“लकी प्रोजेक्ट गाइड-२” में आपने पढ़ा कि स्मिता ने किस तरह मुझे बेवकूफ़ बनाया।
मुझे ‘पैशनेट और पावरफ़ुल लवर’ की संज्ञा देने के बाद उसने फ़ुसफ़ुसाते हुए मेरे कानों में कहा था “आपके फोटोग्राफ़्स नेहा ने भी देखे हैं…और वो जल जायेगी जब मैं उसको आज की बात बताऊँगी… बाय सर !”
“टेक केयर !” मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया था…
फ़िर नेहा का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम गया था…और मेरे होठों पे एक भेदभरी मुस्कान ना चाहते हुए भी आ ही गई थी…
नेहा की आँखें बड़ी-बड़ी थी…हिरणी जैसी…चेहरा गोल मासूम सा…प्यारा सा…बच्चों सा…। मैं उसको बच्चों की तरह ही समझता था…
पर अब जबसे स्मिता ने मुझे यह बताया था कि मेरा पूरा खड़ा प्रचंड लंड नेहा ने भी न सिर्फ़ देखा है…बल्कि ललचाई नज़रों से देखा है, तब से मेरी निगाहें बदल गई, मेरी नीयत बदल गई… मेरा नज़रिया बदल गया।
अब मैं उसके मासूम चेहरे को कम, उसके भरे और गदराये बदन को ज़्यादा देखता था। उसकी हिरणी जैसी आँखे मुझे सेक्सी लगने लगी थी। मैं कल्पना करता था कि उसके स्तन कितने बड़े होंगे… कितने भरे हुए…गोल-गोल.. सोचता था… उसके नितम्ब कितने पुष्ट होंगे….कितने मुलायम होंगे… सोचता था उसकी टांगें कितनी चिकनी होंगी….केले के तने जैसी।
मुझे उसके होंठ अब रसीले नज़र आने लगे थे। मैं जब भी उसको निहारता वो नज़रें झुका लेती थी… मेरी आँखों मे शायद कुछ और नज़र आने लगा था। मैं सोचता था जैसे शशि और स्मिता अपने आप आकर मेरी झोली में गिरी थीं नेहा भी गिरेगी.. और तब जबकि उसने मेरे दैत्यांग की तस्वीरें देखी थी।
मुझे तो यहाँ तक लगता था कि शशि और स्मिता ने अपनी कहानियाँ ज़रूर नेहा को सुनाई होगीं। पर नेहा तो नेहा थी… उसकी मासूमियत और औरतपन को पहले कदम बढ़ाना मंज़ूर नहीं था।
एक दिन लैब में मैं तीनों का सेशन ले रहा था… नेहा अचानक उठी और ‘एक्सक्यूज़ मी’ बोलकर बाहर टॉयलेट की तरफ़ जाने लगी। और मेरी निगाहें उसके नितम्बों पर जम गईं… मैं बोलना भूल गया… उन उठते-गिरते गोल-गोल उभरे नितम्बों को निहारता रहा।
अचानक मैंने देखा कि शशि और स्मिता मुझे देखकर मुस्कुरा रही हैं… मैं झेंप सा गया।
शशि ने कहा,”इसके लिये आपको खुद कोशिश करनी पड़ेगी .. शी इज़ डिफ़रेंट… वो खुद आपके पास नहीं आने वाली… थोड़ी शर्मीली है… बट आइ एम श्योर…. आप कुछ ना कुछ ज़रूर कर लेंगे।”
मैं ऑफ़िस में ऐसी बातें नहीं करना चाहता था, इसलिये मैंने कहा,”अब अपने काम की बात करते हैं !”
बात आई गई हो गई पर मेरे मन में नेहा को पाने की इच्छा तीव्र होती गई।
एक शनिवार को मैंने नेहा को अकेले पाकर पूछ ही लिया,”इस रविवार को क्या कर रही हो?”
