर मुँह को आगे पीछे करते हुए वो चूस रही थी.
थोड़ी देर बाद उसने लंड को मुँह से नीकला और जल्दी जल्दी अपने निचले कपडे
उतारने लगी. मुझसे नज़र टकराते ही मुस्करा दी. मैं भी मुस्कुराई और मस्ती से वीनय के लंड को चूसने मैं लग गयी. कुछ देर बाद ही मैं भी नीम की तरह वीनय के बदन से अलग हो गयी और अपने कपडे उतारने लगी. कुछ देर बाद हम चारो के बदन पर कोई कपड़ा नहीं था.
अजय नीम की चूत को चूसने लगा तो मेरे मन मैं भी आया की वीनय भी मेरी चूत को उसी तरह चूसे. क्योंकी नीम बहुत मस्ती मैं लग रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो बीना लंड घुस्वाये ही चुदाई का मज़ा ले रही है. उसके मुँह से बहुत ही कामुक सिस्कारियां नीकल रही थी. वीनय भी मेरी टांगो के बीच मैं झुक कर मेरी चूत को चाटने चूसने लगा तो मेरे मुँह से भी कामुक सिस्कारियां निकलने लगी. कुछ देर तक चूसने के बाद ही मेरी चूत बुरी तरह गरम हो गयी. मेरी चूत मैं जैसे हजारो कीड़े रेंगने लगे. मैंने जब नीम की ओर देखा तो पाय उसका भी ऐसा ही हाल था. मेरे कहने पर वीनय ने मेरी चूत चाटना बंद कर दीया. एक एक मेरी निगाह अजय के लंड की ओर गयी, जीसे थोड़ी देर पहले नीमा चूस रही थी. लंड उसके मुँह के अंदर था इसलिए मैं उसे ठीक से देख नहीं पाई थी.
अब जब मैंने अच्छी तरह देखा तो मुझे अजय का लंड बहुत पसंद आया. मेरे मन मैं कोई बुरा ख़्याल नहीं था. ना मैं वीनय के साथ बेवफाई करना चाहती थी. बस मेरा मन कर रहा था का एक बार मैं अजय का लंड मुँह मैं लेकर चूसू. यह सोच कर मैंने कहा, “यार ! क्यों ना हम चारो एक साथ मज़ा ले. जैसे ब्लू फिल्म मैं दिखाया जाता है.”
अब अजय और नीम भी मेरी ओर देखने लगे. मैं बोली, “हम चारो दोस्त हैं.
इसलिए आज अगर कोई और कीसी और के साथ भी मज़ा लेता है तो बुरा नहीं
होगा. क्यों वीनय, मैं गलत कह रही हूँ?”
“नहीं !” वो बोला, मगर मुझे लगा की वो मेरी बात समः ही नहीं पाय है. नीमा ने पूछ लीया. मैंने कहा, “मान ले वीनय अगर तेरी चूत चाटे तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिऐ. उसी प्रकार अगर मैं अजय का लंड मुँह मैं ले लूं तो बाक़ी तुम तीनो को फर्क नहीं पड़ेगा. मैं ठीक कह रही हूँ ना?”
मेरी बात का तीनो ने समर्थन कीया. मैं जानती थी की कीसी को मेरी बात का
कोई ऐतराज़ नहीं होगा. क्योंकी एक प्रकार से मैंने सबके मन की इच्छा पूरी करने की बात कही थी. सब राजी हो गई तो मैंने आईडिया दीया की बिल्कुल ब्लू फिल्म की तरह से जब मरजी होगी, लड़का या लडकी बदल लेंगे.
मेरी यह बात भी सबको पसंद आ गयी. उसी समय वीनय ने नीमा को खींचकर अपने सीने से लगा लीया और उसके सीने पर कश्मीरी सेब की तारा उभरे हुए मम्मो को चूसने लगा. और मैं सीधे अजय के लंड को चूसने मैं लग गयी. उसके मोटे लंड का साइज़ था तो वीनय जैसा ही मगर मुझे उसके लंड को चूसने मैं कुछ ज्यादा ही अनद आ रहा था. मैं मज़े से लंड को मुँह मैं काफी अंदर दाल कर अंदर बहार करने लगी. उधर नीमा भी वीनय के लींग को चूसने मैं लग गयी थी.
तभी अजय ने मेरे कान मैं कहा, “तुम्हारी चूत मुझे अपनी ओर खींच रही है. कहो तो मैं तुम्हारी चूत अपने होंठो मैं दबाकर चूस लूं?”
यह उसने इतने धीमे स्वर मैं कहा था की मेरे अलावा कोई और सुन ही नहीं सकता था. मैंने मुस्करा कर हां मैं सीर हीला दीया. वो मेरी जांघों पर झुका तो मैंने अपनी टांगो को थोडा सा फैला कर अपनी चूत को खोल दीया. वो पहले तो मेरी चूत के छेद को जीभ से सहलाने लगा. मुझे बहुत मज़ा आने लगा था. मैं उसे काट काट कर चूसने के लीये कहने वाली थी, तभी उसने ज़ोर से चूत को होंठो के बीच दबा लीया और खुद ही काट काट कर चूसने लगा. मेरे मुँह से कामुम सिस्कारियां निकलने लगी “आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ऊऊऊम्म्म्म्म्म्म्म्म् ऊऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् म्म्म्म्म्म्म्म बहुत माआया ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़ाआआअ आआआ र्र्र्र्राआह्ह्ह्हाआआ ह्ह्ह्ह्हाआआईईईईइ.
अब तो मैं और भी मस्त होने लगी और मेरी चूत रस से गीली होने लगी. वो
फानको को मुँह मैं लेकर जीभ रगड़ रहा था. मैंने वीनय की ओर देखा तो पाय की वो भी नीमा की चूत को चूसने मैं लगा हुआ था. नीम के मुँह से इतनी ज़ोर से सिकारियां नीकल रही थी की अगर आस पास कोई घर होता तो उस तक आवाज़ ब्पहुंच जाती और वो जान जाते की यहाँ क्या हो रहा है.
“ख्ह्ह्हा ज्ज्ज्जाआओअऊऊऊ छूऊऊस्स्सूऊओ और्र्र्र्र्र्र्र ज़्ज़्ज़्ज़ूऊऊर्र्र्र्र्र्र्र्र्
स्स्स्स्सीईईई स्स्स्स्साआआल्ल्ल्ल्लीईईए क्क्क्क्क्कात्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त ल्ल्ल्ल्लीईईए
म्म्म्मीईर्र्र्र्रीईईई क्छ्ह्हूऊत्त्त्त्त् म्म्म्म्म्म्म्म ह्ह्ह्हाआआआईईईईईई म्म्म्म्म्म्माआज़्ज़्ज़्ज़्ज़ाआअ आआआ र्र्र्राआअह्ह्ह्ह्ह्हाआअ ह्ह्ह्ह्हाआआईईईईईइ ऊऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् ऊऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्”
खैर मेरी चूत को चूसते हुए जब अजय ने चूत को बहुत गरम कर दीया तो मैं जल्दी से उसके कान मैं बोली, “अब और मत चूसो. मैं पहले ही बहुत गरम हो चुकी हूँ. तुम जल्दी से अपना लंड मेरी चूत मैं दाल दो वर्ना वीनय का दील आ जाएगा. जल्दी से एक ही झटके मैं घुसा दो.”
वो भी मीर चूत मैं अपना लंड डालने को उतावला हो रहा था, मैंने अजय के साथ चुदवाने का इसलिए मन बाना लीया था ताकी मुझे एक नए तरीके का मज़ा मील सके.
उसने लंड को चूत के छेद पर रख कर अंदर की ओर धकेलना शुरू कीया तो मैं इस दर मैं थी की कहीँ वीनय मेरे पास आकर यह ना कह दे की वो मुझे पहले छोड़ना चाहता है. मैंने जब उसकी ओर देखा तो वो अब तक नीम की चूत को ही चूस रहा था. उसका ध्यान पूरी तरह चूत चूसने की ओर ही था. मैंने इस मौक़े का लाभ उठाने का मन बनाया और चूत की फानको को दोनो हाथो से पकड़ कर फैला दीया ताकी अजय का लंड अंदर जाने मैं कीसी प्रकार की परेशानी ना हो.
और जब उसने मेरी चूत मैं लंड का सुपादा दाल कर ज़ोर का धक्का मारा तो मैं सिसियाँ उठी. उसका लंड चूत के अंदर लेने का मन एक एक कुछ ज्यादा ही बेताब हो गया. मैंने जल्दी से उसका लंड एक हाथ से पकड़ कर अपनी चूत मैं डालने की कोशिश करनी शुरू कर दी. एक तरह मेरी म्हणत और दूसरी तरफ उसके धक्के, उसने एकदम से तेज़ धक्का मार कर लंड चूत के अंदर आधा पहुँचा दीया. ज्यादा मोटा ना होने के बावजूद भी मुझे उसके लंड का झटका बहुत अनंद दे गया और मैं क़मर उछाल उछाल कर उसका लंड चूत की गहराई मैं उतरवाने के लीये उतावली हो गयी.
तभी मैंने वीनय की ओर देखा. वो भी नीम को छोड़ने की तय्यारी कर रहा था. उसने थूक लगा कर नीमा की चूत मैं लंड घुसाया तो नीमा सिस्कारी लेकर बोली, “ऊईईइईईईए दया कितन मोटाआया हाआआईईईईईई. मेरी सखी देख रही है तेरे लोवर का लंड. ये तो मेरी नाज़ुक चूत को फाड़ ही देगा. ऊऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् गोद्द्द्द्द्द्द्द्द्द स्स्स्स्स्स्स्सीईईईईई धीईईर्र्र्रीईई
धीईईर्र्रीईए घुसाआआआआअऊऊऊओ. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है.”
वो मेरी ओर देख कर कह रही थी. उसकी हालत देखकर मुझे हंसी आ रही थी. क्योंकी मुझे मालूम था की वो जरूर acting कर रही होगी. क्योंकी वो पहले भी कयी बार चुद्वा चुकी थी. इसका सबोत ज़रा ही देर मैं मील गया, जब वो सिस्कारी लेते हुए वीनय को लंड ज़द तक पहुंचाने के लीये कहने लगी. वीनय ने ज़ोरदार धक्का मार कर अपना लंड उसकी चूत की ज़द तक पहुँचा दीया था. इधर मेरी चूत मैं भी अजय के लंड के ज़ोरदार धक्के लग रहे थे. कुछ देर बार वीनय ने कहा, “अब हम लोग पर्त्नेर बदल ले तो कैसा रहेगा?”
वैसे तो मुझे मज़ा आ रहा था, मगर फीर भी तैयार हो गयी. अजय ने मेरी चूत से लंड नीकाल लीया. मैं वीनय के पास चली गयी. उसने नीम की चूत से लंड नीकाल कर मुझे घोड़ी बनाकर मेरी पीछे से चूत मैं लंड पेल दीया, एक झटके मैं आधा लंड मेरी चूत मैं समां गया, इस आसान मैं लंड चूत मैं जाने से मुझे थोड़ी परेशानी हुई मगर मैं झेल गयेयूधार मैंने देखा की अजय ने नीमा की चूत मैं लंड घुसाया और तेज़ी से धक्के मारने लगा. साथ ही उसकी चूचियों को भी मसलने लगा. कुछ ही देर बाद हमने फीर partner बदल लीये. ऍम मेरी चूत मैं फीर से अजय का लंड था. उधर मैंने देखा की नीमा अब वीनय की गोद मैं बैठ कर उछल रही थी, और नीचे से वीनय का मोटा लंड उसकी चूत के अंदर बहार हो रहा था। वो सिस्कारी लेकर उसकी god मैं एक प्रकार से झूला झूल रही थी। मैंने अजय की ओर इशारा कीया तो उसने भी हामी भर दी. मैं उसकी क़मर से लिपट गयी.
दोनो टाँगे मैंने उसकी क़मर से लप्पेट दी थी और उसके गले मैं बाहें डाले, मैं झूला झूलते हुए चुद्वा रही थी. बहुत मस्ती भरी चुदाई थी. कुछ देर बाद लंड के धक्के खाते खात मैं झड़ने लगी, मेरी चूत मैं संकुचन होने लगा जिससे अजय भी झंडे लगा. उसका वीर्य रस मेरी चूत के कोने कोने मैं ठंडक दे रहा था, बहुत अनंद आ रहा था.
दोनो टाँगे मैंने उसकी क़मर से लप्पेट दी थी और उसके गले मैं बाहें डाले, मैं झूला झूलते हुए चुद्वा रही थी. बहुत मस्ती भरी चुदाई थी. कुछ देर बाद लंड के धक्के खाते खात मैं झड़ने लगी, मेरी चूत मैं संकुचन होने लगा जिससे अजय भी झंडे लगा. उसका वीर्य रस मेरी चूत के कोने कोने मैं ठंडक दे रहा था, बहुत अनंद आ रहा था.
उसके बाद उसने मेरी चूत से लंड बहार नीकाल लीया. उधर वो दोनो भी झाड़
झुदा कर अलग हो चुके थे. हम सबने खाने पीने का प्लान बनाया. दोनो समन मौजूद थे. मैं आम तौर पर नहीं पीती हूँ और ना ही नीमा पीती है, मगर उस दीन हम सबने व्हिस्की पी. खा पी चुकने के बाद हम चारो फीर मस्ती करने लगे, मस्ती करते करते ही मैंने फैसला कर लीया था की इस बार गांड मैं लंड दल्वायेंगे. जब मैंने अजय और वीनय को अपनी मंशा के बारे मैं बताया तो वो दोनो राज़ी हो गई. नीमा तो पहले से ही राज़ी थी शायद. हम सबने तेल का इंतज़ाम कीया. टेल लगा कर गांड मरवाने का यह आईडिया नीमा का था. शायद वो पहले भी इस तरीके से गांड मरवा चुकी थी.
तेल आ जाने के बाद मैंने वीनय के लंड को पहले मुँह मैं लेकर चूस कर खड़ा कीया और उसके बाद उसके खडे लंड पर तेल चुपद दीया और मालिश करने लगी. उसके लंड की मालिश करके मैं उसके लंड को एकदम चिकना बाना दीया था. उधर नीम अजय के लंड को तेल से टर्र करने मैं लगी हुई थी. वीनय मैं लंड को पकड़ कर मैंने कहा “इस बार तेल लगा हुआ है, पूरा मज़ा देना मुझे.”
“फिक्र मत करो मेरी जान.” वो मुस्कुरा कर बोला और उसने मेरी गांड के सुराख पर रगड़ता रहा उसके बाद एक ही धक्के मैं अपना आधा लंड मेरी गांड मैं दाल दीया. मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी सिस्कारी निकलने लगी. जितनी आसानी से उसका लंड अपनी चूत मैं मैं डलवा लेटी थी, उतनी आसानी से गांड मैं नहीं.
खैर जैसे ही उसने दूसरा धक्का मार कर लंड को और अंदर करना चाहा, मैं अपना काबू नहीं रख पाई और आगे की ओर गिरी ओ वो भी मेरे साथ मेरे बदन से लिप्त मेरे ऊपर गीर पड़ा. एक एक वो नीचे की ओर हो गया और मैं उसके ऊपर, दबाव से उसका सारा लंड मेरी गांड मैं समां गय. मैं मरे दर्द के चीखने लगी. ह्ह्ह्ह्ह्हाआआईईईईई फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ाआद्द्द्द्द्द् दीईईइ
म्म्म्म्मीईर्र्र्रीईई . मैं उससे छूटने के लीया हाथ पैर मारने लगी तो उसने म,उझे खींच कर अपने से लिपटा लीया और तेज़ी से उछल उछल कर गांड मैं घुसे पडे लंड को हरकत देना स्टार्ट कर दीया.
मेरी तो जान जा रही थी. ऐसा लग रहा था की आज मेरी गांड जरूर फट
जायेगी. मैं बहुत मिन्नत करने लगी तो उसने मुझे बराबर लिटा दीया और तेज़ी से मेरी गांड मारने लगा. बगल मैं होने से वैसे तो मुझे उतना दर्द नहीं हो रहा था मगर उसका मोटा लंड तेज़ी से गांड के अंदर बहार होने मैं मुझे परेशानी होने लगी. मैं नीम की ओर नहीं देख पाई की वो कैसे गांड मरे का मज़ा ले रही है, क्योंकी मुझे खुद के दर्द से फुर्सत नहीं थी.
वीनय काफी देर से धक्के मार रहा था मगर वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. तभी मैंने देखा की नीमा ज़ोर ज़ोर से उछल रही थी और अजय को बार बार मुकत करने की लीये कह रही थी. कुछ देर बाद अजय ने लंड बहार नीकाल लीया. मेरे पास आकर बोला, “कहो तो लंड तुम्हारी चूत मैं दाल दूं. नीमा तो थक गयी है.”
मैंने वीनय की ओर देखा तो उसने हामी भर दी तो मैंने भी हाँ कह दीया. फीर मैं वीनय के सहयोग से उठ कर वीनय के ऊपर आ गयी, नीचे वीनय मेरी गांड मैं लंड डाले पड़ा हुआ था, ऊपर मैं चूत फैलाये हुए अजय का लंड डलवाने के लीये बेताब हो रही थी. अजय ने एक ही धक्के मैं अपना पूरा लंड मेरी चूत मैं उतार दीया. उसके बाद जब मुझे दोनो ओर से धक्के लगने लगे तो मुझे इतना मज़ा आया की मैं बता नहीं सकती. बिल्कुल ब्लू फिल्मो की तरह का सीन इस समय हो रहा था, मैं गालिया देती हुई दोनो तरफ से चुद रही थी. नीम पास खादी हम तीनो को मज़ा लेते देख रही थी. कुछ ही देर मैं हम तीनो झाड़ कर लास्ट पस्त हो गई.
सुबह तक हमने कुल मीलाकर ४ बार चुदाई का अनद लीया. उसके बाद अगले दीन मैं नीम के साथ पहले उसके घर गयी, फीर उसे अपने घर भी ले आयी. ताकी मम्मी को यकीन हो जाये की मैं रात भर उसी के घर पर थी. मम्मी को कुछ शाकुए नहीं हो पाय.
आज भी हम चारो मील कर ऐसे ही प्लंस बनाते हैं और अजय के बंग्लोव पर
चुदाई का अनंद उताते हैं, अब तो उसमें वीनय के २-३ दोस्त और भी शम्मिल हो गई हैं......
मेरी उम्र १८ साल है, मैं कुंवारी युवती हूँ. मैंने 12th का exam दीया है. मैं अपने बारे में यह बताना जरूरी समझती हूँ की मेरी फमिल्य काफी advance है, और मुझे कीसी प्रकार की बंदीश नहीं लगायी जाती. मैं अपनी मरजी से जीना पसंद करती हूँ. अपने ही ढंग से fashionable कपडे पहन-ना मेरा शौक़ है. और क्योंकी मैं मम्मी पापा की इकलौती बेटी हूँ इसलिए कीसी ने भी मुझे इस तरह के कपडे पहन-ने से नहीं रोका. School आने जाने के लिए मुझे एक ड्राइवर के साथ कार मीली हुई थी. वैसे तो मम्मी मुझे ड्राइव करने से मन करती थी, मगर मैं अक्सर ड्राइवर को घूमने के लिए भेज देती और खुद ही कार लेकर सैर करने निकल जाती थी.
School में पढने वाला एक लड़का मेरा दोस्त था. उसके पास एक अच्छी सी bike थी. मगर वो कभी कभी ही bike लेकर आता था, जब भी वो bike लेकर आता मैं उसके पीछे बैठ कर उसके साथ घूमने जाती. और जब उसके पास bike नहीं होती तो मैं उसके साथ कार में बैठ कर घूमने का अनद उठाती. ड्राइवर को मैंने पैसे देकर मना कर रख्खा था की घर पर मम्मी या पापा को ना बताये की मैं अकेली कार लेकर अपने दोस्त के साथ घूमने जाती हूँ. इस प्रकार उसे दोहरा फायदा होता था, कै ओर तो उसे पैसे भी मील जाते थे और दूसरी ओर उसे अकेले घूमने का मौका भी मील जाया कर्ता था. दो बजे School से छुट्टी के बाद अक्सर मैं अपने दोस्त के साथ निकल जाती थी और करीब ६-७ बजते बजते घर पहुंच जाती थी. एक प्रकार से मेरा घूमना भी हो जाता था और घर वालो को कुछ कहने का मौका भी नहीं मिलता था.
मेरे दोस्त का नाम तो मैं बातन ही भूल गयी. उसका नाम वीनय है. वीनय को मैं मन ही मन प्यार करती थी और वीनय भी मुझसे प्यार कर्ता था, मगर ना तो मैंने कभी उससे प्यार का इजहार कीया और ना ही उसने. उसके साथ प्यार करने में मुझे कोई झीझक महसूस नहीं होती थी. मुझे याद है की प्यार की शुरुआत भी मैंने ही की थी जब हम दोनो bike में बैठ कर घूमने जा रहे थे. मैं पीछे बैठी हुई थी जब मैंने रोमांटिक बात करते हुए उसके गाल पर कीस कर लीया. ऐसा मैंने भावुक हो कर नहीं बल्की उसकी झीझक दूर करने के लिए किया था. वो इससे पहले प्यार की बात करने में भी बहुत झीझाकता था. एक बार उसकी झीझक दूर होने के बाद मुझे लगा की उसकी झिजहक दूर करके मैंने ठीक नहीं कीया. क्योंकी उसके बाद तो उसने मुझसे इतनी शरारत करनी शुरू कर दी की कभी तो मुझे मज़ा आ जाता था और कभी उस पर ग़ुस्सा. मगर कुल मीलाकर मुझे उसकी शरारत बहुत अच्छी लगती थी. उसकी इन्ही सब बातो के कारण मैं उसे पसंद करती थी और एक प्रकार से मैंने अपना तन मन उसके नाम कर दीया था.