“वंडर ला जा रहे हैं !” वंडर ला बैंगलोर से दस-बारह किलोमीटर दूर एक शानदार सा अम्यूज़मेंट पार्क है… जिसमें जॉय राइड्स के अलावा वाटर-पार्क्स भी हैं।
“बॉयफ़्रेंड के साथ?” मैंने भेदभरी मुस्कान के साथ पूछा।
“नहीं…परिवार के साथ…”
मैं मन ही मन खुश हुआ।
मैं रविवार को सुबह जल्दी उठा, नहाया-धोया, नाश्ता करके पिकनिक सैक उठाया और निकल पड़ा वंडर ला की ओर….अपने मंज़िल की तलाश में।
मैंने कुछ देर लेज़र शो देखा, क्रेज़ी राइड किया, टरमाइट राइड और न जाने क्या क्या किया पर सब बेमन से। मैं तो हर जगह सिर्फ़ नेहा को ढूंढ रहा था। चलते-चलते साइड-पाथ पे कोई भी आकर्षक पिछवाड़ा दिखता तो मैं तेजी से उसके आगे देखता कहीं नेहा तो नहीं। ग्यारह बज चुके थे और भीड़ बढ़ती जा रही थी। मैं जिगजैग राइड पे पहुंच गया जो घूमते-घूमते उलटी हो जाती है। दो चक्कर के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे फ़ाउन्टेन के पास कोई मेरी तरफ़ हाथ हिला रहा है। राइड रुकने के बाद मैंने उसे गौर से देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा…वो नेहा थी…परपल शॉर्ट स्कर्ट और पीकॉक टॉप में…सेक्सी नेहा।
राइड से उतरते ही मैं फ़टाफ़ट उसके पास गया !
“सर आप यहां कैसे?”
“तुम्हें ढूंढता हुआ चला आया..” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
उसने आंखें इस अंदाज़ में सिकोड़ी जैसे मेरे जुमले के पीछे छुपे मेरे इरादों को जानना चाह रही हो… और मेरे होंठों पर थी सिर्फ़ मुस्कान।
“आप बेशक मेरे साथ रहें पर इस तरह कि मेरे परिवार को पता नहीं चलना चाहिये कि आप और मैं एक दूसरे को जानते हैं !”
“ठीक है !”
सारा दिन मैं नेहा के साथ रहा और उसके साथ वालों किसी को पता नहीं चला। वाटर पार्क में हमने (खास तौर पर मैंने) बहुत मजे किये। शुरुआत मैंने की… वहाँ जहां पानी कमर तक था…पानी में डूबे-डूबे मैं अपने घुटने को उसकी नितम्बों के बीच रगड़ देता.. जब चार-पाँच बार के बाद कोई ऑब्जेक्शन नहीं हुआ तो मुझे लगा या तो यह इग्नोरेंट है या फिर घुटी हुई है।
जो भी हो.. शह पाकर बीच-बीच में मैं अपने घुटने उसकी चूत पे रगड़ देता। पहली बार में तो वो चिहुंक उठी पर ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही ना हो.. उसे पता ही नहीं चल पाया था शायद ! भीड़ के कारण शायद !
करीब आधे घंटे यही घटनाक्रम जारी रहा। अजीब पहेली होती जा रही थी ये नेहा, कुछ समझ में नहीं आ रहा थी चाहती क्या है?
फिर मैंने यही सिलसिला जारी रखा… नितम्ब, चूत और स्तनों को किसी भी ढंग से छू लेता। पानी के अंदर लावा जल रहा था…. मेरा लंड प्रचंड हो चुका था… पूरा लोहे का गरम रॉड… असाधारण और अनियंत्रित। मुट्ठ मारने की तीव्र इच्छा हो रही थी..पर मैं एक सार्वजनिक-स्थल में था… भीड़भाड़ में।
शाम चार बजे लहरें(वेव्स) शुरू होते हैं। ऐसा कृत्रिम माहौल बनाया जाता है जैसे समुद्र तट हो….लहरें आती और जाती हैं…फ़ेनिल उठता है और शांत हो जाता है…किनारे की रेत बह जाती है और वापिस आ जाती है….लोग गले तक जितने पानी में तैरने का मज़ा इस तरह उठाते हैं जैसे सागर तट उठाया जाता है।
मैं भी बह चला….इस जतन के साथ कि मेरा कमर के नीचे का हिस्सा कभी पानी के ऊपर ना आने पाये….और मेरा दुर्दांत लंड कहीं दिख न जाये…लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। जब लहरें उठी मैंने गोता लगाया…ऊपर आने ही वाला था कि मेरे लंड पे एक किसी के हाथ का कसाव महसूस हुआ। ऊपर आकर देखा कोई नज़र नहीं आया….
मैंने दुबारा गोता लगाया…..इस बार उस हाथ ने मेरी अंडरवियर खींचकर मेरे लंड को अपने हाथ में लिया। हाथ नाज़ुक सा था…..शर्तिया किसी लड़की का ..
Thursday, September 16, 2010
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