एक दीन मैं उसके साथ कार में थी. कार वोही ड्राइव कर रह था. एकाएक एक सुनसान जगह देखकर उसने कार रोक दी और मेरी ओर देखते हुए बोला, “अच्छी जगह है ना ! चारो तरफ अँधेरा और पड पौधे हैं. मेरे ख़्याल से प्यार करने की इससे अच्छी जगह हो ही नहीं सकती.” यह कहते हुए उसने मेरे होंठो को चूमना चाहा तो मैं उससे दूर हटने लगी. उसने मुझे बाहों में कास लीया और मेरे होंठो को ज़ोर से अपने होंठो में दबाकर चूसना शुरू कर दीया. मैं जबरन उसके होंठो की गिरफ्त से आज़ाद हो कर बोली, “छोडो, मुझे सांस लेने में तकलीफ हो रही है.” उसने मुझे छोड़ तो दीया मगर मेरी चूची पर अपना एक हाथ रख दीया. मैं समझ रही थी की आज इसका मन पूरी तरह रोमांटिक हो चुक्का है. मैंने कहा, “मैं तो उस दीन को रो रही हूँ जब मैंने तुम्हारे गाल पर कीस करके अपने लिए मुसीबत पैदा कर ली. ना मैं तुम्हे कीस करती और ना तुम इतना खुलते.” “तुमसे प्यार तो मैं काफी समय से कर्ता था. मगर उस दीन के बाद से मैं यह पूरी तरह जान गया की तुम भी मुझसे प्यार करती हो. वैसे एक बात कहों, तुम हो ही इतनी हसीं की तुम्हे प्यार किय बीना मेरा मन नहीं मान-ता है.”
वो मेरी चूची को दबाने लगा तो मैं बोली, “उम्म्म्म्म क्यों दबा रहे हो इसे? छोडो ना, मुझे कुछ कुछ होता है.” “क्या होता है?” वो और भी ज़ोर से दबाते हुए बोला, मैं क्या बोलती, ये तो मेरे मन की एक फीलींग थी जिसे शब्दो में कह पाना मेरे लिए मुश्कील था. इसे मैं केवल अनुभव कर रही थी. वो मेरी चूची को बदस्तूर मसलते दबाते हुए बोला, “बोलो ना क्या होता है?”
“उम्म्म्म्म उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ मेरी समझ में नहीं आ रह है की मैं इस फीलींग को कैसे व्यक्त करूं. बस समझ लो की कुछ हो रह है.”
वो मेरी चूची को पहले की तरह दबाता और मसलता रहा. फीर मेरे होंठो को कीस करने लगा. मैं उसके होंठो के चुम्बन से कीच कुछ गरमा होने लगी. जो मौका हमे संयोग से मीला था उसका फायदा उठाने के लिए मैं भी व्याकुल हो गयी. तभी उसने मेरे कपडो को उतारने का उपक्रम कीया. होंठ को मुकत कर दीया था. मैं उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराने लगी. ऐसा मैंने उसका हौंसला बढाने के लिए कीया था. ताकी उसे एहसास हो जाये की उसे मेरा support मील रहा है.
मेरी मुस्कराहट को देखकर उसके चहरे पर भी मुस्कराहट दिखाई देने लगी. वो आराम से मेरे कपडे उतारने लगा, पहले उसका हाथ मेरी चूची पर ही था सो वो मेरी चूची को ही नंगा करने लगा. मैं हौले से बोली, “मेरा विचार है की तुम्हे अपनी भावनाओं पर काबू करना चाहिऐ. प्यार की ऐसी दीवानगी अच्छी नहीं होती.”
उसने मेरे कुछ कपडे उतार दीये. फीर मेरी ब्रा खोलते हुए बोला, “तुम्हारी मस्त जवानी को देखकर अगर मैं अपने आप पर काबू पा लूं तो मेरे लीये ये एक अजूबे के समन होगा.”
मैंने मन में सोचा की अभी तुमने मेरी जवानी को देखा ही कहॉ है. जब देख लोगे तो पता नहीं क्या हाल होगा. मगर मैं केवल मुस्कुरायी. वो मेरे मम्मे को नंगा कर चुक्का था. दोनो चूचियों में ऐसा तनाव आ गया था उस वक़्त तक की उसके दोनो निप्प्ले अकड़ कर और ठोस हो गए थे. और सुई की त्तारह तन गए थे. वो एक पल देख कर ही इतना उत्तेजित हो गया था की उसने निप्प्ले समेट पूरी चूची को हथेली में समेटा और कास कास कर दबाने लगा. अब मैं भी उत्तेजित होने लगी थी. उसकी हर्कतो से मेरे अरमान भी मचलने लगे थे. मैंने उसके होंठो को कीस करने के बाद प्यार से कहा, “छोड़ दो ना मुझे. तुम दबा रहे हो तो मुझे गुदगुदी हो रही है. पता नहीं मेरी चूचियों में क्या हो रहा है की दोनो चूचियों में तनाव सा भरता जा रहा है. Please छोड़ दो, मत दबाओ.” वो मुस्कुरा कर बोला, “मेरे बदन के एक खास हिस्से में भी तो तनाव भर गया है. कहो तो उसे निकाल कर दिखाऊँ?”
मैं समझ नहीं पाई की वो किसकी बात कर रहा है. मगर एक एक वो अपनी पैंट उतारने लगा तो मैं समझ गयी और मेरे चहरे पर शर्म की लालओ फैल गयी. वो किसमें तनाव आने की बात कर रहा था उसे अब मैं पूरी तरह समझ गयी थी. मुझे शर्म का एहसास भी हो रहा था और एक प्रकार का रोमांच भी सारे बदन में अनुभव हो रहा था. मैं उसे मना करती रह गयी मगर उसने अपना काम करने से खुद को नहीं रोका, और अपनी पैंट उतार कर ही माना. जैसे ही उसने अपना अंडरवियर भी उतारा तो मैंने जल्दी से निगाह फेर ली.
वो मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए बोला, “छू कर देखो ना. कीतना तनाव आ गया है इसमें. तुम्हारे न्प्प्ले से ज्यादा तन गया है ये.”
मैंने अपना हाथ छुडाने की acting भर की. सच तो ये था की मैं उसे छूने को उतावली हो रही थी. अब तक देखा भी नहीं था. छू कर देखने की बात तो और थी. उसने मेरे हाथ को बढ़ा कर एक मोटी सी चीज़ पर रख दीया. वो उसका लंड है ये मैं समझ चुकी थी. एक पल को तो मैं सन् रह गयी, उसका लुंड पकड़ने के बाद. मेरे दील की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी की खुद मेरे कानो में भी गूंजती लग रही थी. मैं उसके लंड की ज़द की ओर हाथ बढाने लगी तो एह्साह हुआ की लंड लम्बा भी काफी था. मोटा भी इस क़दर की उसे एक हाथ में ले पाना एक प्रकार से नामुमकीन ही था.
वो मुझे गरम होता देख कर मेरे और करीब आ गया और मेरे निप्प्ले को सहलाने लगा. एक एक उसने निप्प्ले को चूमा तो मेरे बदन में ख़ून का दौरा तेज़ हो गया, और मैं उसके लंड के ऊपर तेज़ी से हाथ फिराने लगी. मेरे ऐसा करते हु उसने झट से मेरे निप्प्ले को मुँह में ले लीया और चूसने लगा. अब तो मैं पूरी मस्ती में आ गयी और उसके लंड पर बार बार हाथ फेर कर उसे सहलाने लगी. बहुत अच्चा लग रहा था, मोटे और लंबे गरम लंड पर हाथ फिराने में.
एक एक वो मेरे निप्प्ले को मुँह से निकाल कर बोला, “कैसा लग रहा है मेरे लंड पर हाथ फेरने में?”
मैं उसके सवाल को सुनकर शर्म गई. हाथ हटाना चाहा तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर लंड पर ही दबा दीया और बोला, “तुम हाथ फेरती हो तो बहुत अच्चा लगता है, देखो ना, तुम्हारे द्वारा हाथ फेरने से और कीतना तन गया है.”
मुझसे रहा नहीं गया तो मैं मुस्कुरा कर बोली, “मुझे दिखाई कहां दे रहा है?”
“देखोगी ! ये लो.” कहते हुए वो मेरे बदन से दूर हो गया और अपनी क़मर को उठा कर मेरे चहरे के समीप कीया तो उसका मोटा तगादा लंड मेरी निगाहो के आगे आ गया. लंड का सुपादा ठीक मेरी आंखो के सामने था और उसका आकर्षक रुप मेरे मन को विचलित कर रहा था. उसने थोडा सा और आगे बढ़ाया तो मेरे होंठो के एकदम करीब आ गया. एक बार
तो मेरे मन में आया की मैं उसके लंड को कीस कर लूं मगर झीझक के कारण मैं उसे चूमने को पहल नहीं कर पा रही थी. वो मुस्कुरा कर बोला, “मैं तुम्हारी आंखो में देख रहा हूँ की तुम्हारे मन में जो है उसे तुम दबाने की कोशिश कर रही हो. अपनी भावनाओं को मत दबाओ, जो मन में आ रहा है, उसे पूरा कर लो.”
उसके यह कहने के बाद मैंने उसके लंड को चूमने का मन बनाया मगर एकदम से होंठ आगे ना बढ़ा कर उसे चूमने की पहल ना कर पाई. तभी उसने लंड को थोडा और आगे मेरे होंठो से ही सटा दीया, उसके लंड के देहाकते हुए सुपादे का स्पर्श होंठो का अनुभव करने के बाद मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और लंड के सुपादे को जल्दी से चूम लीया. एक बार चूम लेने के बाद तो मेरे मन की झीझक काफी कम हो गयी और मैं बार बार उसके लंड को दोनो हाथो से पकड़ कर सुपादे को चूमने लगी, एकाएक उसने सिस्कारी लेकर लंड को थोडा सा और आगे बढ़ाया तो मैंने उसे मुँह में लेने के लीये मुँह खोल दीया, और सुप्पदा मुँह में लेकर चूसने लगी.
इतना मोटा सुपादा और लंड था की मुँह में लीये रखने में मुझे परेशानी का अनुभव हो रहा था, मगर फीर भी उसे चूसने की तमन्ना ने मुझे हार मान-ने नहीं दीया और मैं कुछ देर तक उसे मज़े से चुस्ती रही. एक एक उसने कहा, “हाईई तुम इसे मुँह में लेकर चूस रही हो तो मुझे कीतना मज़ा आ रहा है, मैं तो जानता था की तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, मगर थोडा झिझकती हो. अब तो तुम्हारी झीझक समाप्त हो गयी, क्यों है ना?”
मैं हाँ में सीर हीला कर उसकी बात का समर्थन कीया और बदस्तूर लंड को चुस्ती रही. अब मैं पूरी तरह खुल गयी थी और चुदाई का अनंद लेने का इरादा कर चुकी थी. वो मेरे मुँह में धीरे धीरे धक्के लगाने लगा. मैंने अंदाजा लगा लीया की ऐसे ही धक्के वो चुदाई के समय भी लगाएगा.चुदाई के बारे में सोचने पर मेरा ध्यान अपनी चूत की ओर गया, जीसे अभी उसने निवास्त्र नहीं कीया था. जबकी मुझे चूत में भी हलकी हलकी सिहरन महसूस होने लगी थी. मैं कुछ ही देर में थकान का अनुभव करने लगी. लंड को मुँह में लेने में परेशानी का अनुभव होने लगा. मैंने उसे मुँह से निकालने का मन बनाया मगर उसका रोमांच मुझे मुँह से निकालने नहीं दे रहा था. मुँह थक गया तो मैंने उसे अंदर से तो नीकाल लीया मगर पूरी तरह से मुकत नहीं कीया. उसके सुपादे को होंठो के बीच दबाये उस पर जीभ फेरती रही. झीझक ख़त्म हो जाने के कारण मुझे ज़रा भी शर्म नहीं लग रही थी.
तभी वो बोला, “है मेरी जान, अब तो मुकत कर दो, Please नीकाल दो ना.”
वो मिन्नत करने लगा तो मुझे और भी मज़ा आने लगा और मैं प्रयास करके उसे और चूसने का प्रयत्न करने लगी. मगर थकान की अधिकता हो जाने के कारण, मैंने उसे मुँह से नीकाल दीया. उसने एक एक मुझे धक्का दे कर गीरा दीया और मेरी jeans खोलने लगा और बोला,“मुझे भी तो अपनी उस हसीं जवानी के दर्शन कर दो, जीसे देखने के लीये मैं बेताब हूँ.”
मैं समझ गयी की वो मेरी चूत को देखने के लीये बेताब था. और इस एहसास ने की अब वो मेरी चूत को नंगा करके देख लेगा साथ ही शरारत भी करेगा. मैं रोमांच से भर गयी. मगर फीर भी दिखावे के लीये मैं मना करने लगी. वो मेरी jeans को उतार चुकने के बाद मेरी पैंटी को खींचने लगा तो मैं बोली, “छोडो ना ! मुझे शर्म आ रही है.”
“लंड मुँह में लेने में शर्म नहीं आयी और अब मेरा मन बेताब हो गया है तो सिर्फ दिखाने में श रम आ रही है.” वो बोला. उसने खींच कर पैंटी को उतार दीया और मेरी चूत को नंगा कर दीया. मेरे बदन में बिजली सी भर गयी. यह एहसास ही मेरे लीये अनोखा था ई उसने मेरी चूत को नंगा कर दीया था. अब वो चूत के साथ शरारत भी करेगा.वो चूत को छूने की कोशिश करने लगा तो मैं उसे जान्घो के बीच छिपाने लगी. वो बोला, “क्यों छुपा रही हो. हाथ ही तो लगाऊंगा. अभी चूमने का मेरा इरादा नहीं है. हाँ अगर प्यारी लगी तो जरूर चूमुंगा.”
उसकी बात सुनकर मैं मन ही मन रोमांच से भर गयी. मगर मैं बोली, “तुम देख लोगे उसे, मुझे दिखाने में शर्म आ रही है. आंख बंद करके छुओगे तो बोलो.”
“ठीक है ! जैसी तुम्हारी मरजी. मैं आंख बंद कर्ता हूँ, तुम मेरा हाथ
पकड़ कर अपनी चूत पर रख देना.”
मैंने हाँ में सीर हीलाया. उसने अपनी आंख बंद कर ली तो मैं उसका हाथ
पकड़ कर बोली, “चोरी छीपे देख मत लेना, ओक, मैं तुम्हारा हाथ अपनी चूत पर रख रही हूँ.”
मैंने चूत पर उसका हाथ रख दीया. फीर अपना हाथ हटा लीया. उसके हाथ का स्पर्श चूत पर लगते ही मेरे बदन में सनसनाहट होने लगी. गुदगुदी की वजह से चूत में तनाव बढने लगा. उस पर से जब उसने चूत को छेड़ना शुरू कीया तो मेरी हालत और भी खराब हो गयी. वो पूरी चूत पर हाथ फेरने लगा. फीर जैसे ही चूत के अंदर अपनी ऊँगली घुसाने की चेष्टा की तो मेरे मुँह से सिस्कारी निकल गयी. वो चूत में ऊँगली घुसाने के बाद चूत की गहराई नापने लगा. मुझे इतना मज़ा आने लगा की मैंने चाहते हुए भी उसे नहीं रोका. उसने चूत की काफी गहराई में घुसा दी थी.
मैं लगातार सिस्कारी ले रही थी. मेरी कुंवारी और नाज़ुक चूत का कोना कोना जलने लगा. तभी उसने एक हाथ मेरी गांड के नीचे लगाया क़मर को थोडा ऊपर करके चूत को चूमना चाहा. उसने अपनी आंख खोल ली थी और होंठों को भी इस प्रकार खोल लीया था जैसे चूत को होंठो के बीच मैं दबाने का मन हो. मेरी हलकी झांतो वाली चूत को होंठों के बीच दबा कर जब उसने चोसना शुरू कीया तो मैं और भी बुरी तरह छातपाताने लगी. उसने कास कास कर मेरी चूत को चूसा और चंद ही पालो मैं चूत को इतना गरम कर डाला की मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई और होंठो से कामुक सिस्कारी निकलने लगी. इसके साथ ही मैं क़मर को हीला हीला कर अपनी चूत उसके होंठों पर रगड़ने लगी.
उसने समझ लीया की उसके द्वारा चूत चूसे जाने से मैं गरम हो रही हूँ. सो उसने और भी तेज़ी से चूसना शुरू कीया साथ ही चूत के सुराख के अंदर जीभ घुसा कर गुदगुदाने लगा. अब तो मेरी हालत और भी खराब होने लगी. मैं ज़ोर से सिस्कारी ले कर बोली, “वीनय येस् क्या कर रहे हो. इतने ज़ोर से मेरी चूत को मत चूसो और ये तुम छेद के अंदर गुदगुदी……. ऊऊईईई….. मुझसे बर्दस्थ नहीं हो पा रहा है. Please निकालो जीभ अंदर से, मैं पागल हो जाउंगी.”
मैं उसे निकलने को जरूर कह रही थी मगर एक सच यह भी था की मुझे
बहुत मज़ा आ रहा था. चूत की गुद्गुदाहत से मेरा सारा बदन काँप रहा था. उसने तो चूत को छेद छेद कर इतना गरम कर डाला की मैं बर्दस्थ नहीं कर पाई. मेरी चूत का भीतरी हिस्सा रस से गीला हो गया. उसने कुछ देर तक चूत के अंदर तक के हिस्से को गुदगुदाने के बाद चूत को मुकत कर दीया. मैं अब एक पल भी रुकने की हालत मैं नहीं थी. जल्दी से उसके बदन से बदन से लिपट गयी और लंड को पकड़ने का प्रयास कर रही थी की उसे चूत मैं दाल लूंगी की उसने मेरी टांगो के पकड़ कर एकदम ऊंचा उठा दीया और नीचे से अपना मोटा लंड मेरी चूत के खुले हुए छेद मैं घुसाने की कोशिश की. वैसे तो चूत का दरवाज़ा आम तौर पर बंद होता था. मगर उस वक़्त क्योंकी उसने टांगो को ऊपर की ओर उठा दीया था इसलिए छेद पूरी तरह खुल गया था. रस से चूत गीली हो रही थी. जब उसने लंड का सुपादा छेद पर रख्खा तो ये भी एहसास हुआ की छेद से और भी रस निकलने लगा. मैं एक पल को तो सिसिया उठी. जब उसने चूत मैं लंड घुसाने की बजाये हल्का सा रागादा. मैं सिस्कारी लेकर बोली, “घुसाओ जल्दी से………. देर मत करो Please……………..”
उसने लंड को चूत के छेद पर अड़ा दीया. पहली बार मुझे ये एहसास हुआ की मेरी चूत का सुराख उम्मीद से ज्यादा ही छोटा है. क्योंकी लंड का सुपादा अंदर जाने का नाम ही नहीं ले रहा था. मेरी हालत तो ऐसी हो चुकी थी की अगर उसने लंड जल्दी अंदर नहीं कीया तो शायद मैं पागल हो जाऊं. वो अंदर डालने की कोशिश कर रहा था.मैं बोली,“क्या कर रहे हो जल्दी घुसाओ ना अंदर. ऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् ऊऊम्म्म्म्म्म् अब तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है. Please जल्दी से अंदर कर दो.”
वो बार बार लंड को पकड़ कर चूत मैं डालने की कोशिश कर्ता और बार बार लंड दूसरी तरफ फिसल जात. वो भी परेशान हो रहा था और मैं भी. मैं सिसियाने लगी, क्योंकी चूत के भीतरी हिस्से मैं ज़ोरदार गुदगुदी सी हो रही थी. मैं बार बार उसे अंदर करने के लीये कहे जा रही थी. वो प्रयास कर तो रहा था मगर लंड की मोटाई के कारण चूत के अंदर नहीं जा पा रहा था. तभी उसने कहा, “उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ तुम्हारी चूत का सुराख तो इस क़दर छोटा है की लंड अंदर जाने का नाम ही नहीं ले रहा है मैं क्या करूं?”
“तुम तेज़ झटके से घुसाओ अगर फीर भी अंदर नहीं जाता है तो फाड़ दो मेरी चूत को.” मैं जोश मैं आ कर बोल बैठी. मेरी बात सुनकर वो भी बहुत जोश मैं आ गया और उसने ज़ोर का धक्का मारा. एकदम जानलेवा धक्का था, भक्क से चूत के अंदर लंड का सुपादा समां गया, इसके साथ ही मेरे मुँह से चीख भी निकल गयी. चूत की ओर देखा तो पाय की बीच से फट गयी थी और ख़ून निकल रहा था. ख़ून देखने के बाद तो मेरी घबराहट और बढने लगी मगर कीसी तरह मैंने अपने आप पर काबू कीया.
उसके लंड ने चूत का थोडा सा ही सफ़र पूरा कीया था और उसी मैं मेरी हालत खराब होने लगी थी. चूत के एकदम बीचों बीच धंसा हुआ उसका लंड खतरनाक लग रहा था. मैं दर्द से कराह-हटे हुए बोली, “My god ! मेरी चूत तो सचमुच फट गयी उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ दर्द सेहन नहीं हो रहा है. अगर पूरा लंड अंदर घुसाओगे तो लगता है मेरी जान ही नीकल जायेगी.”
“नहीं यार! मैं तुम्हे मरने थोड़े ही दूंगा.” वो बोला और लंड को हिलाने लगा तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे चूत के अंदर बवंडर मचा हुआ हो. जब मैंने कहा की थोड़ी देर रूक जाओ, उसके बाद धक्के मारना तो उसने लंड को जहाँ का तहां रोक दीया और हाथ बढ़ा कर मेरी चूची को पकड़ कर दबाने लगा. चूची मैं कठोरता पूरे शबाब पर आ गयी थी और जब उसने दबाना शुरूकिया तो मैंने चूत की ओर से कुछ रहत महसूस की. कारण मुझे चूचियों का दब्वाया जान अच्चा लग रहा था. मेरा तो यह तक दील कर रहा था की वो मेरे निप्प्ले को मुँह मैं लेकर चूसता. इससे मुझे अनंद भी आता और चूत की ओर से ध्यान भी बाँट-ता. मगर टांग उसके कंधे पर होने से उसका चेहरा मेरे निप्प्ले तक पहुंच पाना एक प्रकार से नामुमकीन ही था.
तभी वो लंड को भी हिलाने लगा. पहले धीरे धीरे उसके बाद तेज़ गति से.
चूची को भी एक हाथ से मसल रहा था. चूत मैं लंड की हलकी हलकी
सरसराहट अच्छी लगने लगी तो मुझे अनंद आने लगा. पहले धीरे और उसके
उसने धक्को की गति तेज़ कर दी. मगर लंड को ज्यादा अंदर करने का प्रयास उसने अभी नहीं कीया था. एक एक वीनय बोला, “तुम्हारी चूत इतनी कम्सिन और tight है की क्या कहूं?”
उसकी बात सुनकर मैं मुस्करा कर रह गयी. मैंने कहा, “मगर फीर भी तो तुमने फाड़ कर लंड घुसा ही दीया.”
“अगर नहीं घुसाता तो मेरे ख़्याल से तुम्हारे साथ मैं भी पागल हो जाता.”
मैं मुस्करा कर रह गयी.वो तेज़ी से लंड को अंदर बहार करने लगा था. अब चूत मैं दर्द अधीक तो नहीं हो रहा था हाँ हल्का हल्का सा दर्द उठ रहा था. मगर उससे मुझे कोई परेशानी नहीं थी. उसके मुकाबले मुझे मज़ा आ रहा था. कुछ देर मैं ही उसने लंड को ठेल कर काफी अंदर कर दीया था. उसके बाद भी जब और ठेल कर अंदर घुसाने लगा तो मैं बोली, “और अंदर कहां करोगे, अब तो सारा का सारा अंदर कर चुके हो. अब बाक़ी क्या रह गया है?”
“एक इंच बाक़ी रह गया है.” कहते ही उसने मुझे कुछ बोलने का मौका दीये
बग़ैर ज़ोर से झटका मार कर लंड को चूत की गहरायी मैं पहुँचा दीया.
मैं चीख कर रह गयी. उसके लंड के ज़ोरदार प्रहार से मैं मस्त हो कर रह गयी थी. ऐसा अनंद आया की लगा उसके लंड को चूत की पूरी गहरायी मैं दाखील करवा ही लूं. उसी मैं मज़ा आएगा. यह सोच कर मैंने कहा, “हाऐईईइ…… और अंदर…….. घुसाआअऊऊऊ. गहरायी मैं पहुँचा दो.”
उसने मेरी जांघों पर हाथ फेरा और लंड को ज़ोर से ठेला तो मेरी चूत से अजीब तरह की आवाज़ नीक्ली और इसके साथ ही मेरी चूत से और भी ख़ून गिरने लगा. मगर मुझे इससे भी कोई परेशानी नहीं हुई थी, बल्की यह देख कर मैं अनंद मैं आ गयी की चूत का सुराख पूरा खुल गया था और लंड सारा का सारा अंदर था. एक पल को तो मैं यह सोच कर ही रोमंचित हो गयी की उसके बम्बू जैसे लंड को मैंने अपनी चूत मैं पूरा डलवा लीया था. उस पर से जब उसने धक्के मारने लगा, तो एहसास हुआ की वाकई जो मज़ा चुदाई मैं है वो कीसी और तरीके से मौज-मस्ती करने से नहीं है.
उसका ८ इंच लंड अब मेरी चूत की गहराई को पहले से काफी अच्छी तरह नाप
रहा था. मैं पूरी तरह मस्त होकर मुँह से सिस्कारी निकालने लगी. पता
नहीं कैसे मेरे मुँह से एकदम गन्दी गन्दी बात निकलने लगी थी. जिसके बारे मैं मैंने पहले कभी सोचा तक नहीं था. फ्ह्ह्हाद्द्द्द्द….. दूऊऊओ मेरीईईइ चूऊओत्त्त्त्त्त्त् कूऊऊऊ आआह्ह्ह्ह्ह्ह् प्प्प्पीईईईल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लूऊऊऊओ और्र्र्र्र्र तेज़ पेलो टुकड़े टुकड़े कर दो मेरी चूऊऊत्त्त्त्त्त्त्त् कीईईईईईईई.
एक एक मैं झड़ने के करीब पहुंच गयी तो मैंने वीनय को और तेज़ गति से ढके मरने को कह दीया,अब लंड मेरी छुट को पार कर मेरी बच्चेदानी से टकराने लगा था, तभी चूत मैं ऐसा संकुचन हुआ की मैंने खुद बखुद उसके लंड को ज़ोर से चूत के बीच मैं कास लीया. पूरी चूत मैं ऐसी गुद्गुदाहत होने लगी की मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई और मेरे मुँह से ज़ोरदार सिस्कारी निकलने लगी. उसने लंड को रोका नहीं और धक्के मारता रहा. मेरी हालत जब कुछ अधीक खराब होने लगी तो मेरी रुलायी चुत नीक्ली.
कुछ देर तक वो मेरी चूत मैं ही लंड डाले मेरे ऊपर पड़ा रहा. मैं आराम से कुछ देर तक सांस लेटी रही. फीर जब मैंने उसकी ओर ध्यान दीया तो पाय की उसका मोटा लंड चूत की गहराई मैं वैसे का वैसा ही खड़ा और अकादा हुआ पड़ा था. मुझे नॉर्मल देखकर उसने कहा, “कहो तो अब मैं फीर से धक्के मारने शुरू करूं.”
“मारो, मैं देखती हूँ की मैं बर्दाश्त कर पाती हूँ या नहीं.”
उसने दुबारा जब धक्के मारने स्टार्ट कीए तो मुझे अग जैसे मेरी चूत मैं कांटे उग आये हो, मैं उसके धक्के झेल नहीं पाई और उसे मना कर दीया. मेरे बहुत कहने पर उसने लंड बहार निकलना स्वीकार कर लीया. जब उसने बहार निकाला तो मैंने रहत की सांस ली. उसने मेरी टांगो को अपने
कंधे से उतार दीया और मुझे दूसरी तरफ घुमाने लगा तो पहले तो मैं
समझ नहीं पाई की वो करना क्या चाहता है. मगर जब उसने मेरी गांड को पकड़ कर ऊपर उठाया और उसमें लंड घुसाने के लीये मुझे आगे की ओर झुकाने लगा तो मैं उसका मतलब समझ कर रोमांच से भर गयी.
मैंने खुद ही अपनी गांड को ऊपर कर लीया और कोशिश करी की गांड का छेद
खुल जाये. उसने लंड को मेरी गांड के छेद पर रख्खा और अंदर करने के लीये हल्का सा दबाव ही दीया था की मैं सिसकी लेकर बोली, “थूक लगा कर घुसाओ.”
उसने मेरी गांड पर थूक चुपड़ दीया और लंड को गांड पर रखकर अंदर डालने लगा. मैं बड़ी मुश्कील से उसे झेल रही थी. दर्द महसूस हो रहा था. कुछ देर मैं ही उसने थोडा सा लंड अंदर करने मैं सफलता प्राप्त कर ली थी. फीर धीरे धीरे धक्के मारने लगा, तो लंड मेरी गांड के अंदर रगड़ खाने लगा
तभी उसने अपेख्शाकरत तेज़ गाती से लंड को अंदर कर दीया, मैं इस हमले के
लीये तैयार नहीं थी, इसलिए आगे की ओर गिरते बची. सात की पुष्ट को सख्ती
से पकड़ लीया था मैंने. अगर नहीं पकद्ती तो जरूर ही गिर जाती. मगर इस
झटके का एक फायदा यह हुआ की लंड आधा के करीब मेरी गांड मैं धंस गया था. मेरे मुँह से दर्द भरी सिस्कारियां निकलने लगी ….. फट गयी मेरी गाआआअन्न्न्न्न्द्द्द्द्द्…… हाआआऐईईईईईइ ऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्…….. उसने अपना लंड जहाँ का तहां रोक कर धीरे धीरे धक्के लगाने स्टार्ट कीए. मुझे अभी अनंद ही आना शुरू हुआ था की तभी वो तेज़ तेज़ झटके मारता हुआ काँपने लगा, लंड का सुपादा मेरी गांड मैं फूल पिचक रहा था, आआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् मेर्र्र्र्रीईईईईई जाआअन्न्न्न्न्न्न्न्न् म्म्म्म्म्म्म्म्म आआआआआअ कहता हुआ वो मेरी गांड मैं ही झाड़ गया. मैंने महसूस कीया की मेरी गांड मैं उसका गाढ़ा और गरम वीर्य टपक रहा था.
उसने मेरी पीठ को कुछ देर तक चूमा और अपने लंड को झटके देता रहा. उसके बाद पूरी तरह शांत हो गया. मैं पूरी तरह गांड मरवाने का अनंद भी नहीं ले पाई थी. एक प्रकार से मुझे अनंद आना शुरू ही हुआ था. उसने लंड नीकाल लीया. मैं कपडे पहनते हुए बोली, “तुम बहुत बदमाश हो. शादी से पहले ही सब कुछ कर डाला.”
“वो मुस्कुराने लगा. बोला, “क्या कर्ता, तुम्हारी कम्सिन जवानी को देख कर दील पर काबू रखना मुश्कील हो रहा था. कयी दीनो से चोदने का मन था, आज अच्च्चा मौका था तो छोड़ने का मन नहीं हुआ. वैसे तुम इमानदारी से बताओ की तुम्हे मज़ा आया या नहीं?”
उसकी बात सुनकर मैं चुप हो गयी और चुपचाप अपने कपडे पहनती रही. मैं मुस्करा भी रही थी. वो मेरे बदन से लिपट कर बोला, “बोलो ना ! मज़ा आया?”
“हाँ” मैंने हौले से कह दीया.
“तो फीर एक काम करो, मेरा मन नहीं भरा है. तुम कार अपने ड्राइवर को दे दो और उसे कह दो की तुम अपनी एक सहेली के घर जा रही हो. रात भर उसके घर मैं ही रहोगी. फीर हम दोनो रात भर मौज मस्ती करेंगे.”
मैं उसकी बात सुनकर मुस्करा कर रह गयी. बोली, “दोनो तरफ का बाजा बजा
चुके हो फीर भी मन नहीं भरा तुम्हारा?”
“नहीं ! बल्की अब तो और ज्यादा मन बेचैन हो गया है. पहले तो मैंने इसका
स्वाद नहीं लीया था, इसीलिये मालूम नहीं था की चूत और गांड चोदने मैं कैसा मज़ा आता है. एक बार चोदने के बाद और चोदने का मन कर रहा है. और मुझे यकीन है की तुम्हारा भी मन कर रहा होगा.”
“नहीं मेरा मन नहीं कर रहा है”
“तुम झूठ बोल रही हो. दील पर हाथ रख कर कहो”
मैंने दील की झूठी क़सम नहीं खाई. सच कह दीया की वाकई मेरा मन नहीं भरा है. मेरी बात सुना-ने के बाद वो और भी जिद्द करने लगा. कहने लगा की Please मान जाओ ना ! बड़ा मज़ा आएगा. सारी रात रंगीन हो जायेगी.”
मैं सोचने लगी. वैसे तो मैं रात को अपनी सहेलियों के पास कयी बार रूक चुकी थी मगर उसके लीये मैं मम्मी को पहले से ही बता देती थी. इस प्रकार आइं मौक़े पर मैंने कभी रात भर बहार रहने का प्रोग्रॅम नहीं बनाया था. सोचते सोचते ही मैंने एक एक प्रोग्रॅम बाना लीया. मगर बोली, “सवाल यह है की हम लोग रात भर रहेंगे कहां? होटल मैं?”
“होटल मैं रहना मुश्कील है. खतरा भी है. क्योंकी तुम अभी कम्सिन हो. मेरे दोस्त अजय का एक बंग्लोव खाली है. मैं उसे फ़ोन कर दूंगा तो वो हमारे पहुँचने से पहले सफाई वगेरह करवा देगा.”
उसकी बात मुझे पसंद तो आ रही थी मगर दील गवारा नहीं कर रहा था. एका एक उसने मेरे हाथ मैं अपना लंड पकडा दीया और बोला, “घर के बारे मैं नहीं, इसके बारे मैं सोचो. यह तुम्हारी चूत और गांड का दीवाना है. और तुम्हारी चूत मारने को उतावला हो रहा है.”
उसके लंड को पकड़ने के बाद मेरा मन फीर उसके लंड की ओर मुड़ने लगा. उसे मैं सहलाने लगी. फीर मैंने हाँ कह दीया. उसके लंड को जैसे ही मैंने हाथ मैं लीया था, उसमें उत्तेजना आने लगी. वो बोला, “देखो फीर खड़ा हो रहा है. अगर मन कर रहा है तो बताओ चलते चलत एक बार और चुदाई का मज़ा ले लीया जाये.”
यह कहते हुए उसने लंड को आगे बढ़ा कर चूत से सटा दीया. उस वक़्त मैंने jeans और पैंटी नहीं पहनी थी. वो चूत पर लंड को रगड़ने लगा. उसके रगड़ने से मेरी चूत पानी छोड़ने लगी, मेर मन मैं चुदाई का विचार आने लगा था. मगर मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाने का प्रयास कीया. उसने मेरी चूत मैं लंड घुसाने के लीये हल्का सा धक्का मारा. मगर लंड एक ओर फिसल गया. मैंने जल्दी से लंड को दोनो हाथो से पकड़ लीया, और बोली, “चूत मैं मत डालो. जब रात रंगीन करने का मन बाना ही लीया है तो फीर इतना बेताब क्यों हो रहे हो. या तो इसे ठण्डा कर लो या फीर मैं कीसी और तरीके से इसे ठण्डा कर देती हूँ.”
“तुम कीसी और तरीके से ठण्डा कर दो. क्योंकी ये खुद तो ठण्डा होने वाला
नहीं है.”
मैं उसके लंड को पकड़ कर दो पल सोचती रही फीर उस पर तेज़ी से हाथ फिराने लगी. वो बोला, “क्या कर रही हो?”
“मैंने एक सहेली से सुना है की लड़के लोग इस तरह झटका देकर मुट्ठ मारते
हैं और झाड़ जाते हैं.”
वो मेरी बात सुनकर मुस्करा कर बोला, “ऐसे चुदाई का मज़ा तो लीया जाता है मगर तब, जब कोई प्रेमीका ना हो. जब तुम मेरे पास हो तो मुझे मुट्ठ मारने की क्या जरूरत है?”
“समझो की मैं नहीं हूँ?”
“ये कैसे समझ लूं. तुम तो मेरी बाहों मैं हो.” कह कर वो मुझे बाहो मैं लेने लगा. मैंने मना कीया तो उसने छोड़ दीया. वो बोला, “कुछ भी करो. अगर चूत मैं नहीं तो गांड मैं…….” कह कर वो मुस्कुराने लगा. मैं शर्म कर बोली, “धात”.
“तो फीर मुँह से चूस कर मुझे झाड़ दो.”
मैं नहीं नहीं करने लगी. आखीर मैं गांड मरना मैंने पसंद कीया. फीर मैं घोड़ी बनकर गांड उसकी तरफ कर घूम गयी. उसने मेरी गांड पर थोडा सा थूक लगाया और अपने लंड पर भी थोडा सा थूक चुप्दा और लंड को गांड के छेद पर टिका कर एक ज़ोरदार धक्का मारा और अपना आधा लंड मेरी गांड मैं घुसा दीया. मेरे मुँह से कराह नीकल गयी आआआआआईईईईईईई मुम्म्म्म्म्म्य्य्य्य्य्य्य्य माआर्र्र्र दियाआआआअ फ़ाआअद्द्द्द्द्द्द् बहुत दर्द कर रहा है.
उसने दो तीन झटको मैं ही अपना लंड मेरी गांड के आकिरी कोने तक पहुँचा दीया, ऐसा लगा जैसे उसका लंड मेरी आन्तादियों को चीर डाल रहा हो. मैंने गांड मैं लंड दल्वाना इसलिए पसंद कीया था, की पिछली बार मैं गांड मरवाने का पूरा अनंद नहीं ले पाई थी और मेरा मन मचलता ही रह गया था, वो झाड़ जो गया था. ऍम मैं इसका भी मज़ा लूंगी ये सोच कर मैं उसका support करने लगी. गांड को पीछे की ओर धकेलने लगी. वो काफी देर तक तेज़ तेज़ धक्के मारता हुआ मुझे आनंदित कर्ता रहा, मैं खुद ही अपनी २ उँगलियाँ चूत मैं दाल कर अंदर बहार करने लगी, एक तो गांड मैं लंड का अंदर बहार होना और दूसरा मेरा उँगलियों से अपनी चूत को कुचलना दो तरफा अनंद से मैं जल्द ही झड़ने लगी और झाड़ते हुए बद्बदाने लगी, ह्ह्ह्हाआऐईईईईई तेरी गाआअन्न्न्न्न्न्न्द्द्द्द्द्द्द्द् आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् लंड कैसे कास कास कर जा रहा है म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म कहता हुआ वो मेरी पीठ पर ही गीर पड़ा और हांफने लगा.
थोड़ी देर ऐसे ही पडे रहने के बाद, हम दोनो ने अपने अपने कपडे पहने और वहाँ से वापस आ गई. ड्राइवर का घर पास मैं ही था. उसके पास जाकर मैंने उसे कार दे कर कहा की हम लोग आज कहीँ पार्टी मैं जा रहे हैं. मैंने उसे समझा दीया की वो घर मैं कह दे की मैं एक सहेली के घर चली गयी हू. आज रात उसके घर पर ही रहूंगी. फीर मैंने उसे ५०० का कै नोट पकडा दीया. रुपये पाकर वो खुश हो गया, बोला, “मैडम जी ! आप बेफिक्र हो जाईये. मैं सब संभल लूँगा. मालकिन को ऐसा सम्झौंगा की वो कुछ नहीं कहेंगी आपको.”
उसके बाद हम दोनो वहाँ से नीकल गई. एक जगह रूक कर वीनय ने टेलीफोन बूथ से अपने दोस्त को फ़ोन कर दीया. उसके बाद उसने मुझे बताया की उसका दोस्त मौजूद था और उसने कह दीया है की वो सारा इंतज़ाम कर देगा.
“सारे इंतज़ाम से तुम्हारा क्या मतलब?”
“मतलब खाने पीने से है.” वीनय ने मुस्करा कर कहा. हम दोनो एक आटो के ज़रीये उसके दोस्त के बंग्लोव मैं पहुंच गई. अच्चा खासा बंग्लोव था, काफी अच्छी तरह सजा हुआ.
वीनय के दोस्त ने हम दोनो का स्वागत कीया. वो भी आकर्षक लड़का था. वो वीनय से तो खुलकर बात करने लगा मगर मुझसे बात करने मैं झीझक रहा था. अन्दर जाने के बाद मैंने कहा की मैं अपने घर फ़ोन करना चाहती हूँ.
उसने सहमति जताई तो मैंने मम्मी को फ़ोन करके कह दीया की मैं आज रात नीमा के घर मैं हूँ और कल सुबह ही आऊंगी. मम्मी कुछ खास विरोध नहीं कर पाई. नीमा का नाम मैंने इसलिए लीया था की उसके घर का फ़ोन नुम्बेर मम्मी के पास नहीं था. वो उससे फ़ोन करके पूछ नहीं सकती थी की मैं उसके पास
हूँ या नहीं. फीर एक एक विचार आया की अगर मेरी मम्मी को मील गयी तो उसमें फ़ोन नुम्बेर है. इसलिए मैंने नीमा को भी इस बारे मैं बता देना ठीक समझा. नीमा को फ़ोन कीया तो वो पहले तो हंसने लगी फीर बोली, “लगता है वीनय के साथ मौज मस्ती करने मैं लगी हुई है. अकेले अकेले मज़े लेगी अपनी सहेली का कुछ ख़्याल नहीं है तुझे.”
वो बड़ी Sexy लडकी थी. मैंने भी हंस कर कहा, “अगर तेरा मन इतना बेताब हो रह है चुदवाने का तो फीर तू भी आजा, वैसे भी यहाँ दो लड़के हैं. एक तो विनय है और दूसरा उसका दोस्त. आजा तो तेरा भी काम बन जाएगा. मैं उसे तेरे लिए मना कर रखती हूँ.”
“वो मान जाएगा?”
“क्यों नहीं मानेगा यार. तेरी जैसे लडकी की चूत को देखकर कोई भी लड़का
चोदने के लिए मन नहीं करेगा. तू है ही ऐसी की, कोई मन करे ये नामुमकिन है.”
“ठीक है तो फिर मैं भी घर में कोई ना कोई बहन बाना कर आ रही
हूँ.”
उसने फ़ोन काट दीया. मैंने उसके बारे मैं वीनय को बताया, तो वो अपने दोस्त को बोला ले यार अजय तेरा भी इंतज़ाम हो गया है. इसकी एक सहेली है नीमा, वो आ रही है.”
अजय के चहरे पर निखार आ गया. बेड रुम मैं आ कर हम तीनो बातें करने लगे. कुछ देर मैं ही अजय से मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी. उसने बताया की वो भी पहले एक लडकी से प्यार कर्ता था मगर बाद मैं उसने धोखा दे दीया तो उसने कीसी और को प्रेमीका बनने के बारे मैं सोंचा ही नहीं.
थोड़ी देर तक बैठे बैठे मुझे बोरियत महसूस होने लगी. वीनय ने मेरी मानो स्तीथी भांप ली. वो अपने दोस्त से बोला, “यार अजय ! ज़रा उस तरफ देखना.” अजय दूसरी ओर देखने लगा तो वीनय ने मुझे बाहो मैं ले लीया और मेरी चूचियों को दबन लगा. होंठो को भी हौले हौले कीस करने लगा. तभी वहाँ नीमा आ गयी. वीनय मुझसे लिप्त हुआ था, उसे देखकर हम दोनो अलग हो गई. मैंने कहा, “हम तेरी ही राह देख रहे थे, वह भे बेचैनी से.”
उसके बाद मैंने उसका परिचय वीनय और अजय से करवाया. मैं देख रही थी की अजय गहरी निगाहों से नीमा की ओर देखे जा रहा था. साफ ज़ाहिर हो रहा था की नीमा उसे बहुत पसंद आ रही है.
एक एक मैं बोली, “यार, तुम दोनो ने एक दुसरे को पसंद कर लीया है तो ओहीर
तुम दोनो दूर दूर क्यों खडे हो. ऎन्जॉय करो यार.” यह कहते हुए मैं नीमा को अजय की ओर धकेल दीया. अजय ने जल्दी ही उसे बाहों मैं ले लीया. वी दोनो झिझ्कें नहीं यह सोच कर मैं भी वीनय से लिपट गयी और उसके होंठो को चूमने लगी. वीनय मेरी चूची दबाने लगा तो अजय ने भी नीमा के मम्मो पर हाथ रख दीया और उसकी चूचियों को सहलाने लगा. मैं नीमा की ओर देखकर मुस्कुराई. नीम भी मुस्कुरा दी फीर अजय के बदन से लिपट कर उसे चूमने लगी. Un दोनो की शर्म खोलने और दोनो को ज्यादा उत्तेजित करने के इरादे से मैं वीनय के कपडे उतारने लगी. कुछ देर मैं मैंने उसके कपडे उतार दीये और लंड को पकड़ कर सहलाने लगी तो वो भी मेरी चूचियों को बेपर्दा करने लगा।
उधर नीमा मेरी देखा देखी, अजय के कपडे उतारने लगी. कुछ ही देर मैं उसने अजय के सारे कपडे उतार दीये. वो तो मुझसे भी एक कदम आगे नीक्ली और उसने झुक कर अजय का लंड दोनो हाथो मैं पकडा और सुपादे को चाटने लगी.
मैंने भी उसकी देखा देखी, वीनय के लंड को मुँह मैं ले लीया और उसे सुपादे को चूसने लगी. एक समय तो हम दोनो सहेलियां मस्ती से लंड मुँह मैं लीये हुए चूस रही थी. मुझे जितना मज़ा आ रहा था उससे कहीँ ज्यादा मज़ा नीम को अजय का लंड चूसने मैं आ रहा था, यह मैंने उसके चहरे को देखकर अंदाजा लगाया था. वो काफी खुश लग रही थी. बडे मज़े से लंड के ऊपर मुँह को आगे पीछे करते हुए वो चूस रही थी.
थोड़ी देर बाद उसने लंड को मुँह से नीकला और जल्दी जल्दी अपने निचले कपडे
उतारने लगी. मुझसे नज़र टकराते ही मुस्करा दी. मैं भी मुस्कुराई और मस्ती से वीनय के लंड को चूसने मैं लग गयी. कुछ देर बाद ही मैं भी नीम की तरह वीनय के बदन से अलग हो गयी और अपने कपडे उतारने लगी. कुछ देर बाद हम चारो के बदन पर कोई कपड़ा नहीं था.
अजय नीम की चूत को चूसने लगा तो मेरे मन मैं भी आया की वीनय भी मेरी चूत को उसी तरह चूसे. क्योंकी नीम बहुत मस्ती मैं लग रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो बीना लंड घुस्वाये ही चुदाई का मज़ा ले रही है. उसके मुँह से बहुत ही कामुक सिस्कारियां नीकल रही थी. वीनय भी मेरी टांगो के बीच मैं झुक कर मेरी चूत को चाटने चूसने लगा तो मेरे मुँह से भी कामुक सिस्कारियां निकलने लगी. कुछ देर तक चूसने के बाद ही मेरी चूत बुरी तरह गरम हो गयी. मेरी चूत मैं जैसे हजारो कीड़े रेंगने लगे. मैंने जब नीम की ओर देखा तो पाय उसका भी ऐसा ही हाल था. मेरे कहने पर वीनय ने मेरी चूत चाटना बंद कर दीया. एक एक मेरी निगाह अजय के लंड की ओर गयी, जीसे थोड़ी देर पहले नीमा चूस रही थी. लंड उसके मुँह के अंदर था इसलिए मैं उसे ठीक से देख नहीं पाई थी.
अब जब मैंने अच्छी तरह देखा तो मुझे अजय का लंड बहुत पसंद आया. मेरे मन मैं कोई बुरा ख़्याल नहीं था. ना मैं वीनय के साथ बेवफाई करना चाहती थी. बस मेरा मन कर रहा था का एक बार मैं अजय का लंड मुँह मैं लेकर चूसू. यह सोच कर मैंने कहा, “यार ! क्यों ना हम चारो एक साथ मज़ा ले. जैसे ब्लू फिल्म मैं दिखाया जाता है.”
अब अजय और नीम भी मेरी ओर देखने लगे. मैं बोली, “हम चारो दोस्त हैं.
इसलिए आज अगर कोई और कीसी और के साथ भी मज़ा लेता है तो बुरा नहीं
होगा. क्यों वीनय, मैं गलत कह रही हूँ?”
“नहीं !” वो बोला, मगर मुझे लगा की वो मेरी बात समः ही नहीं पाय है. नीमा ने पूछ लीया. मैंने कहा, “मान ले वीनय अगर तेरी चूत चाटे तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिऐ. उसी प्रकार अगर मैं अजय का लंड मुँह मैं ले लूं तो बाक़ी तुम तीनो को फर्क नहीं पड़ेगा. मैं ठीक कह रही हूँ ना?”
मेरी बात का तीनो ने समर्थन कीया. मैं जानती थी की कीसी को मेरी बात का
कोई ऐतराज़ नहीं होगा. क्योंकी एक प्रकार से मैंने सबके मन की इच्छा पूरी करने की बात कही थी. सब राजी हो गई तो मैंने आईडिया दीया की बिल्कुल ब्लू फिल्म की तरह से जब मरजी होगी, लड़का या लडकी बदल लेंगे.
मेरी यह बात भी सबको पसंद आ गयी. उसी समय वीनय ने नीमा को खींचकर अपने सीने से लगा लीया और उसके सीने पर कश्मीरी सेब की तारा उभरे हुए मम्मो को चूसने लगा. और मैं सीधे अजय के लंड को चूसने मैं लग गयी. उसके मोटे लंड का साइज़ था तो वीनय जैसा ही मगर मुझे उसके लंड को चूसने मैं कुछ ज्यादा ही अनद आ रहा था. मैं मज़े से लंड को मुँह मैं काफी अंदर दाल कर अंदर बहार करने लगी. उधर नीमा भी वीनय के लींग को चूसने मैं लग गयी थी.
तभी अजय ने मेरे कान मैं कहा, “तुम्हारी चूत मुझे अपनी ओर खींच रही है. कहो तो मैं तुम्हारी चूत अपने होंठो मैं दबाकर चूस लूं?”
यह उसने इतने धीमे स्वर मैं कहा था की मेरे अलावा कोई और सुन ही नहीं सकता था. मैंने मुस्करा कर हां मैं सीर हीला दीया. वो मेरी जांघों पर झुका तो मैंने अपनी टांगो को थोडा सा फैला कर अपनी चूत को खोल दीया. वो पहले तो मेरी चूत के छेद को जीभ से सहलाने लगा. मुझे बहुत मज़ा आने लगा था. मैं उसे काट काट कर चूसने के लीये कहने वाली थी, तभी उसने ज़ोर से चूत को होंठो के बीच दबा लीया और खुद ही काट काट कर चूसने लगा. मेरे मुँह से कामुम सिस्कारियां निकलने लगी “आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ऊऊऊम्म्म्म्म्म्म्म्म् ऊऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् म्म्म्म्म्म्म्म बहुत माआया ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़ाआआअ आआआ र्र्र्र्राआह्ह्ह्हाआआ ह्ह्ह्ह्हाआआईईईईइ.
अब तो मैं और भी मस्त होने लगी और मेरी चूत रस से गीली होने लगी. वो
फानको को मुँह मैं लेकर जीभ रगड़ रहा था. मैंने वीनय की ओर देखा तो पाय की वो भी नीमा की चूत को चूसने मैं लगा हुआ था. नीम के मुँह से इतनी ज़ोर से सिकारियां नीकल रही थी की अगर आस पास कोई घर होता तो उस तक आवाज़ ब्पहुंच जाती और वो जान जाते की यहाँ क्या हो रहा है.
“ख्ह्ह्हा ज्ज्ज्जाआओअऊऊऊ छूऊऊस्स्सूऊओ और्र्र्र्र्र्र्र ज़्ज़्ज़्ज़ूऊऊर्र्र्र्र्र्र्र्र्
स्स्स्स्सीईईई स्स्स्स्साआआल्ल्ल्ल्लीईईए क्क्क्क्क्कात्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त ल्ल्ल्ल्लीईईए
म्म्म्मीईर्र्र्र्रीईईई क्छ्ह्हूऊत्त्त्त्त् म्म्म्म्म्म्म्म ह्ह्ह्हाआआआईईईईईई म्म्म्म्म्म्माआज़्ज़्ज़्ज़्ज़ाआअ आआआ र्र्र्राआअह्ह्ह्ह्ह्हाआअ ह्ह्ह्ह्हाआआईईईईईइ ऊऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् ऊऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्”
खैर मेरी चूत को चूसते हुए जब अजय ने चूत को बहुत गरम कर दीया तो मैं जल्दी से उसके कान मैं बोली, “अब और मत चूसो. मैं पहले ही बहुत गरम हो चुकी हूँ. तुम जल्दी से अपना लंड मेरी चूत मैं दाल दो वर्ना वीनय का दील आ जाएगा. जल्दी से एक ही झटके मैं घुसा दो.”
वो भी मीर चूत मैं अपना लंड डालने को उतावला हो रहा था, मैंने अजय के साथ चुदवाने का इसलिए मन बाना लीया था ताकी मुझे एक नए तरीके का मज़ा मील सके.
उसने लंड को चूत के छेद पर रख कर अंदर की ओर धकेलना शुरू कीया तो मैं इस दर मैं थी की कहीँ वीनय मेरे पास आकर यह ना कह दे की वो मुझे पहले छोड़ना चाहता है. मैंने जब उसकी ओर देखा तो वो अब तक नीम की चूत को ही चूस रहा था. उसका ध्यान पूरी तरह चूत चूसने की ओर ही था. मैंने इस मौक़े का लाभ उठाने का मन बनाया और चूत की फानको को दोनो हाथो से पकड़ कर फैला दीया ताकी अजय का लंड अंदर जाने मैं कीसी प्रकार की परेशानी ना हो.
और जब उसने मेरी चूत मैं लंड का सुपादा दाल कर ज़ोर का धक्का मारा तो मैं सिसियाँ उठी. उसका लंड चूत के अंदर लेने का मन एक एक कुछ ज्यादा ही बेताब हो गया. मैंने जल्दी से उसका लंड एक हाथ से पकड़ कर अपनी चूत मैं डालने की कोशिश करनी शुरू कर दी. एक तरह मेरी म्हणत और दूसरी तरफ उसके धक्के, उसने एकदम से तेज़ धक्का मार कर लंड चूत के अंदर आधा पहुँचा दीया. ज्यादा मोटा ना होने के बावजूद भी मुझे उसके लंड का झटका बहुत अनंद दे गया और मैं क़मर उछाल उछाल कर उसका लंड चूत की गहराई मैं उतरवाने के लीये उतावली हो गयी.
तभी मैंने वीनय की ओर देखा. वो भी नीम को छोड़ने की तय्यारी कर रहा था. उसने थूक लगा कर नीमा की चूत मैं लंड घुसाया तो नीमा सिस्कारी लेकर बोली, “ऊईईइईईईए दया कितन मोटाआया हाआआईईईईईई. मेरी सखी देख रही है तेरे लोवर का लंड. ये तो मेरी नाज़ुक चूत को फाड़ ही देगा. ऊऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् गोद्द्द्द्द्द्द्द्द्द स्स्स्स्स्स्स्सीईईईईई धीईईर्र्र्रीईई
धीईईर्र्रीईए घुसाआआआआअऊऊऊओ. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है.”
वो मेरी ओर देख कर कह रही थी. उसकी हालत देखकर मुझे हंसी आ रही थी. क्योंकी मुझे मालूम था की वो जरूर acting कर रही होगी. क्योंकी वो पहले भी कयी बार चुद्वा चुकी थी. इसका सबोत ज़रा ही देर मैं मील गया, जब वो सिस्कारी लेते हुए वीनय को लंड ज़द तक पहुंचाने के लीये कहने लगी. वीनय ने ज़ोरदार धक्का मार कर अपना लंड उसकी चूत की ज़द तक पहुँचा दीया था. इधर मेरी चूत मैं भी अजय के लंड के ज़ोरदार धक्के लग रहे थे. कुछ देर बार वीनय ने कहा, “अब हम लोग पर्त्नेर बदल ले तो कैसा रहेगा?”
वैसे तो मुझे मज़ा आ रहा था, मगर फीर भी तैयार हो गयी. अजय ने मेरी चूत से लंड नीकाल लीया. मैं वीनय के पास चली गयी. उसने नीम की चूत से लंड नीकाल कर मुझे घोड़ी बनाकर मेरी पीछे से चूत मैं लंड पेल दीया, एक झटके मैं आधा लंड मेरी चूत मैं समां गया, इस आसान मैं लंड चूत मैं जाने से मुझे थोड़ी परेशानी हुई मगर मैं झेल गयेयूधार मैंने देखा की अजय ने नीमा की चूत मैं लंड घुसाया और तेज़ी से धक्के मारने लगा. साथ ही उसकी चूचियों को भी मसलने लगा. कुछ ही देर बाद हमने फीर partner बदल लीये. ऍम मेरी चूत मैं फीर से अजय का लंड था. उधर मैंने देखा की नीमा अब वीनय की गोद मैं बैठ कर उछल रही थी, और नीचे से वीनय का मोटा लंड उसकी चूत के अंदर बहार हो रहा था। वो सिस्कारी लेकर उसकी god मैं एक प्रकार से झूला झूल रही थी। मैंने अजय की ओर इशारा कीया तो उसने भी हामी भर दी. मैं उसकी क़मर से लिपट गयी.
दोनो टाँगे मैंने उसकी क़मर से लप्पेट दी थी और उसके गले मैं बाहें डाले, मैं झूला झूलते हुए चुद्वा रही थी. बहुत मस्ती भरी चुदाई थी. कुछ देर बाद लंड के धक्के खाते खात मैं झड़ने लगी, मेरी चूत मैं संकुचन होने लगा जिससे अजय भी झंडे लगा. उसका वीर्य रस मेरी चूत के कोने कोने मैं ठंडक दे रहा था, बहुत अनंद आ रहा था.
दोनो टाँगे मैंने उसकी क़मर से लप्पेट दी थी और उसके गले मैं बाहें डाले, मैं झूला झूलते हुए चुद्वा रही थी. बहुत मस्ती भरी चुदाई थी. कुछ देर बाद लंड के धक्के खाते खात मैं झड़ने लगी, मेरी चूत मैं संकुचन होने लगा जिससे अजय भी झंडे लगा. उसका वीर्य रस मेरी चूत के कोने कोने मैं ठंडक दे रहा था, बहुत अनंद आ रहा था.
उसके बाद उसने मेरी चूत से लंड बहार नीकाल लीया. उधर वो दोनो भी झाड़
झुदा कर अलग हो चुके थे. हम सबने खाने पीने का प्लान बनाया. दोनो समन मौजूद थे. मैं आम तौर पर नहीं पीती हूँ और ना ही नीमा पीती है, मगर उस दीन हम सबने व्हिस्की पी. खा पी चुकने के बाद हम चारो फीर मस्ती करने लगे, मस्ती करते करते ही मैंने फैसला कर लीया था की इस बार गांड मैं लंड दल्वायेंगे. जब मैंने अजय और वीनय को अपनी मंशा के बारे मैं बताया तो वो दोनो राज़ी हो गई. नीमा तो पहले से ही राज़ी थी शायद. हम सबने तेल का इंतज़ाम कीया. टेल लगा कर गांड मरवाने का यह आईडिया नीमा का था. शायद वो पहले भी इस तरीके से गांड मरवा चुकी थी.
तेल आ जाने के बाद मैंने वीनय के लंड को पहले मुँह मैं लेकर चूस कर खड़ा कीया और उसके बाद उसके खडे लंड पर तेल चुपद दीया और मालिश करने लगी. उसके लंड की मालिश करके मैं उसके लंड को एकदम चिकना बाना दीया था. उधर नीम अजय के लंड को तेल से टर्र करने मैं लगी हुई थी. वीनय मैं लंड को पकड़ कर मैंने कहा “इस बार तेल लगा हुआ है, पूरा मज़ा देना मुझे.”
“फिक्र मत करो मेरी जान.” वो मुस्कुरा कर बोला और उसने मेरी गांड के सुराख पर रगड़ता रहा उसके बाद एक ही धक्के मैं अपना आधा लंड मेरी गांड मैं दाल दीया. मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी सिस्कारी निकलने लगी. जितनी आसानी से उसका लंड अपनी चूत मैं मैं डलवा लेटी थी, उतनी आसानी से गांड मैं नहीं.
खैर जैसे ही उसने दूसरा धक्का मार कर लंड को और अंदर करना चाहा, मैं अपना काबू नहीं रख पाई और आगे की ओर गिरी ओ वो भी मेरे साथ मेरे बदन से लिप्त मेरे ऊपर गीर पड़ा. एक एक वो नीचे की ओर हो गया और मैं उसके ऊपर, दबाव से उसका सारा लंड मेरी गांड मैं समां गय. मैं मरे दर्द के चीखने लगी. ह्ह्ह्ह्ह्हाआआईईईईई फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ाआद्द्द्द्द्द् दीईईइ
म्म्म्म्मीईर्र्र्रीईई . मैं उससे छूटने के लीया हाथ पैर मारने लगी तो उसने म,उझे खींच कर अपने से लिपटा लीया और तेज़ी से उछल उछल कर गांड मैं घुसे पडे लंड को हरकत देना स्टार्ट कर दीया.
मेरी तो जान जा रही थी. ऐसा लग रहा था की आज मेरी गांड जरूर फट
जायेगी. मैं बहुत मिन्नत करने लगी तो उसने मुझे बराबर लिटा दीया और तेज़ी से मेरी गांड मारने लगा. बगल मैं होने से वैसे तो मुझे उतना दर्द नहीं हो रहा था मगर उसका मोटा लंड तेज़ी से गांड के अंदर बहार होने मैं मुझे परेशानी होने लगी. मैं नीम की ओर नहीं देख पाई की वो कैसे गांड मरे का मज़ा ले रही है, क्योंकी मुझे खुद के दर्द से फुर्सत नहीं थी.
वीनय काफी देर से धक्के मार रहा था मगर वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. तभी मैंने देखा की नीमा ज़ोर ज़ोर से उछल रही थी और अजय को बार बार मुकत करने की लीये कह रही थी. कुछ देर बाद अजय ने लंड बहार नीकाल लीया. मेरे पास आकर बोला, “कहो तो लंड तुम्हारी चूत मैं दाल दूं. नीमा तो थक गयी है.”
मैंने वीनय की ओर देखा तो उसने हामी भर दी तो मैंने भी हाँ कह दीया. फीर मैं वीनय के सहयोग से उठ कर वीनय के ऊपर आ गयी, नीचे वीनय मेरी गांड मैं लंड डाले पड़ा हुआ था, ऊपर मैं चूत फैलाये हुए अजय का लंड डलवाने के लीये बेताब हो रही थी. अजय ने एक ही धक्के मैं अपना पूरा लंड मेरी चूत मैं उतार दीया. उसके बाद जब मुझे दोनो ओर से धक्के लगने लगे तो मुझे इतना मज़ा आया की मैं बता नहीं सकती. बिल्कुल ब्लू फिल्मो की तरह का सीन इस समय हो रहा था, मैं गालिया देती हुई दोनो तरफ से चुद रही थी. नीम पास खादी हम तीनो को मज़ा लेते देख रही थी. कुछ ही देर मैं हम तीनो झाड़ कर लास्ट पस्त हो गई.
सुबह तक हमने कुल मीलाकर ४ बार चुदाई का अनद लीया. उसके बाद अगले दीन मैं नीम के साथ पहले उसके घर गयी, फीर उसे अपने घर भी ले आयी. ताकी मम्मी को यकीन हो जाये की मैं रात भर उसी के घर पर थी. मम्मी को कुछ शाकुए नहीं हो पाय.
आज भी हम चारो मील कर ऐसे ही प्लंस बनाते हैं और अजय के बंग्लोव पर
चुदाई का अनंद उताते हैं, अब तो उसमें वीनय के २-३ दोस्त और भी शम्मिल हो गई हैं......
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